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चमकी बुखार पर भारी लालफीताशाही - ब्लॉगर आकांक्षा सक्सेना

चमकी बुखार : लीची नहीं कुपोषण है असली वजह -

-ब्लॉगर आकांक्षा सक्सेना








ये बच्चे भी भविष्य के नेता, मंत्री, पीएम, सीएम बनते आप की ही तरह तो क्या साहिब इन सभी की मूर्तियां बनवाओगे... साहिब! नाराज क्यों होते हो... उन परिवारों को उनके बच्चे लौटा दो....फिर नाराज आप तो साहिब बात - बात पर चिढ़ जाते हो... A.C से निकल कर कम से कम उस मां के आंसू तो पोंछ दो जिसके घर में अब कोई ना रहा... जिस घर में अब कभी रक्षाबंधन होली, दीपावली नहीं आयेगी... चले जाओ ना... अपने हैलीकॉप्टर से... हाँ उसी जहाज से जिससे आप लोग अमरीका इलाज़ करान जात हो, हाँ वही जहाजवा से... ऊह जहाजवा तो उन बच्चों के लिए हैं ही नहीं.... साहिब के पर्सनल जहाज है.. आकांक्षा तू भी ना....

उत्तर बिहार में बिहार में  एक्यूट इंसेफलाइटिस सिंड्रोम (AES) यानी चमकी बुखार  के भयंकर प्रकोप ने आज 144 निर्दोष बच्चों की जान ले ली। जिसपर आरोप-प्रत्यारोप का दौर अनवरत जारी है।

चमकी बुखार के रूप में देश के कुछ भ्रष्ट नेताओं के मुंह पर वो तमाचा है जिससे आज उनकी अंत्तरात्मा भी उन्हें धिक्कार रही होगी जब उन्हें पता चला कि हमारे देश से पूरे 144 मासूम बच्चों को लीची ने नहीं सिर्फ़ उनके लालच ने मारा है जिन कुपोषित बच्चों के लिए सरकारी ग्रांट - सुविधाएं आती है। वह सब इस भ्रष्ट तंत्र की भेंट चढ़ जाती है वह पैसा उन गरीब परिवारों उन मासूम बच्चों तक पहुंच ही नहीं पाता जिसकी कीमत उन बच्चों और उनके परिवारों को चुकानी पड़ रही है।





(यह लीची फल कुपोषित बच्चों में लक्षणों को बढ़ा देता है। इसका कारण यह है कि इसमें मौजूद MCPG तत्व हाइपोग्लाइसीमिया (लो शुगर लेवल) को जन्म दे सकता है। इसलिए, यदि एक स्वस्थ बच्चा लीची खाता है, तो वह एईएस से पीड़ित नहीं होगा।)

