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बेमिसाल है इसरो की अंतरिक्ष निगेहबानी- Blogger Akanksha SAXENA





पिछले पांच दिनों में  रक्षा अनुसंधान में एक गौरवमयी उपलब्धियों की छड़ी लगी है। इसी कड़ी में इसरो ने एक और इतिहास रचा है। इसरो के ध्रुवीय राकेट पीएसएलवी-सी45 ने पहली बार विभिन्न पेलोड को तीन विभिन्न कक्षाओं में सफलतापूर्वक स्थापित किया। इस राकेट ने भारतीय उपग्रह ‘एमिसैट’ को 749 किमी की ऊंचाई वाली कक्षा में स्थापित किया। यह भारत का पहला उपग्रह है जो सेना के लिए अंतरिक्ष से दुश्मन की गतिविधियों पर नजर रखेगा। इस उपग्रह को ‘इसरो’ के अध्यक्ष के. सिवन ने ‘आकाश में सेना की आंख’ की संज्ञा दी है। 


इस मिशन का सबसे उल्लेखनीय पक्ष यह है कि इसरो के इतिहास में यह सबसे लंबी उड़ान है जो तीन घंटे में समाप्त हुई। पीएसएलवी-सी45 ने दूसरे लांच पैड से भारतीय समयानुसार 9:27 पर उड़ान भरी। वह 17 मिनट और 12 सैकेंड के बाद अपनी कक्षा में स्थापित हो गया। 


उपग्रह एमिसैट को उसकी निर्धारित कक्षा में स्थापित करने के बाद ध्रुवीय राकेट के चौथे चरण (पीएस 4) के इंजन को बंद कर दिया गया। करीब एक घंटे के बाद इसकी मोटर को फिर प्रज्जवलित किया गया। इसके बाद इसने चार देशों के 28 लघु उपग्रहों को 504 किमी की निम्न कक्षा में स्थापित किया। इनमें अमेरिका, स्विट्जरलैंड और लिथुअनिया जैसे देशों के उपग्रह हैं। खास बात यह है कि यह सारा काम केवल पांच मिनट में पूर्ण कर लिया गया। 

उसके बाद सौर ऊर्जा से चलने वाली एमीसैट की दो श्रृंखलाएं स्थापित हो गई तथा बेंगलुरु स्थित इसरो टेलीमेट्री ट्रेकिंग और कमॉन नेटवर्क ने उपग्रह पर नियंत्रण प्राप्त कर लिया। इस उड़ान में ध्रुवीय राकेट का नव संस्करण इस्तेमाल किया गया जो इलेक्ट्रॉनिक मेधा से संपन्न है। इसे पीएसएलवी-क्यू एल नाम दिया है। 


अब ध्रुवीय राकेट के तीन मॉडल हमारे पास हैं जो क्रमश: स्टैंडर्ड माडल, कोर एलोन और एक्स-एल (एक्स्ट्रा लार्ज) कहलाते हैं, लेकिन पहली बार इसरो ने ध्रुवीय राकेट के प्रथम चरण के साथ चार स्ट्रैपआन मोटरों का इस्तेमाल किया है।हमारा ध्रुवीय राकेट अपने चौथे चरण के साथ जो प्रयोग करेगा उसमें पहला प्रयोग इंडियन इंस्टीटयूट ऑफ स्पेस साइंस एंड टेक्नोलॉजी का है जो आयन मंडल का अध्ययन करेगा। यह भी पहली बार संभव हुआ है ।आने वाले दिनों में यह उपग्रह पूरी तरह संचालित हो जाएगा।एमीसैट इसरो के मिनी उपग्रह-2 के आधार पर निर्मित है। इसका भार लगभग 436 किलोग्राम है। इसे इलेक्ट्रोमेगनेटिक स्पेक्ट्रम पैमाइश के लिए तैयार किया गया है।




एमिसैट उपग्रह का मकसद विद्युत चुंबकीय माप लेना भर नहीं बल्कि दुश्मनों के मंसूबों को नेस्तनाबूद करना है। 

भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने बताया कि प्रक्षेपण की उल्टी गिनती सुबह छह बजकर 27 मिनट पर शुरू हो गई थी। एजेंसी के अधिकारियों ने बताया कि चार चरणों वाला पीएसएलवी-सी45 श्रीहरिकोटा के अंतरिक्ष केंद्र के दूसरे लांच पैड से सोमवार सुबह नौ बजकर 27 मिनट पर प्रक्षेपित किया जाएगा।इसरो के मुताबिक अबकी बार लांच के लिए चार स्ट्रैप ऑन मोटर्स से लैस पीएसएलवी-क्यूएल संस्करण का उपयोग किया जा रहा है। बता दें कि पीएसएलवी का उपयोग भारत के दो प्रमुख मिशनों किया जा चुका है। 2008 में चंद्रयान में और 2013 में मंगल मिशन में।


