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गोवर्धन पूजा और प्रेम रहस्य

गोवर्धन धराधार गोकुल त्राणकारक,
विष्णुबाहु कृतोच्छाय गवां कोटिप्रदो भव।

गोवर्धन पूजा : एक तरफ़ गोविंद सबसे छोटी उंगली पर पूरा गोवर्धन पर्वत उठा लेते हैं तथा कुरूक्षेत्र में एक हाथ से रथ का पहिया उठा कर अधर्म के खिलाफ़ उठ पड़ते हैं । वहीं एक  छोटी सी बाँसुरी को दोनों हाथों से पकड़ कर बजाते हैं। 

बस इतना ही अंतर है "पराक्रम और भक्ति (प्रेम)" में। भगवान श्री कृष्ण ने पूरी दुनिया को पूर्ण हृदय से महान पराक्रम और महान प्रेम को दोनों स्तर 'मन और आत्मा' से साधने की शिक्षा दी।उन्होंने समझाया कि संहार की शक्ति के लिए छोटी उंगली 'छोटा विकल्प साधा जा सकता है परन्तु प्रेम के लिए दोनों हाथों सा पूर्ण मनोयोग की श्रेष्ठता जरूरी है।

उन्होंने प्रेम को सर्वोपरि रखा। जब इंद्रदेव का अंहकार बढ़ा कि मैं बारिश करके पूरे गांव के जीवन को नष्ट कर दूंगा। तो भगवान श्री कृष्ण ने गोवर्धन पर्वत उठा कर सभी गांव वालों को उसी के नीचे आकर शरण लेने को कहा। तब इंद्र को एहसास हुआ कि भगवान के लिए तो कुछ भी असम्भव है ही नहीं, वह अपने भक्तों की रक्षा करने पर आयें तो विशालतम् पर्वत तक उठा सकते हैं। 

मुझे उनके भक्तों को इस तरह कष्ट नहीं देना चाहिए। यह सोचकर इन्द्रदेव ने भगवान श्रीकृष्ण जी से क्षमा याचना की। तब सर्वप्रथम इंद्र देव ने ही गोवर्धन भगवान श्री कृष्ण जी की स्तुति कर आज के इस पर्व का शुभारंभ किया था। और सभी गांव वालों ने अपने-अपने मन की ढ़ेर सारे पकवान, भोज्य सामग्री श्री गोवर्धन भगवान को अर्पण की थी जिसे अन्नकूट कहा जाता है। 

तदुपरांत, स्वर्ग से समस्त देवी-देवताओं ने गोवर्धन पर्वत के रूप में विराजित भगवान श्री कृष्ण जी पर दिव्य पुष्पों की वर्षा की थी। आइये! भगवान की महिमा को हृदय से नमन करें और उनपर पूर्ण विश्वास रखें। हरे कृष्ण 🙏💐आप सभी शुभचिंतकों को श्री गोवर्धन पूजन की हार्दिक शुभकामनाएं।🙏💐

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