मुलायम सिंह यादव का लंगोट विजय कनेक्शन
एक बार हमने अपने दादाजी से पूछा था कि मान. मुलायम सिंह यादव जी मुख्यमंत्री होकर भी आप से अबे! लंगोट विजय क्यों कहते हैं? तो दादाजी ने जोर से हँसते हुए कहा था कि बचपन में हम सब पहलवान जो बनना चाहते थे.... और बचपन के साथी असली नाम कब लेते हैं? हमने कहा और आप सब पुराने साथी मिलते हैं मुलायम सिंह जी से? तो बोले, अब नहीं, अब सबके रास्ते अलग हैं। हमने कहा कि यह कैसा डर का कारोबार है कि दिल्ली में इटावा नाम सुनकर मुलायम सिंह के नाम से लोग किराये पर कमरा देने में डरते हैं? तब वह बोले कि कभी- कभी डर के सामने महाडर पैदा करना पड़ता है। भविष्य में कोई और मुख्यमंत्री आयेगा, यूपी में सीधे-साधे मुख्यमंत्री का कभी शासन चल ही नहीं सकता । यहां की तासीर तीखी है...(राजनीतिक तासीर) तुम्हें समझने में वक्त लगेगा...
साथियों! मुलायम सिंह यादव जी के ऐसे ही अनकहे किस्से उत्तर प्रदेश के कोने-कोने में बिखरे पड़े हैं। मुलायम सिंह यादव जी ने भी रामभक्तों पर गोली चलवाने का आरोप का वहन किया और लड़कों से गल्ती हो जाती है जैसे विवादित बयानों के कारण उन्हें जन आक्रोश भी झेलना पड़ा। ऐसे ही यूपी की साम्प्रदायिक कट्टरता भरी राजनीतिक में वोट प्रतिशत बहाली और छवि सुधार मुहिम में मुखरित होते रहे।
उनके बाद अखिलेश यादव जी ने यूपी की सत्ता सम्भाली, इसके बाद लोगों ने उनपर परिवारवादी भययुक्त गुंडई राजनीतिक स्वर शिखर सरीखे गम्भीर आरोपों से वह घिरे रहे। जो भी हो पर स्व. मुलायम सिंह यादव जी ने आज के परिप्रेक्ष्य अपनी सोच खुली रखी, पारदर्शी रखी। जिस कारण प्रधानमंत्री मोदी जी व सीएम योगी जी व तमाम पक्ष विपक्ष के नेताओं का सम्मान उन्हें प्राप्त होता रहा । जिस कारण आज उनके स्वर्गवासी होने पर यूपी में बीजेपी सरकार ने तीन दिन का राजकीय शोक घोषित किया गया है।
साथियों! मुलायम सिंह यादव जी इतने लंबे समय तक राजनीति में इसलिए सक्रिय रह सके क्योंकि वह आम-जन के घरों से लेकर दिलों तक पहुंचे और अपने किसी भी साथी, सहयोगी, कार्यकर्ता को उन्होंने कमतर नहीं आंका।तथा किसी साथी को उनके साथ राजनीति में आने का दबाव भी नहीं बनाया। बदलते राजनीतिक परिवेश में उन्होंने बड़ी ही मुखरता से मोदी सरकार को सपोर्ट किया। जिससे उनके पारिवारिक समीकरणों को यूपी की जनता ने उलझते और विलग होते देखा। पर फिर भी वह अपने अंतिम दिनों में पक्ष-विपक्ष के नेताओं से खुशी से मिलते-जुलते दिखाई दिए। यही सब बातें हैं कि आज पूरे उत्तर प्रदेश में शोक की लहर है। बाकि जो कुछ समय के साथ घटा वो वोटसाधनीति के अंतर्गत राजनीतिक भंवर में सिसकते मुद्दे की परिधि को आयाम के सापेक्ष आध्यारोपित वांछित या अवांछित धुरी पर तैरते, लुढकते, झूलते, भी समय की आखों से कुछ घोषित और कुछ अघोषित देखा गया। वर्षों बीत गये दादाजी तो रहे नहीं और आज नेता जी भी शांत हो गये।बस रह गयीं तो हर दिल में धधकती यादें......
परिचय
उत्तर प्रदेश के इटावा स्थित सैफई में 22 नवंबर 1939 को जन्मे यादव का कुनबा देश के सबसे प्रमुख राजनीतिक खानदानों में गिना जाता है। वह वर्ष 1989, 1991, 1993 और 2003 में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री और 1996 से 98 तक देश के रक्षा मंत्री भी रहे। समाजवादी पार्टी को शिखर पर पहुंचाने के बाद वर्ष 2012 के विधानसभा चुनाव में सपा को पूर्ण बहुमत मिलने पर यादव ने अपनी गद्दी अपने बेटे अखिलेश यादव को सौंप दी। यादव ने अपने राजनीतिक सफर में कई उतार-चढ़ाव देखे। हर सफलता और विफलता में वह सपा कार्यकर्ताओं के नेताजी के तौर पर स्थापित रहे। मुलायम सिंह ने राजनीति की सभी संभावनाओं की थाह ली थी। वह अलग-अलग दौर में लोहिया की संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी, चरण सिंह के भारतीय क्रांति दल, भारतीय लोक दल और समाजवादी जनता पार्टी से भी जुड़े रहे।मुलायम सिंह यादव पहलवानी का शौक रखते थे। बाद में वे शिक्षक बने। राम मनोहर लोहिया और जयप्रकाश नारायण सेवा प्रभावित होने के बाद राजनीति में आए। महज 28 वर्ष की उम्र में वह विधायक बन गए। मुलायम सिंह यादव 10 बार विधायक रहे हैं जबकि 7 बार सांसद रहे हैं। कभी उन्हें प्रधानमंत्री पद का मजबूत दावेदार माना जाता था। 1996 से 98 तक वह देश की रक्षा मंत्री रहे। रक्षा मंत्री रहते हुए मुलायम सिंह यादव ने कई बड़े फैसले लिए थे। लेकिन उनका एक फैसला आज भी काफी सराहनीय है।
नेताजी का बेहतरीन महान फैसला-
_ब्लॉगर आकांक्षा सक्सेना
साथियों! दु:खद है कि आज सुबह 8:16 यानी 10 अक्टूबर दिन सोमवार 2022 को धरतीपुत्र नेता मुलायम सिंह यादव ने गुरुग्राम के मेदांता अस्पताल में ली अंतिम सांस अलविदा नेता जी 1967 में पहली बार नेता जी बने MLA तीन बार बने उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री और देश के रक्षामंत्री रहे दिग्गज नेता को सच की दस्तक राष्ट्रीय मासिक पत्रिका परिवार की तरफ से भावपूर्ण श्रद्धांजलि समर्पित 🙏💐
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