श्री इन्दु भूषण कोचगवे, देहरादून (सच की दस्तक ध्रुव धुरी)
(साहित्य भास्कर, दोहामणि,आशुकवि)
Incredible Biography of The Great Indian Writer Indu Bhushan kochgaway
इस दुनियां में अगर आप आसमां को स्पर्श करना चाहें तो आप शब्दों से कर सकते हैं। आप बिना कुछ बोले एक तुलसी के पत्ते पर श्रीकृष्ण लिखकर भगवान के हृदय में निवास पा सकते हैं। आज दुनिया में जहां भी पूर्वज शब्द और प्राचीन सभ्यता शब्द का प्रयोग किया जाता है तो यह भी निश्चित है कि उस शब्द के गर्भ में कोई न कोई पुरातन साहित्य भी अवश्य ही रहा होगा। विश्व की ऐसी कोई सभ्यता नहीं जिसके शिलालेख न मिले हों और किसी पुस्तक का ज़िक्र न हुआ हो। भगवान श्री कृष्ण जी ने श्री मद्भागवत गीता में स्पष्ट कहा कि लेखकों में, मैं ऋषि वेदव्यास हूँ और ग्रंथों में, मैं ही भागवतपुराण और श्री मद्भागवत गीता हूँ। भगवान शिव, जिनके डमरू से संस्कृत भाषा का प्राकट्य हुआ और तमिल भाषा ने उन्हीं से अस्तित्व पाया । अतैव,शिव पुराण में सदाशिव स्वंय कहते हैं कि शब्दों में, मैं ओंकार हूँ। यही नहीं विश्व के सभी धर्मों में शब्द पूज्यनीय माने गये हैं। इसलिए विश्व का प्रत्येक लेखक आराधनीय है और इसी क्रम में आज आपको शब्दों से शब्दों को रूबरू करायेंगे और वह शब्द होगें, भारतवर्ष की उस महान, दिव्य साहित्यिक, स्थावर-जंगम सम्मोहित शख्सियत आदरणीय श्री इन्दु भूषण कोचगवे जी से, जिन्होंने अनेकों विषयों पर हजारों दोहे लिखने कि अपनी विलक्षण शब्द सिद्धि से अंतरराष्ट्रीय साहित्यकारों में एक अलग नाम-पहचान-मुकाम पाया है जिससे आज, हिंदी भाषा की 'दोहा मणि' उपाधि शब्द स्वत:ही आदरणीय श्री इन्दु भूषण कोचगवे जी के नाम के आगें नतमस्तक हो गया। आइये! जानते हैं उनकी अभूतपूर्व अविस्मरणीय नैतिक मूल्यों से ओत-प्रोत अनुकरणीय जीवन यात्रा-
जन्म - आदरणीय श्री इन्दु भूषण कोचगवे जी का जन्म एक कुलीन कायस्थ परिवार में 30 जून 1939, वाराणसी के सन्निकट मुगलसराय में हुआ। उनकी पथप्रदर्शक माता श्री का नाम श्री मती चंद्रप्रभा देवी और प्रेरणास्रोत उनके पिता श्री का नाम श्री जय मंगल प्रसाद जी हैं जिनकी छत्रछाया में उन्होंने सदा लोकमंगल कार्यों को ही अपने जीवन का अंग बनाया।
शिक्षा - रेलवे इंटर कॉलेज मुगलसराय, काशी हिंदु विश्वविद्यालय पटना विश्वविद्यालय, काशी विद्यापीठ, गोरखपुर विश्वविद्यालय से एम. एस. सी., एम. ए., बी. एड्., डिप्लोमा इन फाईन आर्ट्स, 1969 से अक्टूबर 1978 तक - नगरपालिका इंटर कॉलेज, मुगलसराय, रसायन विज्ञान प्रवक्ता रहे। 1978 - फरवरी 1999 तक - रेलवे इण्टर कॉलेज, मुगलसराय से प्रधानाध्यापक के पद से सेवामुक्त। अक्टूबर 1999 से जुलाई 2001 तक - प्राचार्य, एस. जी. आर. आर. पब्लिक स्कूल, भानियावाला, देहरादून।
