यूपी में चुनावी शंखनाद
_आकांक्षा सक्सेना, न्यूज ऐडीटर सच की दस्तक
आदरणीय शुभचिंतकों यूपी चुनाव का शंखनाद हो चुका है और आचार संहिता लग चुकी है । आचार संहिता का मतलब है कि देश में स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव कराने के लिए चुनाव आयोग कुछ नियम बनाता है। चुनाव आयोग के इन्हीं नियमों को आचार संहिता कहते हैं। लोकसभा/विधानसभा चुनाव के दौरान इन नियमों का पालन करना सरकार, नेता और राजनीतिक दलों की जिम्मेदारी होती है और जनता की भी जिम्मेदारी होती है ।आचार संहिता चुनाव की तारीख की घोषणा के साथ ही लागू हो जाती है। देश में लोकसभा चुनाव हर पांच साल पर होते हैं। अलग-अलग राज्यों की विधानसभा के चुनाव अलग-अलग समय पर होते रहते हैं। चुनाव आयोग के चुनाव कार्यक्रमों का एलान करते ही आचार संहिता लागू हो जाती है।आचार संहिता चुनाव प्रक्रिया के संपन्न होने तक लागू रहती है। आचार संहिता यहां तक कहती है कि जाति-धर्म-वर्ग-धन आदि किसी चीज का लालच न देते हुये वोट मांगे जायें पर चुनावों का सच किसी से छिपा नहीं है । वैसे तो, राजनीतिक परिदृश्य से उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव की रणनीति तय हो चुकी है।गौरतलब है कि उत्तर प्रदेश में 7 चरणों में चुनाव होंगे। जबकि नतीजे 10 मार्च को आएंगे। उत्तर प्रदेश की राजनीति काफी दिलचस्प मानी जाती है और यही कारण है कि सभी लोगों की निगाह उत्तर प्रदेश पर टिकी हुई है। उत्तर प्रदेश में फिलहाल भाजपा सत्ता में है। ऐसे में एक बार फिर से उसके लिए सत्ता में वापसी करना ऐतिहासिक होगा। जिसके लिये योगी जी द्वारा बच्चों को टेबलेट भी दिये जा रहे हैं और सुरक्षा व्यवस्था भी पहले से ज्यादा सख़्त है। वहीं इस चुनावी बरसात में जातवाद, हिंदू मुस्लिमवाद,मंदिर-मस्जिद,आंदोलन सबकुछ साफ तैरता बखूबी दिखाई दे रहा है और पार्टियां हर जात - वर्ग को साधने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ रहीं हैं। जिसपर भाजपा प्रदेश अध्यक्ष एवं सांसद सुरेश कश्यप ने कहा की अगर हाटी समुदाय की लड़ाई किसी पार्टी ने लड़ी है तो वह भाजपा है , कांग्रेस ने केवल इस मुद्दे पर राजनीति की है। भाजपा ने निरंतर हाटी समुदाय को जनजातीय दर्जा दिलाने का प्रयास किया है। वहीं बसपा और कांग्रेस भी ताल ठोकती नजर आ रही है कि लड़की हूं लड़ सकती हूँ। पर आंकड़े गवाही देते हैं कि टक्कर सपा और बीजेपी में है। वहीं योगी आदित्यनाथ ने कहा है कि मेरे टक्कर किसी से नहीं। जनता समझदार है और फर्क साफ है। उधर सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) को टक्कर देने के लिए अपने अभियान को तेज करते हुए, समाजवादी पार्टी (सपा) विभिन्न समुदायों को लुभाने के लिए कई आउटरीच कार्यक्रमों में लगी हुई है। हालाँकि अब तक जो स्पष्ट हुआ है वह यह है कि सपा राज्य में मुस्लिम मतदाताओं तक पहुँचने के लिए किसी तरह के कदम नहीं उठा रही है। अखिलेश के इस कदम के पीछे की वजह राजनीति का चर्चित "टीना फैक्टर" (कोई विकल्प नहीं) है। राजनीति में टीना फैक्टर विकल्पविहीनता की स्थिति को कहते हैं।