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विश्व शांति दिवस के मायने -

 

विश्व शांति दिवस के मायने -

मैं स्पष्ट कहतीं हूं कि विश्व शांति तब तक पूर्ण रूप से स्थापित नहीं हो सकती जब तक कि इस हैवानियत को जन्म देने वाली, हड़प बदनीति यानि राजनीत का मन-मस्तिष्क से अंत नहीं हो जाता। जब तक हम हमारे मन - मस्तिष्क से अंहकार रूपी कबूतर नहीं उड़ा देते तब तक शांति सम्भव नहीं है।

__आकांक्षा सक्सेना, न्यूज ऐडीटर सच की दस्तक

हर साल 21 सितंबर को विश्व शांति दिवस या अंतरराष्ट्रीय शांति दिवस मनाया जाता है। वैसे आमतौर पर इस शब्द का इस्तेमाल अंतरराष्ट्रीय संदर्भ में युद्धविराम या संघर्ष में ठहराव के लिए किया जाता है। शांति दिवस को मनाने का मुख्य उद्देश्य अंतर्रष्ट्रीय स्तर पर सभी देशों और नागरिकों के बीच शांति व्यवस्था कायम करना और अंतरराष्ट्रीय संघर्षों और झगड़ों को निपटाना है। संयुक्त राष्ट्र ने दुनियाभर में शांति का संदेश पहुंचाने के लिए कला से लेकर साहित्य, संगीत, सिनेमा और खेल जगत की प्रसिद्ध हस्तियों को शांतिदूत नियुक्त किया हुआ है। पर हैरानी इस बात की जब कहीं भी धरती हैवानियत से लाल होती है तब ये शांतिदूत कहां विलुप्त हो जाते हैं। बता दें कि म्‍यांमार में 1 फरवरी 2021 की सुबह सेना ने वहां की लोकतांत्रिक सत्‍ता का तख्‍तापलट कर शासन अपने हाथ में लेकर क्रूरता की सारी हदें पार कर दीं हैं। तब से ही म्‍यांमार की सड़कों पर सैन्‍य शासन के खिलाफ लोगों का विरोध प्रदर्शन जारी है। संयुक्त राष्ट्र के मानवाधिकार कार्यालय की रिपोर्ट के मुताबिक अब तक इन विरोध प्रदर्शनों में सुरक्षाबलों के हाथों 568 के करीब लोगों की जान चुकी है। इनमें महिला और 43 बेकसूर बच्‍चे भी शामिल हैं जो घर से बाहर खेलने निकले और कभी वापस न आ सके। इन्हीं बच्चों में से एक नाम है दस साल की बच्ची ''आये म्यात थु'' का। ''थु'' इन दिनों दुनियाभर में म्यांमार में चल रहे सैन्य क्रूरता की पराकाष्ठा का पर्याय बन गई है। रविवार को उसके अंतिम संस्कार के कॉपी पेंसिल डॉल आदि चीजों से के साथ अंतिम दर्शन के मार्मिक दृश्यों ने दुनिया को झकझोर दिया।बात 27 मार्च 2021की है। शाम 5ः30 बजे थे। अफ़गानिस्तान में 15 अगस्त 2021को हुए तख़पलट के साथ पाकिस्तान, चीन, दोहा, ईरान और टर्की को छोड़कर सभी देशों में अफगानी दूतावास बंद हो गए और अफ़गानिस्तान में खुल गये हैवानियत के दरवाजे। अफगानिस्तान से भारत लौटे लोगों ने जो वहां की दहशत सुनाई उससे हर कोई सिहर गया। उन्होंने यह भी कहा कि भारत को बहुत सम्मान हासिल है पर पाकिस्तान मुर्दाबाद के नारे वहां लगे हैं क्योंकि पाकिस्तान तालिबान का साथ दे रहा है। तालिबान के दरिंदे महिलाओं की मंडी लगा रहे हैं वहां महिलाओं और बच्चों का बुरा हाल है। तो अब कहां हैं- कमला हैरिस जी जो कहतीं हैं कि उनका जीवन महिलाओं को समर्पित है। कहां हैं मिशेल ओबामा, कहां है हिलेरी क्लिंटन और कहां है ब्रिटेन की महारानी और कहां है वो 57 इस्लामिक देशों के मुखिया जो मुसलमानों पर हो रहे जुल्मों पर चुप हैं? और तो और यूएन भी चुप है। रूस और अमेरिका जिसे सिर्फ़ हथियार आदि बेचने से मतलब है। वो भी चुप ।