उत्तराखंड मुक्त विश्वविद्यालय में बी.एड्. (स्पेशल) पाठ्यक्रम, प्रारम्भ कराने में सफल रहे-
अक्टूबर 2001-2007 तक - शार्प मेमोरियल स्कूल फॉर द ब्लाइण्ड, देहरादून जोकि भारत में दृष्टि बाधित बच्चों के लिए सर्वप्रथम स्थापित विद्यालय है। जिसमें दृष्टिबाधित विद्यार्थियों के सेवार्थ शिक्षण एवं प्रशिक्षण कार्य किया । इतना ही नहीं करूण हृदयी, समग्रदृष्टि व्यक्तित्व के धनी आदरणीय श्री इंदुभूषण कोचगवे जी उत्तराखंड मुक्त विश्वविद्यालय में बी.एड्. (स्पेशल) पाठ्यक्रम, प्रारम्भ कराने में सफल रहे।
''चित्रांचल कल्याण समिति'' की स्थापना-
इसके बाद श्री इन्दु भूषण कोचगवे जी ने समउन्नत समाज की भावना से सन् 2003 में ''चित्रांचल कल्याण समिति'' की स्थापना करके दिव्यांग बच्चों के हितार्थ ''समुदाय आधारित पुनर्वास'' के कार्य में संलग्न रहे।
स्वयंसेवी संस्थाओं में स्थायी सदस्य -
मूक बधिर बच्चों के विद्यालय 'बजाज इंस्टीट्यूट ऑफ लर्निंग', उत्तराखंड राज्य बाल कल्याण परिषद'', भारत विकास परिषद 'द्रोण' उत्तराखंड डिस्लेक्सिया एंड 'डिस्एबिलिटी एसोसिएशन', हिन्दी साहित्य समिति, काशी हिंदू विश्वविद्यालय प्राचीन छात्र समिति, देहरादून में स्थायी सदस्य के रूप में अभी तक सम्मान सहित कार्यरत हैं।
अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर प्रकाशित रचनायें -
देश की सुप्रसिद्ध पत्र - पत्रिकाओं जैसे - 'धर्मयुग', आज, गाण्डीव, सरिता, विज्ञान परिचर्चा, तथा रत्नांक, में कहानी तथा कविताएं प्रकाशित । वर्तमान में आपके मार्गदर्शन में वराणसी से प्रकाशित होने वाली राष्ट्रीय मासिक पत्रिका 'सच की दस्तक' के अभिभावक एवं संरक्षक।
साहित्यिक रूझान - दोहे लिखने में सिद्धहस्त ('गढ़ा घरौंदा' पुस्तक में विभिन्न विषयों पर, जैसे - ममता के प्रहरी (माता-पिता), बेटी, बचपन, अनाथ बच्चे, विकलांगता, मौसम, आदि पर 720 उम्दा दोहों का संकलन) ।
ई-मेल ibkochgaway@gmail.com
साहित्य भाष्कर ,दोहामणि,समाजसेवी
श्री इन्दु भूषण कोचगवे जी का
दूरदर्शन (टीवी) इंटरव्यू लिंक - https://youtu.be/vmStBdsn-XU
श्री इन्दु भूषण कोचगवे जी का परिवार : फाईल फोटो
श्री इन्दु भूषण कोचगवे जी की साहित्यिक मित्रमण्डली
बढ़े कदम जब राह में, अपने थे सब लोग
गले लगाया प्यार से, मिला सहज सहयोग
जीवन का सबसे बड़ा गुरु समय होता है,
क्यों कि जो कुछ समय सिखाता है,
वह कोई और नहीं सिखा सकता।