बता दें कि  सयुंक्त राष्ट्र खाद्य एवं कृषि संगठन की 2017 की रिपोर्ट के अनुसार भारत में कुपोषित लोगों की संख्या 19.07 करोड़ है। यह आंकड़ा दुनिया में सर्वाधिक है। देश में 15 से 49 वर्ष की 51.4 फीसदी महिलाओं में खून की कमी है। पांच वर्ष से कम उम्र के 38.4 फीसदी बच्चे अपनी आयु के मुताबिक कम लंबाई है। इक्कीस फीसदी का वजन अत्यधिक कम है। भोजन की कमी से हुई बीमारियों से देश में सालाना तीन हजार बच्चे दम तोड़ देते हैं। 2016 के वैश्विक भूख सूचकांक में 118 देशों में भारत को 97वां स्थान मिला था। देश में 2015-16 में कुल अनाज उत्पादन 25.22 करोड़ टन था।यह 1950-51 के पांच करोड़ टन से पांच गुना ज्यादा है। इसके बावजूद देश में बहुत से लोग भुखमरी के कगार पर रहते है।ऐसा नहीं है कि यह पैदावार देश की आबादी के लिए कम है। असली समस्या है देश में प्रतिवर्ष होने वालीं बड़ी शादियां और उनमें होने वाली अन्न की बर्बादी वहीं दूसरी तरफ देश में अनाज का 40 फीसदी उत्पादन और आपूर्ति के विभिन्न चरणों में बर्बाद हो जाता है। गेहूं की कुल पैदावार में से तकरीबन 2.1 करोड़ टन सड़ जाता है। भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के 2013 के अध्ययन के मुताबिक प्रमुख कृषि उत्पादों की बर्बादी से देश को 92.651 करोड़ रुपए का नुकसान हुआ।वैश्विक खाद्य भंडार 72.05 करोड़ टन के साथ रिकार्ड तेजी से बढ़ रहा है।परेशान करने वाली बात यह है कि संयुक्त राष्ट्र खाद्य एवं कृषि संगठन का आकलन है कि पिछले 15 वर्षों में पहली बार भूख का आंकड़ा बढ़ा है। साल 2015 में जहां दुनिया भर में 77.7 करोड़ लोग भूख के शिकार थे, वहीं 2016 में यह संख्या बढक़र 81.5 करोड़ पहुंच गई। इस साल के वैश्विक भूख सूचकांक पर निगाह डालें तो इसमें भारत तीन पायदान नीचे लुढक़ा है और हम उत्तर कोरिया से भी पिछड़ गए हैं। इसके लिए 119 देशों के आंकड़ों को मिलाकर तैयार किए गए सूचकांक में भारत 100वें स्थान पर है और इसे 'गंभीर श्रेणी' में रखा गया है। रिपोर्ट कहती है कि चूंकि दक्षिण एशिया की तीन चौथाई आबादी भारत में रहती है, इसलिए इस मुल्क में भूख के हालात दक्षिण एशिया की क्षेत्रीय सफलता पर व्यापक असर डालने हैं।जाहिर है भूखे से लड़ने के मामले में भारत की इस शर्मनाक तस्वीर ने दक्षिण एशिया को इस बहुत पीछे धकेल दिया है। हालांकि पाकिस्तान को छोडक़र दक्षिण एशिया के तमाम देशों का प्रदर्शन इसमें अच्छा दिख रहा है। सूचकांक में पाकिस्तान जहां 106वें पायदान पर है, तो चीन 29वें, नेपाल 72वें, म्यांमार 77वें, श्रीलंका 84वें और बांग्लादेश 88वें स्थान पर है। एक साल पहले भी भारत इस सूची में 97वें स्थान पर था। तब 118 विकासशील देशों को मिलाकर यह सूचकांक तैयार किया गया था और हम हमेशा की तरह पाकिस्तान को छोडक़र अपने तमाम पड़ोसियों से पीछे थे। आज दुनिया की 7.1 अरब आबादी में 80 करोड़ यानी बारह फीसदी लोग भुखमरी के शिकार है। बीस करोड़ भुखमरी के शिकार लोगों की संख्या के साथ भारत इसमें पहले नंबर पर है। यहां यह बता दें कि 12 साल पहले 2006 में जब पहली बार यह सूची बनी थी, तब भी हमारा स्थान 119 देशों में 97वां था। जाहिर है, 12 साल बाद भी हम जहां थे, वहीं खड़े हैं।इस साल जीडीपी (सकल घरेलू उत्पाद) विकास दर के कुछ नीचे जाने के वादे किए जा रहे हैं, जिसे सरकार महज तात्कालिक गिरावट बता रही है, मगर इन 12 वर्षों में भारत का जीडीपी औसतन 8 फीसदी रहा है, फिर भी देश में भुखमरी समस्या बढ़ी है। इससे यह बात साफ होती है कि तमाम उतार-चढ़ावों के बावजूद देश में भूख की प्रवृति लगातार बनी हुई है। ज्यादा भूख का मतलब है, ज्यादा कुपोषण। देश में कुपोषण की दर क्या है?