सपा ने यूपी चुनावों के लिए पांच छोटे दलों के साथ गठबंधन किया है, लेकिन इससे इतर सपा ने किसी भी पार्टी के साथ हाथ नहीं मिलाया है, जिसका राज्य में मुसलमानों के बीच बेस माना जाता है। कुछ समय पहले ही अखिलेश ने असदुद्दीन ओवैसी की एआईएमआईएम से हाथ मिलाने से इनकार कर दिया था। जबकि लैला के सपने में छैला तक की बातें की गयीं । इसके पीछे मुख्य कारण, सपा नेताओं का कहना है कि पार्टी भाजपा के पक्ष में बहुसंख्यक हिंदू वोटों का ध्रुवीकरण नहीं करना चाहती थी। मुस्लिम समुदाय उत्तर प्रदेश की आबादी का लगभग 20 प्रतिशत है, लेकिन मौजूदा सांप्रदायिक स्थिति को देखते हुए, कोई भी विपक्षी दल राज्य में बहुसंख्यक समुदाय की प्रतिक्रिया के डर से उनके बारे में खुलकर बात नहीं कर रहा है।एक रिपोर्ट के अनुसार सपा को डर है कि अगर वह मुस्लिम मुद्दों के बारे में बहुत मुखर हो गई, तो इससे यूपी में हिंदू समुदाय के बीच ध्रुवीकरण हो जाएगा। सपा नेता ने कहा कि पार्टी ने पिछले साल पूरे यूपी में अपने रैंक और फाइल के लिए प्रशिक्षण शिविर आयोजित किए, जिसमें स्थानीय नेताओं को यह समझा गया कि अगर पार्टी राज्य में अपनी सरकार बनाना चाहती है तो मुस्लिम मुद्दों पर सार्वजनिक बहस को रोकने की जरूरत है। नेता के अनुसार सभी का मानना हैं कि सपा भाजपा से बेहतर मुसलमानों के लिए होगी और इसीलिए पार्टी के भीतर का मुस्लिम नेतृत्व भी पार्टी के शीर्ष नेतृत्व द्वारा बनाई गई रणनीति से सहमत है। जबकि सपा योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार को ब्राह्मणों, पिछड़े समुदायों और दलितों से संबंधित विभिन्न मुद्दों पर निशाना बना रही है, उसने राज्य के धर्मांतरण विरोधी कानून और मंदिर के लिए नए सिरे से मांग जैसे मुद्दों पर चुप रहना चुन लिया है। इस महीने की शुरुआत में अखिलेश जी ने लखनऊ के गोसाईगंज इलाके में अपनी पार्टी के एक ब्राह्मण नेता द्वारा बनवाए गए भगवान परशुराम जी के मंदिर में पूजा-अर्चना करके ब्राह्मण वोट साधने की पूरी कोशिश की। इसी तरह, उन्होंने रायबरेली जिले की अपनी यात्रा के दौरान दिसंबर में एक हनुमान जी मंदिर का भी दौरा किया। यह पूछे जाने पर कि क्या इससे पार्टी को मुस्लिम समुदाय से समर्थन खोना पड़ेगा, सपा के राष्ट्रीय प्रवक्ता अब्दुल हफीज गांधी ने कहा, “समाजवादी पार्टी समावेशी राजनीति में विश्वास करती है। अब यह चुनावी मौसम है और हर नेता जनता को सब्जबाग दिखायेगा, नौकरी का आश्वासन दिया जायेगा पर चुनाव जीतने के बाद ढ़ाक के वही तीन पात। क्या कभी किसी पार्टी ने यह सोचा! कि कचहरी में रोती बिलखती बेरोजगार पति द्वारा परित्याग की हुई महिलाएं आखिर! कैसे अपना भरण पोषण करें? कोर्ट द्वारा विपक्ष पार्टी से महीने दो हजार मिल भी जायें तो आज की मंहगाई में वह इतनी छोटी राशि से कैसे अपनी पहाड़ जैसी जिंदगी का बोझ ढ़ोयें। क्या किसी सरकार ने इन लड़कियों की सरकारी नौकरी में प्राईवेट नौकरी में कहीं कोई सुविधा या आरक्षण का प्रावधान किया है? तो जवाब होगा नहीं? तो कैसे कहते हैं कि हम बेटियों का हित चाहते हैं?