प्रतिदिन आती ज़िन्दगी, कुछ शर्तों के साथ।
दे जाती नित शाम को, अनुभव सब के हाथ।।
_ इन्दु भूषण कोचगवे
Sarva Dharma Sama Bhava
(सर्व धर्म सम भाव)
मन्दिर में पूजन किया, मस्जिद पढ़ी नमाज़।
गिरजाघर में भजन प्रभु, सधा न कोई काज।।
मन्दिर में गीता मिली, मस्जिद में कुरआन।
मिली बाइबिल चर्च में, नहीं मिला भगवान।।
पाप पुण्य की खोज में, घूमा चारों धाम।
व्यर्थ गँवाया धन समय, निज मन आया काम।।
घर आ कर देखा यहाँ, बैठे दो इंसान।
नयनों में ममता लिए, होंठों पर मुस्कान।।
मन की आँखें जब खुलीं, तब आई पहचान।
तात-मात के रूप में, घर पर हैं भगवान।।
_इन्दु भूषण कोचगवे
विधा - मुक्तक
विषय - संस्कार
सजा कर स्वप्न नयनों में, सदा सम्पर्क करता हूँ
सही सहयोग मिलता है,तभी सत्कर्म करता हूँ।
मिला संस्कार ही ऐसा, जगाता भाव सेवा का,
समर्पित भावना मेरी, सभी से प्यार करता हूँ।
सही संस्कार जीवन का, सदा श्रृंगार करता है।
मिलेगी क्यों नहीं मंज़िल, यही विश्वास पलता है।
यहाँ पर दर्द है लेकिन, सिखाता मर्म जीने का,
सदा अनुभव भरा जीवन, यही संज्ञान रखता है।
सुसंस्कृत हो अगर जीवन, तभी सद्भाव पलता है।
समय पर काम जो आए, वही व्यवहार फलता है।
सजाते घर सभी मिलकर, समझते प्यार की भाषा,
चलें उस गाँव में हम सब, जहाँ परिवार पलता है।
_इन्दु भूषण कोचगवे
दिव्यांग
_______
1 श्रवण से सुन नहीं सकता,
अधर आभास देते हैं।
इशारे से बताते हो,
नयन सब भाँप लेते हैं।
बधिर कहकर ज़माने ने,
रुलाया आज तक लेकिन,
सफलता की घड़ी में बस,
विधाता साथ देते हैं।
2 हुए बाधित नयन लेकिन,
मुझे झुकना नहीं आया।
बहा कर नीर नयनों से,
कभी रोना नहीं भाया।
अगर सामर्थ्य है मुझमें,
सफलता दौड़ आएगी,
मुसीबत लाख आयी पर,
मुझे रुकना नहीं आया।
3 नयन तो खो दिया मैंने,
श्रवण से सुन नहीं सकता।
व्यथा तो हो रही लेकिन,
जुबाँ से कह नहीं सकता।
बचा बस स्पर्श ही केवल,
अगर मस्तिष्क है साथी,
इन्हीं के साथ चलता हूँ,
मगर मैं थक नहीं सकता।
4 हुए असमर्थ अंगों से,
उन्हें विकलांग कहते हो।
छिपी है लाख क्षमताएँ,
नहीं स्वीकार करते हो।
तिरस्कृत हो रहे लेकिन,
दिखाया विश्व में जौहर,
पदक तो पा रहे ये ही,
अगर विश्वास करते हो।
5 नहीं मस्तिष्क में क्षमता,
न धीरज का पता इनको।
लिखे जो शब्द पुस्तक में,
कभी ना पढ़ सके उनको।
कभी बैठे हैं कुर्सी पर,
कभी लेटे वो बिस्तर पर,
जहाँ से चाहते क्या हैं,
नहीं समझा सके जग को।
6 अनाथों की कहानी है,
यहाँ बचपन बिराना है।
कभी कूड़ा कभी करकट,
कभी कीचड़ उठाना है।
मिला बस दर्द ही केवल,
बिता कर नर्क का जीवन,