इसके अलावा चार देशों के भी कुल 28 अंतर्राष्ट्रीय़ उपग्रहों को भी लांच किया गया। इनमें लिथुआनिया के दो, स्पेन का एक, स्विटजरलैंड का एक और अमरीका के 24 उपग्रह शामिल हैं। इस अवसर पर इसरो के अध्यक्ष डॉ• के• सिवान ने कहा कि आज का पीएसएलवी अभियान कई मामलों में अनोखा है। उन्होंने वैज्ञानिकों को बधाई भी दी।उल्लेखनीय है कि अगले अभियान के तहत पीएसएलवी– सी 46 मई 2019 में रीसैट-2 बी को लांच करेगा।

भारतीय रॉकेट पोलर सैटेलाइट लांच व्हीकल (PSLV) द्वारा इलेक्ट्रॉनिक इंटेलीजेंस उपग्रह, एमिसैट का सफलतापूर्वक प्रक्षेपण किया। एमिसैट (EMISAT) का प्रक्षेपण रक्षा अनुसंधान विकास संगठन (डीआरडीओ) के लिए किया जा रहा है।


एमिसेट दुश्‍मन के रडार का पता लगाने में सक्षम है। एमिसैट के साथ रॉकेट तीसरे पक्ष के 28 उपग्रहों को ले कर गया है। इसरो (ISRO) ने कहा कि रॉकेट पहले 436 किग्रा के एमिसैट को 749 किलोमीटर के कक्ष में स्थापित करेगा। 

भारत अब अंतरिक्ष और रक्षा अनुसंधान का महारथी बन चुका है। भारत ने जो आज अप्रतिम उपलब्धियां हासिल करके दुनिया को अपना मुरीद बना लिया हैं उनसे भारत का मान ही नहीं बढ़ा बल्कि हमने विकसित देशों के समक्ष एक नया उदाहरण पेश किया है। ऐसा ही उदाहरण 27 मार्च को तब पेश किया गया था जब ए-सैट मिसाइल का सफल परीक्षण किया गया था।भारत ने अपनी प्रणाली को बैलिस्टिक मिसाइल डिफेंस सिस्टम (बीएमडीएस) नाम दिया है।






 इसका उद्देश्य यह है कि शत्रु की तरफ से आने वाली मिसाइलों को जमीन पर गिरने से पूर्व उन्हें आसमान में ही नष्ट कर दिया जाए, भले ही वे परमाणु बमों से लैस ही क्यों न हों। भारत की इस प्रक्षेपास्त्र रोधी प्रणाली की दो श्रेणिया हैं। पहली श्रेणी में लक्ष्य 2000 किलोमीटर तक की दूरी से आने वाली मिसाइलों को आकाश में ध्वस्त करना है और दूसरी श्रेणी में ऐसी मिसाइलों को नष्ट करना है जो 5000 किलोमीटर की दूरी से आ रही हों। इसके अलावा भारत की प्रक्षेपास्त्र रोधी प्रणाली द्विस्तरीय है। इसका उद्देश्य यह है कि दुश्मन की ओर से आ रही मिसाइल को 50 किलोमीटर से अधिक की ऊंचाई पर मार गिराया जाए। यदि किन्हीं कारणों से ऐसा न हो सके तो उसे 30 किलोमीटर की ऊंचाई पर मार गिरा दिया जाए।



अमेरिकी प्रणाली एक चरणीय जबकि भारत की कहीं बेहतर प्रक्षेपास्त्र रोधी प्रणाली द्विचरणीय है । इस द्विचरणीय प्रणाली का मतलब दुश्मन की मिसाइल को वायुमंडल के बाहर ही नष्ट करना होता है। हम  गर्व से कह सकते हैैं कि भारतीय प्रक्षेपास्त्र रोधी प्रणाली अमेरिकी प्रणाली से श्रेष्ठ है।अत:, यह कहना भी कम होगा कि  बेमिसाल है इसरो की अंतरिक्ष में यह निगेहबानी।

- ब्लॉगर आकांक्षा सक्सेना 





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