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देश में नि:शुल्क न्याय की व्यवस्था हो। - ब्लॉगर आकांक्षा सक्सेना


समय की मांग : न्यायालयों में हो बड़ा परिवर्तन




[ देशवासियों के न्याय के मौलिक अधिकारों के तहत #निशुल्क #न्याय व एक तय (निर्धारित) समय सीमा में न्याय की व्यवस्था हो। आप ऐसे बहुआयामी  सिस्टम पर कार्य कीजिए ना कि वोटबैंक की राजनीति में उलझे पड़े हो।] 

समय की मांग : न्यायालयों में हो बड़ा परिवर्तन 
[ देशवासियों के न्याय के मौलिक अधिकारों के तहत #निशुल्क #न्याय व एक तय (निर्धारित) समय सीमा में न्याय की व्यवस्था हो। आप ऐसे बहुआयामी  सिस्टम पर कार्य कीजिए ना कि वोटबैंक की राजनीति में उलझे पड़े हो।] 

देश में 3.04 करोड़ मुकदमें लंबित हैं और न्यायाधीशों की संख्या ऊँट के मुँह में जीरा से भी कम और तो और जो काबिल न्यायमूर्ति के बगल में बैठने वाले पेशकार साहब जोकि विधि और न्याय की शिक्षा प्राप्त विद्वान अधिवक्ता होते ही नहीं बस अपात्र व्यक्ति के सामने अन्यायपीड़ित तारीख लेने के लिये घूस देते हैं और इन साहिब के सामने विद्वान अधिवक्ता नीचे खड़े रहते हैं, इनकी कोई पात्रता परीक्षा नहीं ना ही पात्रता पर सवाल..।  ऊपर से जस्टिस बोबड़े कह रहे कि न्याय जल्दबाजी में नहीं होते.. तो क्या पीढ़ियां बीत जायें और गरीब मर जाये तब आप भी न्याय का दिखावा करेगें और सरकारें मुआवजा देकर जबर्दस्त न्याय कर देती हैं... समझना होगा कि तीन करोड़ मुकदमों का ढ़ेर लगा है और इसे गम्भीरता से नहीं लिया जा रहा। जब आतंकी के लिए व नेताओं के लिए रात में रविवार पर न्यायालय खुल सकते हैं तो आम अन्यायपीड़ित जनता के लिए लिये क्यों नहीं...कोई तो बड़ा परिवर्तन करना ही होगा या कोई ऐसा कदम जिससे यह करोड़ों लंबित मामलों का समाधान हो सके और पीड़ित जनता को समय रहते न्याय मिल सके... वरना पीड़ित रोकर यही कहते मिल रहे कि पुलिस, अदालत के चक्कर काटने से अच्छा किसी बाहूबली को रिश्वत दो और अपनी जमीन पर हो रहा अवैध कब्जा गुंडई से हट जाता है तो क्या अब देश गुंडई से चलेगा? सरकार और न्यायालय को बेहद गम्भीरता से मजबूत कदम उठाने होगें.. चाहे उसे क्रांति या परिवर्तन नाम ही क्यों ना मिले.. पर कुछ करो... यूँ सिर्फ़ निंदा करना, शोक मनाना, मुआवजा देना साहिब! ये कोई निदान नहीं कोई न्याय तो नहीं ...। वहीं, आजकल नागरिकता पर हाय तौबा मची है पर भारतीय संविधान की प्रस्तावना में साफ लिखा 'हम भारत के लोग' .. पहले संविधान सुधारो। वहां 'हम भारत के नागरिक' तो दर्ज करो पहले.. 'राष्ट्रीय नागरिकता' की बात करते हो.. 'भारतीय नागरिकता' की बात करो। आजादी से आज तक आपने भारतीयों को एक कायदे की आईडीप्रूफ उपलब्ध नहीं करा पाये आप सब राजनीतिक लोग.. पहचान पत्र में फोटो मेल नहीं खाती जिसमें पिता की उम्र 20 साल पुत्र की आयु70 वर्ष लिखी मिल जायेगी और रही बात आधारकार्ड की तो आधारकार्ड में साफ लिखा कि यह भारतीय नागरिकता का प्रमाणपत्र नहीं...ये तो हाल है। यहां मैं स्पष्ट कर दूं कि अगर देश के गृहमंत्री 'घुसपैठिया मुक्त भारत' की सोच रहे तो विपक्ष को इतना दर्द क्यों है? पूरे के पूरे 56 मुस्लिम देश और जहां शरणार्थी मुस्लिमों को गले लगा लिया जाता है पर उन कट्टर देशों में हिंदूओं के साथ दुर्व्यवहार होता है, हिंदुस्तान यह सब होते कैसे देख सकता है? अगर भारतवर्ष के गृहमंत्री इस दिशा में सकारात्मक सोच रहे तो विपक्ष को बैचेनी क्यों हो रही। हाँ यह जरूर सुनिश्चित होना चाहिए कि उन लोगों की एक्टिविटी पर गहरी नजर जरूर रखी जाये और वह लोग कर्म, धर्म और विचारों से सच्चे भारतीय साबित हों। 
   वहीं न्याय इतना मंहगा है कि गरीब सबकुछ बेंच दे तब भी वह निश्चिंत नहीं कि उसे न्याय मिलेगा ही..देश की अन्याय पीड़ित जनता को निशुल्क और तुरत न्याय मिल सके, सत्ताशीनों को कम से कम इस पर काम करना चाहिए जो कि बस वोटबैंक की राजनीति में उलझे पड़े हैं। आप सत्ताशीनों को ना तो अन्यायपीड़ितों की चिंता है और ना ही बेरोजगारों की....आप कुछ तो सकारात्मक कार्य करें.. ऊपर से टीवी डिबेट वाले और नेता लोग रोज हिंदू- मुस्लिम करते रहते हो.. पूरे समाज और देश का माहौल बिगाड़ते रहते हो। क्यों नाटक करते हो सब जानते हैं कि वोटबैंक ही आप लोगों की ऑक्सीजन है। कम से कम राजनीति से उठकर लोगों के रोटी रोजगार की चिंता करें। जनसंख्या नियंत्रण कानून बनाये, जातिगत आरक्षण, रोजगार, बलात्कार, भ्रष्टाचार इस पर नहीं बोलेगें आप। देश के कानून इतने कठोर कीजिए कि अपराध पर अंकुश लगे ये सब नहीं करोगे आप... खालीचिल्ला चौथ मचाये पड़े हो। मचाये रहो.. एकदिन जनता अपने पर उतर आया तो ना रहेगी राजनीति और ना रहेगा अपराध....! 
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साहिब! सवाल भी पुकार भी... 

जब सीमा पर तैनात सैनिक, पुलिस, 
फायर ब्रिगेड, यातायात रेलवे आदि 
डॉक्टर, पत्रकार आदि सात दिन में 
24 घंटे कार्यरत रहते हैं, 
शिवालय सदा खुले रहते हैं, 
तो फिर न्यायालय सप्ताह में पांच दिन 
और वह भी दस से चार बजे तक ही 
क्यों? ग्रीष्मावकाश अलग से। आखिर! अन्याय पीड़ित न्यायार्थी तो 
साहिब! आराधक है, जिसकी आहरूपी 
प्रार्थनारूपी घंटी सदैव सुनी जानी 
चाहिए। यह देखते हुए कि करोड़ों मुकदमें लंबित हैं...!! 


- ब्लॉगर आकांक्षा सक्सेना

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