लड़की पर रोजगार नहीं, धन नहीं तो निज हक के लिए कैसे लड़ सकती है? जो बेटियां कोर्ट में गुड़ियों की उम्र में जाती हैं और बुढ़ियों की उम्र तक तारीख के झमेलों में घसीटी जाती हों, ऐसे मैं बेटी दिवस के क्या मायने होगें? वो कहां जायें? पुरूष परित्याग कर दे तो वह बेटी के जीवन के लिए सरकार क्यों गम्भीर नहीं? आखिर! मुकदमों की समय सीमा क्यों निर्धारित नहीं? बुरा मत मानना जो मैं सच लिख दूं कि मान. जितनी चिंता आप सबको चुनावों की रहती है सच कहूं तो उतनी चिंता जनता के अथाह दर्द की होती तो आपको वोट मांगने की जरूरत ही न पड़ती। आज आप सर्वे करवा लीजिए कि देश की किसी भी गली नुक्कड़ चौराहे से निकलो तो कई घर ऐसे मिल जायेगें जहां दहेज के लालच में पति द्वारा छोड़ी गई महिलाएं अंधेरे में सिर धुन रही हैं। वह जनरल विरादरी में हैं तो सरकारी योजनाओं का ज्यादा लाभ तक उन्हें नहीं मिल पाता । बेचारी किसी तरह अकेला जीवन काटने पर विवश हैं।दूसरी तरफ़ खेती के मुकदमें यह भी पीढ़ी दर पीढ़ी चलते हैं । जब न्याय पाने वाला ही न बचा तो यह न्याय कहां हुआ? आखिर! हमारी न्याय व्यवस्था का आधुनिकीकरण कब होगा? कोई तो समय सीमा होनी चाहिए । वहीं दूसरा वर्ग है सीवर में घुस कर सफाई कर्मचारियों का वर्ग जिसे सीवर यानि मौत से साक्षात्कार करना पड़ता है और गरीबी के चलते वह बेबस हैं। आखिर!क्यों यह काम मशीनों द्वारा नहीं किया जा सकता? आखिर! जमीनी मुद्दे कब प्रकाश में आयेगें? जब हजारों करोड़ों के प्रोजेक्ट लगायें जा सकते हैं तो क्या हर देशवासी को रोजगार नहीं दिया जा सकता? सिक्किम में एक घर एक व्यक्ति रोजगार योजना शुरू हुई पर सिर्फ़ गरीबों के लिए। अरे! भई मध्यम वर्ग किसे रोयेगा? जब आप वोट सबका चाहते हो तो रोजगार सबको क्यों नहीं देते? कोई योजना हो तुरंत फिल्टर लगा दिया जाता है । ये कहां तक सही है माननीय। कितनी बड़ी विडम्बना है कि जातिविशेष को पूरी जाति को ही गरीब मानकर पूरी सुविधाओं का लाभ मिलता है चाहे परिवार में सब सरकारी जॉब में क्यों न हो। जातिगत आरक्षण से मध्यम वर्ग उस हद तक पिछड़ गया है कि एक समय ऐसा आयेगा जब इसे आरक्षण की सबसे ज्यादा जरूरत होगी। ईश्वर ही जाने नीतिआयोग सब देखकर क्यों मौन है और तारीख पर तारीख लेकर पीड़ित जन अपनी किस्मत मान कर मौन है। और बेशर्मी से नेता लोग वोट लेकर चोट करते रहते हैं और लोग फिर भी वोट देते रहते हैं कि इस आशा से कि मेरा कुछ भला होगा। जब मैं ध्यान से देखतीं हूं कि मेरा देश हो या सम्पूर्ण विश्व रूपी एक शरीर जिसके रगों में राजनीति दौड़ रही है । आज स्कूल, कॉलेज, कोर्ट, धार्मिक संगठन, अस्पताल कमेटियां, हर जगह अध्यक्ष, महामंत्री और चुनाव यानि हर खेमे में राजनीति। आज बच्चा बचपन में ही नेताओं के नाम जान जाता है पर वैज्ञानिकों और उनके अविष्कारों के नहीं । वह पढ़ाई से जी चुराता है और भाषण देकर सरलता से नेता बनना चाहता है। क्योंकि यह उसे आसान लगता है। पूरे विश्व की यही हालत है कि राजनीति खून बनकर दिलों तक दौड़कर दिलों को तोड़ रही है घर परिवार बिखर रहे हैं और धन ही भगवान बन चुका है। कितना दु:खद है मानवता नैतिकता में भारी गिरावट देखी जा रही है और पता नहीं यह कहां तक गिरकर मनुष्यता का पकन करेगी और मनुष्य कब सत्ता को मोहपाश से छूट कर मानवता के साथ कदमताल कर सकेगा? दोस्तों! इसी देश में गद्दारों का एक मुठ्ठी भर समूह पीएम जी को दिनभर कोसता रहता है वहीं दूसरा क्रांतिकारियों का वर्ग हाथ जोड़कर सवाल करता रहत है सत्य की भीख मांगता रहता है कि आजादी के इतने वर्ष बीत गये आखिर! सुभाषचंद्र बोस जी और लाल बहादुर शास्त्री जी की मौत का सच कब सामने आयेगा? पर दोनों राष्ट्रनायकों पर सब मौन..? कुछ कहते हैं कि गुमनामी बाबा ही नेताजी थे और रोज यह बुलेटिन