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Father's Day Special - हम कौन्हु अंग्रेज नहीं - ब्लॉगर आकांक्षा सक्सेना






भगवान की पूजा रोज तो माता-पिता के लिए सिर्फ़ एक दिन निर्धारित क्यों ? - ब्लॉगर आकांक्षा सक्सेना 

हर रिश्ते को सम्मान देने की प्रथा भारतवर्ष से शुरू हुई, गहराई से देखिये अपने त्यौहारों को पर हम सब भारतियों में अंग्रेजी कल्चर को अपनाने की आज भयकंर होड़ मची है। हर बच्चे के लिए उसके माता-पिता साक्षात् ईश्वर हैं और सबसे अच्छे दोस्त हैं। उनके प्रति हर पल हम सब कृतज्ञ हैं फिर उनके लिये सिर्फ़ एक दिन ही क्यों? हमारी भारतीय संस्कृति ने युगों पहले ही विश्व को बता दिया था कि सुबह उठकर अपने इष्ट, माता-पिता का आशीर्वाद लेना चाहिए फिर दिन की शुरुआत करें। 

सोसलमीडिया पर हम लोग माता-पिता दिवस मनाते हैं और घर में देखो तो माता-पिता का टूटा चश्मा, टूटी चप्पल -जूते, उनकी जीर्ण-शीर्ण हो चुके रोजमर्रा के वस्त्र, उनकी खांसी की दवा,घुटने की गर्म पट्टी तक लाने की 

हमें फुर्सत नहीं। 

समाज की कड़वी सच्चाई तो यह है कि बुजुर्ग माता-पिता की पैंसन के लालच में उनका थोडा ध्यान रखा जाता है वरना कुछ लोग तो इतने परम है कि वह रात के अंधेरे में बुजुर्ग माता-पिता को हरिद्वार में लगने वाले मेले, काशी, कुम्भ, ब्रद्धाआश्रम और ट्रेनों बसों तक में छोड़ कर रफूचक्कर हो जाते हैं। यही हैं साल में एक बार आने वाले मदर्स डे फादर्स डे वाले कलयुगी संताने अगर नियमित सम्मान का बीज उनके मन में प्रस्फुटित किया जाता तो ये मदर्स डे फादर्स डे जैसे कमजोर विचार आज इतने पुष्ट ना दिखाई देते। 

हाँ हम भारतियों के योग में हास्य योगा बुजुर्गों की सेहत के लिए खासतौर पर प्रभावशाली बताया गया। भारतीय संस्कृति में वो सब कुछ है जिसे विदेशियों ने अपनाया और उन्हें बड़े स्तर पर उसकी पब्लिसिटी कर अपनी पीठ थपथपवा ली और हम भारतीय स्वंय को भूल के पिछलग्गू की भांति उस ओर झुकते चले गये। आपको सबको याद होगी देवयुग की अति प्राचीन कथा जब भगवान श्री गणेशजी सम्पूर्ण ब्राह्मण के दर्शन अपने माता-पिता में करते हुए उनके चरणों में बैठकर प्रणाम कर लिया था। 

दोस्तों! यह अनुपम उदाहरण था माता-पिता दिवस का जिसे देखकर 33कोटि देवी-देवता भगवान श्री गणेश जी की समझ और विद्वता पर नतमस्तक हो गए थे तभी तो वह प्रथम पूजनीय कहलाये और त्रेता युग में  दिव्य श्रवण कुमार जिनका जीवन माता-पिता की सेवा में बीता जिन्होंने अपने नेत्रहीन माता-पिता की इच्छा से उन्हें डाल में बिठाकर अपने कंधों से तीर्थयात्रा कराने का संकल्प ले लिया था। 

अपने देश का बहुत महान और गौरवशाली इतिहास रहा है। जो यह सत्य घटनायें हैं वह हम हमारे पूर्वजों से सुनते आ रहे हैं यही प्राचीन कथाएँ संस्कार के रूप में छोटे बच्चों के मन मस्तिष्क में बहुत सकारात्मक असर डालतीं हैं अत:, यह जिम्मेदारी हम आपकी भी हैं कि हम आने वाली पीढ़ियों में कौन से बीज आरोपित कर रहें हैं फलस्वरूप वहीं फसल हम आपको ही काटनी होगी। 

       बस यही कहना चाहूंगी कि हमारे माता-पिता की हस्ती इतनी भी सस्ती नहीं कि उनके लिए सिर्फ़ एक दिन निर्धारित किया जाये हम भारतीय के लिए तो हर दिन फादर्स डे है और हर दिन मदर्स डे यानि हर दिन माता-पिता सम्मान दिवस है। ईश्वर हम सब के माता-पिता व पूरे परिवार को स्वस्थ्य और सुखी रखें। 🙏

माता-पिता दुनिया में लाये
वही भगवान हमारे हैं। 
हम कोन्हूं अंग्रेज नहीं जो
सिर्फ़ एक ही दिन मनावे हैं

- ब्लॉगर आकांक्षा सक्सेना 
 जय भारत, विजय भारत🇮🇳

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