हर साल विश्व शांति पर वैश्विक पुरस्कार सम्मान लेने वाले महारथी भी चुप हैं। वाह! क्या यही है विश्व शांति दिवस के मायने? आज अफ़गानिस्तान के आंसुओं पर आप किस मुंह से विश्व शांति दिवस मनायेगें। यह तो देखने लायक होगा।ग़ौरतलब हो कि संयुक्त राष्ट्र ने 1981 में विश्व शांति दिवस मनाने की घोषणा की थी। पहली बार साल 1982 में विश्व शांति दिवस मनाया गया था। इस दिवस का उद्देश्य शांति के महत्व व मायनों के बारे में सार्वजनिक जागरूकता बढ़ाना है। अब आप कहेगें कि आखिर! इस दिवस की जरूरत क्या है? इसका महत्व क्या है? तो इसका सबसे बड़ा महत्व है सम्पूर्ण विश्व में मैत्रीपूर्ण संबंधों को बढ़ावा देना तथा विविधता में एकता का दर्शन को प्रगाढ़ करना, सम्पूर्ण विश्व में सौहार्दपूर्ण माहौल स्थापित करना, विश्व की सभी सरकारों व राजाओं को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर हुए समझौतों को याद दिलाने के लिए, सतत विकास के लिए लोगों में चेतना जगाने के लिए, एकता के सूत्र में बंधकर शांतिपूर्ण ढंग से किसी संस्था व कम्पनी के जरिये बिना भेदभाव के लोगों को जोड़कर आपसी जंग विरोध पर विराम लगाकर मानसिक तनाव से बाहर निकालने जैसी योजनाओं को मानवता को केन्द्र में रखकर उसको हर सम्भव मदद का भरोसे पर कार्य करना जैसे अनेकों लाभ, उद्देश्य शामिल हैं। कुल मिलाकर संयुक्त राष्ट्र संघ के सभी कार्य मानवता को समर्पित हैं और उन सभी कार्यों व सभी दिवस के मनाने का एक मात्र उद्देश्य है प्रेम, शांति और मानवता की सेवा और रक्षा के लिए पूरे विश्व में कार्य करना। ये तो हुई यूनाइटेड नेशन के द्वारा अंतर्राष्ट्रीय शांति दिवस की बातें पर आप सभी भारतीय यह तो जानते हैं कि हम सब के पूर्वजों ने एकता का यह सूत्र सदियों पहले ही दे दिया था तब तो कोई यूनाइटेड नेशन नहीं था, कोई दिवस भी नहीं था, सच कहूँ तो जब किसी का दिवस मनाया जाने लगे तो समझ लो कि मानवता किस पायदान पर पहुंच चुकी है जो हमें दिवस मनाने पड़ रहे हैं, यह विश्व की सम्पूर्ण मानवता के लिए कोई बहुत अच्छी खबर नहीं है। आज एकल परिवार ने संयुक्त परिवार की नींव में सेंध लगा दी है, आज की आधुनिक व भौतिकवादी, धन, पद, नाम की लोलुपता ने सारी मानवता को शर्मसार कर के रखा हुआ है, हमें चुल्लू भर पानी में डूब जाना चाहिए कि मदर, फादर, बेटी, दिवस मनाने पड़ रहे हैं ताकि मॉडर्न बच्चे इसी बहाने फोन पर अपने बूढे मांबाप को याद कर लें। हम मानव नीति, नियम, प्रमाणिकता, सत्य से इतना गिर चुके हैं कि आज हमें दिवस की वैशाखी चाहिये, यह वही भारत है जहां राम नवमी, ईद,क्रिसमस, बुद्ध पूर्णिमा, लोहडी, यानि सभी धर्मों के त्योहारों पर मेले, मीलाद, मिलन समारोह हुआ करते थे, ऐसी खूबसूरत रौनक होती थी कि पूछो ही मत और आज तो नारंगी, हरा रंग तक वैमनस्यता की भेंट चढ़ चुका है, मेले का मतलब होता था दस गांव के लोग आपस मिलते थे, होली पर फाग के बहाने लोग मिलते थे, टेसू झेझीं पूरी रात नचाये जाते थे, अब न उस तरह के मेले लगते हैं और न उस तरह के दिलदार लोग बचे। इन का एक ही कारण है लहू में बहती राजनीत, न्यायालय