हो रहा था तो उस समय के पक्ष- विपक्ष के नेताओं ने गुमनामी बाबा से मिलकर सच जानने कोशिश क्यों नहीं की? यदि सच फाईलों में कैद है तो सारी फाईलें ओपिन क्यों नहीं करती सरकारें? कुछ लोगों की माने तो यदि नेताजी के मामले में कांग्रेस जिम्मेदार है तो सत्तारूढ़ बीजेपी सारी फाईलें ओपिन क्यों नहीं कर रही? अगर कांग्रेस दोषी नहीं तो आखिर! सच पर पर्दा क्यों? किसी पार्टी पर आरोप कब तक लादकर सच से किनारा होता रहेगा? अब देश के महान प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री जी की करें तो उनका पार्थिव शरीर अत्यधिक फूला हुआ क्यों था?क्यों थे अजीब धब्बे? क्यों था उनकी टोपी पर खून? आखिर! किसने की यह भयावह साजिश? भारतीय जनता को सच जानने का पूरा हक है पर समझ के बाहर है कि यह गम्भीर बातें कभी चुनावी घोषणा पत्र के मुद्दे नहीं बनते। खैर, जो हो पर जनता अपने स्व:विवेक से सच जान चुकी है कि यदि नेताजी बाहर आते तो राष्ट्रपति या प्रधानमंत्री ही बनते जो आज के भ्रष्ट नेताओं को मंजूर न होता। वह देवपुरूष थे जिन्होंने परमार्थ किया और भारतमाता की गोद में चुपचाप विलीन हो गये। अब यूपी में योगी आदित्यनाथ का शासन है जिसमें प्रजा खुद को सुरक्षित महसूस करती है। बाकि अब जो भी पार्टी की जैसी मंशा हो उसका सही-सही आकलन तो जनता ही करेगी और समय उसका माकूल जवाब देगा। गौरतलब है कि उत्तर प्रदेश में पहले चरण का मतदान 10 फरवरी को होगा जबकि दूसरे चरण का मतदान 14 फरवरी को होगा। तीसरे चरण का मतदान 20 फरवरी को होगा जबकि चौथे चरण का मतदान 23 फरवरी को होगा। 27 फरवरी को पांचवें चरण का, 3 मार्च को छठे चरण का जबकि सातवें चरण का मतदान 7 मार्च को होगा। चुनावी नतीजे 10 मार्च को आएंगे। इसके साथ ही कोरोनावायरस को लेकर चुनाव आयोग की ओर से कई तरह के निर्देश भी दिए गए हैं।बता दें कि
पहला चरण-10 फरवरी, दिन- मंगलवार
कुल सीटें- 58
11 जिले- बागपत, मुजफ्फरनगर, शामली, मेरठ, हापुड़, गाजियाबाद, बुलंदशहर, मथुरा, आगरा, गौतम बुध नगर और अलीगढ़।
दूसरा चरण- 14 फरवरी, दिन- सोमवार
कुल सीटें- 55
9 जिले- संभल, अमरोहा, बिजनौर, सहारनपुर, मुरादाबाद, रामपुर, बरेली, बदायूं और शाहजहांपुर।
तीसरा चरण- 20 फरवरी, दिन- रविवार
कुल सीटें- 59
16 जिले- कासगंज, एटा, फिरोजाबाद, हाथरस, मैनपुरी, फर्रुखाबाद, कन्नौज, इटावा, औरैया, कानपुर देहात, कानपुर नगर, जालौन, हमीरपुर, महोबा, झांसी और ललितपुर।
चौथा चरण- 23 फरवरी, दिन- बुधवार
कुल सीटें- 60
9 जिले- लखनऊ, हरदोई, सीतापुर, लखीमपुर खीरी, पीलीभीत, उन्नाव, रायबरेली, फतेहपुर, बांदा।
पांचवा चरण- 27 फरवरी, दिन- रविवार
कुल सीटें-60
11 जिले- बाराबंकी, बहराइच, श्रावस्ती, गोंडा, अयोध्या, अमेठी, सुल्तानपुर, प्रतापगढ़, कौशांबी, चित्रकूट, प्रयागराज।
छठा चरण-3 मार्च, दिन- गुरुवार
कुल सीटें- 57
10 जिले- बलरामपुर, सिद्धार्थनगर, महाराजगंज, कुशीनगर, बस्ती, संतकबीरनगर, अंबेडकर नगर, गोरखपुर, बलिया, देवरिया।
सातवां चरण- 7 मार्च, दिन- सोमवार
कुल सीटें-54
9 जिले- जौनपुर, मऊ, आजमगढ़, संत रविदास नगर, वाराणसी, मिर्जापुर, गाजीपुर, चंदौली और सोनभद्र।
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ReplyDeleteNeha Sharma
Sonia Singh Rajput
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