शासन की नहीं अब अनुशासन की जरूरत -
भारतीय नागरिकों को किसी की आधीनता व शासन की नहीं बल्कि अपनी स्वाधीनता व अनुशासन की जरूरत है।
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भारतवर्ष के इस देश के सभी गांवों के सभी मूलवासी भारतीय मानवों व इस राष्ट्र के सभी नगरों के सभी मूल निवासी राष्ट्रीय नागरिकों यानि समस्त भारतीय नागरिकों को अपने नैतिक गुणवत्ता युक्त उत्पादन व विकास के लिए किसी की आधीनता व शासन की जरूरत नहीं बल्कि अपनी स्वाधीनता व अपने अनुशासन की जरूरत है। जिससे कि यह सम्पूर्ण सृष्टि स्वचालित व संचालित है। समस्त भारतीय नागरिकों को ब्रिटिश समर्थक विधायिका की जरूरत नहीं बल्कि अपनी भारतीय न्यायपालिका की जरूरत है। समस्त भारतीय नागरिकों को सत्ता परिवर्तन की नहीं बल्कि व्यवस्था परिवर्तन की जरूरत है। भारतवर्ष को, ''हम भारत के लोग'' की जरूरत नहीं बल्कि, ''हम भारत के नागरिक'' की जरूरत है।
अतः, समस्त विद्वान एवं विवेकवान भारतीय नागरिक मतदाताओं को अपने सर्वोच्च न्यायिक जनजीवन व जीविकाहित में अपना मतदान तो उन्हें देना ही नहीं चाहिये जिन्हे़ भारतीय नागरिक होने की पहचान का सर्वोच्च न्यायिक दस्तावेजी सबूत, ''भारतीय नागरिकता का सत्यापित व प्रमाणित पहचानपत्र'' ही प्राप्त नहीं और जो भारतीय नागरिक ही नहीं, अपने सभी प्रकार के मतदानों का एक साथ बहिष्कार ही कर देना चाहिए व इस वास्ते ई. वी. एम. का 'नोटा' चमत्कारी या परिवर्तनकारी बटन दबाना चाहिए और अपनी भारतीय न्यायपालिका को निर्विरोध रूप से चुनकर भारतवर्ष का मुखिया बनाना चाहिये।
जिससे की सभी भारतीय नागरिक मतदाताओं की मांग पर, भारतीय विधि व राष्ट्रीय सैन्य शिक्षा प्राप्त विद्वान अधिवक्ता भारतीय सर्वोच्च मुख्य सहायक न्यायाधीश पेशकार साहब द्वारा जारी, भारतवर्ष के स्वाधीन व अनुशासित भारतीय नागरिक होने की पहचान का अत्यंत महत्वपूर्ण, अनिवार्य, परमावश्यक, सर्वोच्चन्यायिक अभिलेखीय साक्ष्य, ''भारतीय नागरिकता का सत्यापित व प्रमाणित पहचानपत्र''। भारतवर्ष के राष्ट्रीय सैन्य व भारतीय न्याय की शिक्षा प्राप्त विवेकवान राष्ट्रीय सर्वोच्च मुख्य न्यायाधीश से, समस्त भारतीय नागरिकों को अनिवार्य रूप से प्राप्त हो सके जो उन्हें विगत ईशा. लगभग 5000 वर्ष पूर्व से अब तक प्राप्त नहीं है। इसी सबूत से ही सभी भारतीय नागरिकों का अपना वजन एवं वजूद है। इसी सबूत की समस्त भारतीय नागरिकों को जरूरत है। जिससे कि वह स्वंय को भारतीय नागरिक साबित कर सकें और वे भारतीय नागरिक कहे जा सकें।
जिससे कि इस सबूत के प्रयोग के द्वारा समस्त भारतीय नागरिक अपना तत्काल, निष्पक्ष, स्वच्छ, सम्पूर्ण, निशुल्क न्याय, सुरक्षा, स्वास्थ्य, शिक्षा, प्रशिक्षण, नौकरी, रोजगार, समस्त अत्याधुनिक बुनियादी सहायतायें निर्विवादित व निर्वाध रूप से प्राप्त कर सकें। अपने सीमित भारतीय राष्ट्रीय मानव विकास संसाधनों का उपभोग व उपयोग कर, अपना स्वाधीन व अनुशासित, प्रतिभाशाली व मर्यादाशाली, वैभवशाली व समृद्धिशाली, समान व सम्मानित, विश्वासी व सुखी, नेकता व एकता का, सर्वोच्च न्यायिक आदर्श गौरवशाली प्रेमी भारतीय नागरिक जीवन व्यतीत कर सके और अपना ज्ञानी, विज्ञानी, अनुसंधानी, विश्वविजयी सैन्य शक्तिशाली, विश्वगुरू गौरवशाली अखंड भारतवर्ष बना सके।
जिस वास्ते जो प्रात: भूखा जगाता व खिलाकर रात को सुलाता, उस परमपिता परमात्मा को उसके द्वारा प्रदत्त उसके इस नेक व एक काम को व अपने सृजनशील मानव जीवन के इस मूल उद्देश्य को उसके द्वारा निर्धारित किये गये समय के अंदर पूरा कर उसे, स्वंय को नेक इंसान व एक भगवान बनाकर दिखा सकें।
अपनी व अपने इस देश की इससे सर्वोच्च प्रतिभाशाली भारतीय स्वंयसहायता, अपनी व अपने इस राष्ट्र की इससे सर्वोच्च मर्यादाशाली राष्ट्रीय स्वंयसेवा तथा अपना व अपने इस भारतवर्ष का इससे सर्वोच्च गौरवशाली व्यवस्था परिवर्तन एवं विश्वगुरू मंत्र कोई अन्य नहीं अपनाकर दिखा सकें। इसी व्यवस्था को हासिल करने के लिए भारतीय स्वाधीनता व अनुशासन संग्रामियों ने अपना सबकुछ त्यागा व अपना बलिदान दिया, इसे व्यर्थ न जाने दे सकें।
जय हिंद 🇮🇳
शासन की नहीं अब अनुशासन की जरूरत -
Reviewed by Akanksha Saxena
on
January 26, 2019
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