कृष्ण अर्जुन संवाद का रहस्य
कृष्ण अर्जुन संवाद का रहस्य
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श्रीमद् भगवदगीता में छिपा है विकाश एंव विनाश का रहस्य | अखण्ड भारतवर्ष संघ देश के द्वापरयुग के राष्ट्रीय मानवाधिकार व कर्तव्य आयोग के मुख्य आयुक्त न्यायाधीश/द्वारिकाधीश भगवान श्री कृष्णचन्द्र बासुदेव जी अपने मुख्य सचिव अधिवक्ता नेक इंसान श्री अर्जुन जी से महाभारत युद्ध क्षेत्र में कहते हैं कि हे! अर्जुन इस देश के लाभार्थी नागरिकों के विवाह, जन्म व मृत्यु के विधि के विधान, संविधि के संविधान व प्रकृति के कानून के नियम तथा इनके पंजीकरण, बीमाकरण व लाईसेंसीकरण के अधिनियम मौजूद है | जब - जब इनका उल्लंघन होता है, इनकी हानि होती है, आतंकियों, भ्रष्टाचारियों व अन्यायियुओं की वृद्धि होती है, तब - तब मैं राष्ट्रीय मानवाधिकार व कर्तव्य आयोग के मुख्य आयुक्त न्यायाधीश के रूप में मनुज शरीर धारण कर अवतरित होता हूँ और इन नियमों व अधिनियमों के अनुपालनकर्ताओं की पीड़ा हरता हूँ, विकाश करता हूँ, विकाश कराता हूँ व विकाश करवाता हूँ तथा उल्लंघन कर्ताओं को पीड़ा पहुँचाता हूँ , विनाश करता हूँ व विनाश कराता हूँ व विनाश करवाता हूँ और उन्हें मृत्यु दंण्डित कर अप्रत्यक्ष रूप से उनका वध करता हूँ एंव अपने मुख्य सचिव अधिवक्ता के द्वारा प्रत्यक्ष रूप से वध कराता एंव करवाता हूँ इस प्रकार मैं नीति व न्याय को पुर्नस्थापित करता हूँ ,कराता हूँ व करवाता हूँ |इसलिये हे! अर्जुन जिन्हें तुम अपना कहते हो, वे अपने नहीं |अपने तो रिस्ते से होतें है और रिस्ते विवाह से होते है |विवाह के पंजीकरण, बीमाकरण व लाईसैंसीकरण के अभिलेखानुसार ये विवाहित ही नहीं हैं|जिन्हें तुम मारना नहीं चाहते वे जन्म के पंजीकरण, बीमाकरण व लाईसैंसीकरण के अभिलेखानुसार जन्में ही नहीं है |वे तो पूर्व से ही मृतक हैं | ये तो मृत्यु के पंजीकरण, बीमाकरण व लाईसैंसीकरण के अभिलेख में दर्ज ही नहीं है | इन पूर्व से मरे हुऐ लोगों को मारना कोई भी वैधानिक, संवैधानिक व कानूनी अपराध नहीं है | कोई भी धार्मिक पाप नहीं है| अत: हे ! अर्जुन मैंने इनको मृत्यु दंण्डित किया है | मैं इनका अप्रत्यक्ष रूप से वध करता हूँ तुम इनका प्रत्यक्ष रूप से वध करो |यही अखंण्डभारतवर्ष संघ देश का पर्मोच्य न्याय,सुरक्षा एंव अनुशासन है | इसकी पुर्नस्थापना मैं अपने अधिकार से करता हूँ और तुम अपने कर्तव्य से करो |सुरक्षित विकाश के लिये अनुशासन के उक्त नियमों एंव अधिनियमों का अनुपालन अनिवार्य एंव परमावश्यक है|
अत: हे ! अर्जुन मैं सदैव विपक्ष एंव न्याय के साथ हूँ | अत: जो जैसा करता है वह वैसा ही पाता है | हे ! अर्जुन यह सिर्फ द्रोपदी का ही अपमान नहीं बल्कि यह सम्पूर्ण सृष्टि व सृष्टिरूप महिला जाति का अपमान है और अनुशासनहीनता जो मेरे रहते कदापि सम्भव नहीं |
अत: हे ! अर्जुन मैं सदैव विपक्ष एंव न्याय के साथ हूँ | अत: जो जैसा करता है वह वैसा ही पाता है | हे ! अर्जुन यह सिर्फ द्रोपदी का ही अपमान नहीं बल्कि यह सम्पूर्ण सृष्टि व सृष्टिरूप महिला जाति का अपमान है और अनुशासनहीनता जो मेरे रहते कदापि सम्भव नहीं |
धन्यवाद
स्वलिखित लेख
आकांक्षा सक्सेना
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