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राजनीति हलचल -Rahul Gandhi lost in three states and lost in coalition -


राजनीति हलचल - 
तीन राज्‍यों में जीते और गठबंधन में हारे राहुल गांधी - 
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- ब्लॉगर आकांक्षा सक्सेना 

राजनीति के दाँवपेंच भी अजीब होते हैं।तभी तो मध्यप्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ के चुनाव में बड़ी जीत के बाद भी कांग्रेस यानि राहुल गांधी को उत्तरप्रदेश में गठबंधन के सियासी बस में बैठने की खिड़की वाली क्या बगल वाली सीट भी नहीं मिल पायी। 

        सपा और बसपा के गठबंधन का हिस्सा नहीं बन पाने के बाद कांग्रेस के पास अब अकेले लोकसभा चुनाव में जाने के अलावा कोई दूसरा विकल्प नहीं!  


             इस सियासी झटके से उबरने के लिए पार्टी ने उत्तरप्रदेश में बदली रणनीति के तहत उन सीटों पर चुनाव लड़ने की तैयारी शुरू कर दी है जहां कांग्रेस का आधार कम से कम एक लाख या उससे ज्यादा रहा है। हालांकि आधिकारिक तौर पर कांग्रेस अभी सभी 80 सीटों पर चुनाव लड़ने का मसौदा तैयार कर चुकी है।

         सपा-बसपा गठबंधन का लखनऊ में शनिवार को होने जा रहे ऐलान की आधिकारिक घोषणा के बाद कांग्रेस के सियासी गलियारों में मायूसी दिखी।

           पार्टी रणनीतिकारों ने अनौपचारिक चर्चा में माना कि माया-अखिलेश के इस रुख का संकेत पांच राज्यों के चुनाव के हफ्ते भर बाद ही मिल गया था। इसीलिए कांग्रेस ने अकेले चुनाव लड़ने के लिए सीटों और उनके संभावित उम्मीदवारों की पहचान का काम शुरू कर दिया था।पार्टी का एक वर्ग आखिरी क्षण तक माया-अखिलेश के साथ गठबंधन की हिमायत करते हुए इसके लिए प्रयासरत भी रहा। मगर सपा-बसपा गठबंधन में कांग्रेस के लिए पांच-छह सीटों से ज्यादा देने को कभी तैयार नहीं हुए। जबकि कांग्रेस को दर्जन भर से कम सीट मंजूर नहीं थी। 

         वैसे भी सपा-बसपा ने भविष्य में कांग्रेस के साथ दोस्ती की गुंजाइश बनाए रखने के लिए अमेठी और रायबरेली की कांग्रेस की सीट पर चुनाव नहीं लड़ने के इरादे साफ कर दिए हैं।उत्तरप्रदेश में गठबंधन में कांग्रेस को जगह नहीं मिलने का संकेत भांपने के तत्काल बाद राहुल गांधी ने सपा और बसपा पर चंद दिनों पहले ही यह कहते हुए सियासी दबाव बनाने की कोशिश भी कि सूबे में कांग्रेस की ताकत को नजरअंदाज करना भूल होगी। 

         राहुल ने इस बयान के जरिए यह संदेश देने का प्रयास किया कि कांग्रेस उत्तरप्रदेश में अकेले लड़ी तो उसका नुकसान सपा और बसपा को भी होगा।वैसे उत्तरप्रदेश कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं के साथ पार्टी के केंद्रीय नेताओं का एक वर्ग शुरू से इस बात की पैरोकारी कर रहा था कि गठबंधन में सम्माजनक सीटें नहीं मिलेगी तो कांग्रेस के लिए अकेले चुनाव में जाना ही होगा। वहीं दर्जन भर से अधिक ऐसी सीटें हैं जहां कांग्रेस अपने उम्मीदवारों की क्षमता और चुनाव में बनने वाले समीकरणों के सहारे जीतने में पूरी तरह सक्षम है। ऐसे नेताओं में खासकर वे लोग शामिल हैं जिन्हें गठबंधन की स्थिति में अपनी लोकसभा सीटें जाने का खतरा ज्यादा था। 
         अब जब गठबंधन की गुंजाइश ही नहीं रही तो उत्तरप्रदेश के कांग्रेस नेता ही नहीं पार्टी हाईकमान भी अकेले चुनाव में दमखम दिखाने की चुनौती कहीं ज्यादा बड़ी हो गई है पर देखना होगा कि मोदी सरकार के सवर्ण आरक्षण जैसे लुभावने बिल के बाद नोटा का सौटा चलेगा या जनता फिर से हर हर मोदी करेगें या फिर म. प्र के ऋण माफी की तरह म. प्र किसानों की तरह राहुल गांधी की तरफ आकर्षित होगी या फिर बुआ बबुआ के साथ आयेगी। यह तो समय ही बताएगा कि जनता का भरोसा कौन जीतता है और सफलता की गेंद किस पाली में गिरती है। 





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2 comments:

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