इसका अगर अंदाजा लगाना हो तो लंबाई के हिसाब से बच्चों के वजन का आंकड़ा देख लेना चाहिए। आज देश में 21 फीसदी से अधिक बच्चे कुपोषित है। दुनिया भर में ऐसे महज तीन देश जिबूती, श्रीलंका और दक्षिण सूडान है, जहां 20 फीसदी से अधिक बच्चे कुपोषित है। जब किसी देश का 21 फीसदी बचपन कुपोषण से जूझ रहा है तो किस बुनियाद पर उसके आर्थिक भविष्य का दावा किया जा रहा है।

सबको पोषण उपलब्ध कराने की घोषित प्रतिबद्धता के बावजूद भ्रष्टाचार, लालफीताशाही तथा अन्य वजहों से सब तक खाद्यान्न नहीं पहुंच पा रहा है। हाल ही में राजस्थान में गरीबों को राशन की दुकानों से वितरित किए जाने वाले गेहूं को कालाबाजारी में बेच दिए जाने का बड़ा मामला सामने आया है। इस सिलसिले में रसद विभाग के कई अफसरों और कर्मचारियों को निलंबित किया गया है। राशन का गेहूं गरीबों तक नहीं पहुंच पा रहा है, जिसके कारण गरीबी के शिकार लोग भुखमरी के भी शिकार हो रहे हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार भुखमरी कुपोषण का चरम रूप है। शिशु मृत्युदर असामान्य होने का प्रमुख कारण भी कुपोषण ही है। भारत को भुखमरी और कुपोषण से निजात दिलाने के लिए यह आवश्यक है कि गरीब-अमीर के बीच की खाई को पाटा जाए और सबको जीने के लिए जरूरी बुनियादी सुविधाएं उपलब्ध कराई जाए। इसी के मद्देनजर केंद्र सरकार ने वर्ष 2022 तक गरीबी से मुक्ति के लिए अभियान को गति देने के लिए अलग-अलग कार्यक्रमों के बीच समन्वय बढ़ाने और उन्हें गति देने की कार्य योजना बनाई है।



प्रधानमंत्री कार्यालय चाहता है कि विभिन्न मंत्रालय चिन्हित योजनाओं के लिए समेकित रूप से काम करे। तय समय में परिणाम देने के लिए ग्रामीण विकास मंत्रालय की कई योजनाओं को गरीबी से मुक्ति के अभियान को पूरा करने में महत्वपूर्ण मानते हुए नए सिरे से लक्ष्य तय किए जा रहे हैं।
ग्रामीण विकास मंत्रालय के सूत्रों ने कहा है कि गरीबी विकास मंत्रालय के सूत्रों ने कहा है कि गरीबी से मुक्ति का अभियान पूरा करने के लिए ग्रामीण आजीविका, कौशल विकास, ग्रामीण स्वास्थ्य, शिक्षा से जुड़ी योजनाओं पर खास जोर है।सरकार का सबसे ज्यादा जोर रोजगार व कौशल विकास पर है। ग्रामीण विकास मंत्रालय के मुताबिक दीनदयाल उपाध्याय ग्रामीण कौशल योजना के तहत वर्ष 2016-17 के दौरान एक लाख 62 हजार 586 लोगों को प्रशिक्षित किय गया है। करीब 84 हजार 900 लोगों को रोजगार मिला है। मंत्रालय की ओर से नानाजी देशमुख जन्मशती के मौके पर आयोजित कार्यक्रम में 10 अक्टूबर को गरीबी से मुक्ति के उपायों और कार्य योजना पर चर्चा की गई।



ग्रामीण जीवन में तकनीकी के महत्व के अलावा विभिन्न योजनाओं के तालमेल के लिए अलग-अलग मंत्रालयों की ओर से प्रस्तुतीकरण भी प्रस्तुत किया गया।आशा की जानी चाहिए कि गरीबी से मुक्ति अभियान को सफल बनाने के लिए सरकार विशेष निगरानी की व्यवस्था करेगी। इस अभियान में आम जनता की भागीदारी सुनिश्चित करने के लिए जन जागृति भी जरूरी है, अन्यथा और अभियानों की तरह यह अभियान भी भ्रष्टाचार और लालफीताशाही का शिकार हो सकता है।