न पढ़ने की मिली फुर्सत,
न रोटी का ठिकाना है।
7 दिया जो नाम अपनों ने,
उसी के साथ रहता हूँ।
नहीं सजती वहाँ महफिल,
जहाँ मैं काम करता हूँ।
नहीं मैं जानता लेकिन,
असल पहचान ही अपनी,
सदा बस बाँटता खुशियाँ,
इसी में मस्त रहता हूँ।
8 मिली यह ज़िन्दगी जब से,
इसी से प्यार करता हूँ।
सभी हैं व्यस्त जीवन में,
मगर मैं राह चलता हूँ।
पता लगता नहीं मुझको,
कि कितनी दूर है मंज़िल,
निरन्तर कर्म करके भी,
नहीं कुछ आस करता हूँ।
9 मधुर सी कल्पना लेकर,
सदा सम्पर्क करता हूँ।
सही सहयोग मिलता है,
तभी सत्कर्म करता हूँ।
मिला संस्कार ही ऐसा,
जगाता भाव सेवा का,
समर्पित भावना मेरी,
सभी से प्यार करता हूँ।
10 दुखद अनुभाग जीवन का,
सदा आधार बनता है।
सुखद अनुभूतियाँ होंगी,
यही विश्वास पलता है।
दुखों में दर्द बसता है,
सभी हम जानते लेकिन,
मधुर व्यवहार जीवन का,
सदा शृंगार करता है।
11 जली जब स्नेह से बाती,
जगा दी दीप की ज्वाला।
सुई चुभती सुमन मैं तो,
बनाती प्रेम की माला।
तपा जो स्वर्ण पावक में,
वही तो हार बनता है,
सकेगी बन वही मीरा,
पिये जो विष भरा प्याला।
12 मिटा दे दर्द औरों का,
वही मैं गीत गाता हूँ।
सजाकर शब्द में सरगम,
सभी से प्रीत पाता हूँ।
दिया जो कुछ विधाता ने,
बनी वह रागिनी मेरी,
तुम्हारा प्यार है केवल,
इसी से जीत जाता हूँ।
_इन्दु भूषण कोचगवे
जीवन एक बाँसुरी की तरह है । जिसमें बाधा रूप
कितने भी छेद क्यों न हों,लेकिन वास्तव में जिसे बजाना आ गया,उसे जीवन जीना आ गया।
_इन्दु भूषण कोचगवे
सजा रही कठिनाइयाँ, देकर शुद्ध विवेक।
जीवन बंशी बन गयी, लेकर छेद अनेक।।
_इन्दुभूषण कोचगवे
यह सरिता बहती रहे सुमन अम्लान
ऐसे हीं करते रहें अनथक शर सन्धान
मुझे गर्व है कि देश - दुनिया की महान साहित्यिक शख्सियत दोहामणि आदरणीय श्री इन्दु भूषण कोचगवे 'गुरूदेव' जी के बारे में पढ़ने और लिखने का सुअवसर मिला। हे! ज्ञान की देवी माता सरस्वती आपको नमस्कार है। हे! माँ आप हमारे गुरूदेव की सदैव रक्षा कीजिएगा। आदरणीय गुरूदेव जी के श्री चरणों में कोटिश प्रणाम।🙏
आदरणीय गुरूदेव आपके शब्दों के सामने मेरे शब्द सदा फीके रहेगें पर हे!विराट हृदय के स्वामी मेरे गुरूदेव यह छोटी सी शब्द पुष्प माला आपके सम्मान में समर्पित करती हूँ। कृपया स्वीकार करें।
जिनके शब्दों में हो 'प्रेम'
वही 'दिलों'पर राज्य करते हैं
बना दें जो,
'शब्द' और 'मात्राओं' को आभूषण
वही हैं दोहामणि श्री 'इन्दु भूषण'।
तथा,
जिनके दोहे सुनकर दर्द हो जाये 'Go Away'
वो हैं Shri Indu Bhushan Kochgaway.
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