में, कॉलेजों में, हर जगह अध्यक्ष महामंत्री, हर जगह नेतानगरी, हर जगह  राजनीत और अंतरिक्ष चीरती महत्वाकांक्षाओं ने इंसान को धन से तौल कर रख दिया, किसी संगठन में बड़ा पद उस व्यक्ति की योग्यता व स्वभाव देखकर नहीं बल्कि उसका बैंक बेलेंस, गाड़ी बंगला देखकर दिया जाता है और अगर फिर भी वह संगठन टूटता है तो सिर्फ़ झूठ, अविश्वास और गंदी राजनैतिक चालों से कि फूट डालो और राज करो। मैंं भी कई संगठनों में रहीं हूं उसमें मैनेें जब यह बात रखी कि संगठन का असली उद्देश्य है क्या? अगर यह धार्मिक है तो भगवान की भक्ति काा प्रचार प्रसार करो, यहां मंंच पर खुद मुकुुट पहन कर मालाओं से लदकर, उस बैनर पीछे लगी भगवान की फोटो का अपमान क्यों? संगठन न अपने आराध्य के हैं और न अपने लोगों के यह सब चुनावी मैदान में उतरने की तैयारी मात्र है। हमने कहा इस शहर के सभी संगठन एक मंच पर आकर शहर के विकास की बात कर सकते हैं, क्या दहेज के खिलाफ एकजुट हो सकते हैं, नहीं जी शहर के सब संगठन अपनी ढ़पली अपना राग अलाप कर पदों को मोटी कीमत पर बेंच कर सबको मूर्ख बना रहे हैं। जरा सोचिए! जब शहर के सामाजिक व जातीय, धर्म के संगठन एक मंच पर आने में संकोच कर रहे हैं तो विश्व के सभी संगठन एक कैसे हो सकते हैं और कैसे हो सकती है विश्व शांति और एकता? यह एकता जो है इसका दूसरा पहलू है समानता जोकि सिर्फ़ किताबी बातें मात्र है। हम मानवों ने अपने निजि स्वार्थ में इतनी सारी गलतियां कि हैं जिनका ना हमें पछतावा है न अफसोस! और ना ही प्रकृति द्वारा मिलने वाले दंड का डर। इन्हीं बेवकूफ़ियां के कारण ही हम मानवता से पतित होकर दानवता के ब्लैक होल में गुम होते जा रहे हैं। रही बची कसर हमारे समाज की रूढ़िवादी व धनग्राही सोच ने पूरी कर दी है। आज समाज में आपने अक्सर देखा होगा कि उसी घर की सरकारी बहू को सास, देवर, ननद के द्वारा चाय बिस्किट मिलते हैं और उसी घर की बिना नौकरी वाली बहू से दिन-रात काम कराया जाता है यहां तक कि दहेज कम मिलने पर उसे जला कर मार तक दिया जाता है तो कहीं हलाला होता है। वहीं अगर गरीब मित्र आये तो चाय पानी में पार्ले बिस्किट और कार वाला अमीर मित्र आये तो रमाकांत हलवाई की काजू बर्फी मंगवाते हैं सिर्फ इसलिये कि इस मित्र से काम लेने हैं और इसके साथ खड़े रहने में स्टैंडर्ड बढ़ता है, गरीब आदमी बहुत कम चुनाव जीतते हैं कि उन पर बड़ी बड़ी लच्छेदार बातें नहीं होती वह चुनावी जुमले बोलने के आदी नहीं होते बस गरीब के पास सत्य है जिसकी किसी को जरूरत नहीं और जब इंसान सत्य से जितना दूर होता जाता है उसका पतन उतना ही करीब आता जाता है और उन्हें फिर से जोड़ने की प्रक्रिया का शुभारंभ किया जाता है तो इस तरह के विश्व शांति दिवस की घोषणाएं की जाती है। काश! कि हम अब भी सुधर जायें, अब भी जाग जायें, वरना आने वाली पीढ़ियों को विश्व इंसान दिवस, विश्व मानव दिवस यहां तक कि विश्व सत्य दिवस तक विश्व न्याय दिवस, विश्व रोटी सुरक्षा दिवस, प्राण सुरक्षा दिवस मनाने पड़ेगें क्योंकि तब तक  इंसानियत व मानवता की इतनी हानि हो चुकी होगी।





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