आज भारत विश्व भुखमरी सूचकांक में बेहद लज्जाजनक सोपान पर खड़ा है तो इसके पीछे भ्रष्टाचार, योजनाओं के क्रियान्वयन में खामियां और गरीबों के प्रति राज्यतंत्र की संवेदनहीनता जैसे कारण ही प्रमुख है। गरीबी भूख और कुपोषण से लड़ाई हम तक नहीं जीत सकते जब तक कि इसके अभियान की निरंतर अंत: और बाह्य रूप से कड़ी निगरानी और निगेहबानी के साथ - साथ सरकारी योजनाएं दीर्घकालीन और सख्ती से लागू हों, सुनिश्चित क्रियान्वयन के लिए एक मुस्तैद पारदर्शी मशीनरी सिस्टम बनाया जाए, गैर-योजनागत लोगों के खर्चों में कटौती हो, गरीबों से सब्सिडी न छीनी जाए, बैंकों को उन्हें राहत देने को कहा जाए, किसानों के लिए सस्ते और टिकाऊ संसाधन विकसित किए जाएं, अंधाधुंध शहरीकरण और निर्माण को बंद किया जाए, स्कूली बच्चों की शिक्षा में ग्रामीण किसानी, गरीबी और पोषण से जुड़े विषय अनिवार्य किए जाएं, विशेषज्ञों का दौरा अनिवार्य हो, वंचित तबकों के बच्चों को पोषणयुक्त आहार के लिए केंद्र खोले जाएं, बीमार हों तो उन्हें सही समय पर सही इलाज मिल सके, लोगों में सामूहिकता और भागीदारी की भावना का विकास करने के लिए अभियान चलाए जाएं, खाते-पीते घरों के स्कूली बच्चों को फूड वेस्टेज के नुकसान के बारे में शिक्षित और जागरूक किया जाये और महंगी दावतों और मध्यवर्गीय विलासिताओं पर अंकुश लगाया जाए, विज्ञापन कंपनियों को भी दिशा निर्देश दिए जाएं, होटलों और शैक्षिक संस्थानों, दफ्तरों, कैंटीनों, बैठकों, शादी और अन्य समारोहों और अन्य संस्थाओं में खाना बेकार न किया जाए। इस खाने के वितरण की हर राज्य में जिला स्तर पर और भी यथासंभव निचले स्तरों पर मॉनीटरिंग की व्यवस्था हो। इस तरह ऐसे बहुत से तरीके होंगे जो हम अपने समाज की बदहाली और कुपोषण से छुटकारे के लिए कर सकते हैं।सच तो यह है कि केंद्र और राज्य दोनों सरकारों को स्वीकार करना चाहिए कि कुपोषण इसका कारण है। मैं तो स्पष्ट तौर पर कहती हूं कि सरकार को लीची से ध्यान हटाकर हटकर कुपोषण से निपटने की कोशिश करनी चाहिए।



मैं तो स्प्पष्ट कहतीं हूँ यह जो कुपोषित बच्चों के लिए सरकारी पैसा आता है इसकी सीबीआई जांच हो और जो भी सम्बंधित अधिकारी, नेता जिम्मेदार हो उसे भी जीने का कोई हक नहीं है जिनके कारण देश के 144 दीपक बुझ गये।

हे! परमात्मा सम्बंधित अधिकारियों, नेताओं को फांसी मिलनी शुरू हों ताकि उन सभी निर्दोष 144 बच्चों की आत्मा को शांति मिल सके ताकि इन्हीं देश के लालची, स्वार्थी, गद्दारों के कारण आज हमारा समृद्ध देश पूरी दुनिया में शर्मसार होने से बच सके।

















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