बुद्ध/यशोधरा और समाज का चश्मा
#हम_जीतेगें_हर_जंग
गौतम बुद्ध रात के वक्त सोती हुए अपनी पत्नी और दुधमुंहे बच्चे को छोड़ कर सत्य की खोज में जंगलों में तपस्या के लिए चले गए। यही कार्य गौतमबुद्ध की पत्नी यशोधरा करतीं तब? कि अपने पति व बच्चे को त्याग कर सत्य - परमात्मा की खोज में निकल जाती, चाहे वह समय रात्रि का होता या दिन का...। गौतम बुद्ध पुरूष हैं उन्हें रात चुनने का अधिकार है पर एक महिला को दिन भी चुनने का अधिकार नहीं! क्याेंकि स्त्री के सारे अधिकार इस क्रूर समाज के पास आरक्षित हैं...! सोचो! क्या समाज इस सत्य की खोज में निकली महिला को स्वीकारता? मूर्तियां बनाता? पूजा करता? चढ़ता उनपर केसर वाला दूध या चढ़ती उस पर चुनरी या होते उसके नाम पर जप तप, या लिखते कोई कवि या लेखक उनपर कविता या लेख, या करता कोई उनपर पीचडी? या बनते उनके नाम पर ध्यान केन्द्र या मंदिर...? क्या मिलता उनके बुद्धत्व को सम्मान? क्या पूरी दुनिया उस महिला को बुद्ध का दर्जा देती...?? क्योंकि यह दोहरा समाज है जो स्त्री के लिए अलग है और पुरूष के लिए अलग?यहां समानताएं की बातें आदिकाल से मिथ्या ही रहीं हैं? यहां स्त्री का पल्लू बदनामी के भोंपू के साथ कसके बांध दिया गया है और जब स्त्री अपनी आवाज़ उठाती है तो इस समाज के पास सिर्फ एक अवार्ड है उसे देने के लिए जिसका नाम है चरित्रहीन..! बस इससे ज्यादा यह समाज उसे कुछ नहीं दे सकता। वह महिला को बुद्ध बनते नहीं स्वीकार सकता क्योंकि उसके अंहकार को चोट लगती है। वह चाहता है कि वह बुद्धू ही रहे क्योंकि वह बुद्धू रहेगी तो हम उस पर शासन कर सकेगें। सच तो यह है कि बुद्ध बनना फिर भी सरल हो सकता है पर स्त्री होना,माँ होना, सम्पूर्ण स्त्रित्व को जीना बहुत कठिन है। आज हजारों शोध हुए हैं जिनमें यह बात साफ है कि आज भी कोई स्त्री अगर पुरूष से आगें निकलने की कोशिश करे तो उसे रेप के नाम से डरा - धमका दिया जाता है। उसे असुरक्षा के नाम पर डराने वाली कैद रूपी सोच आज भी ऊर्ध्वगामी है...!! हां यह सच है बहुत कुछ बदला है पर क्या समाज की सोच बदली है? आज भी महिलाओं को स्पोर्ट्स में जाने नहीं दिया जाता, कि गवर्नमेंट टीचर की जॉब कर लो सुरक्षित रहोगी। हमारे देश में अंतरराष्ट्रीय खेलों में महिला खिलाड़ियों का रेसियो प्रतिशत कितना और कैसा है, यह जगजाहिर है। हम चाहते हैं कि हमारा देश तरक्की करे। हमारा देश एक विकसित वीटोपावरफुल राष्ट्र बन जाये पर क्या उससे पहले हम हमारी सोच को विकसित करने को तैयार हैं? क्या हम खुद की दकियानूसी सोच को त्याग कर लडकियों की उन्नत सोच के साथ दो कदम बढाने को तैयार हैं? क्या एक बार उनपर भरोसा करने को तैयार हैं? या पूरा परिवार मिलकर अपने फैसले थोपेगा? जब करियर की दिशा में ऐसा होता है तो करियर बन ही नहीं सकता क्योंकि लता मंगेशकर सिंगर हैं वह टीचर नहीं हो सकतीं, बबिता फोगाट पहलवान है वह टीचर नहीं हो सकती। हर लडकी गवर्नमेंट टीचर बनने के लिए पैदा नहीं होती। यह बात जितनी जल्दी हमारा परिवार और समाज समझेगा उसी दिन स्त्रीउत्थानक्रांति सम्भव होगा और हमारा देश करोड़ों सम्भावनाओं का देश है। हम विकसित देश अवश्य बनेगें।हम भारतीय कभी हार नहीं सकते। चाहे वह सामाजिक विचारधारा की जंग हो या देश की आजादी व आबादी की जंग या देश को वीटोपावरफुल बनाने की जंग। एक दिन हम जरूर जीतेगें।
-ब्लॉगर आकांक्षा सक्सेना
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