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बुराई करने वालों ठहरो ज़रा....


ओ! बुराई करने वालों थम जाओ ज़रा 

हम भी इंसान है आपकी ही तरह.....! 


चाय के दुकानों पर खड़े होकर कुछ लोगों का तम्बाकू खैनी को हथेली पर मलते हुए, पान की दुकानों पर पीक थूकते हुए, मूंगफली के ठेले पर सिगरेट बीड़ी फूंकते हुए बातों ही बातों में गरीब की फ्री की मुट्ठी भर मूंगफली खाकर, तथा किसी गरीब मित्र के घर जबरन देर रात तक जमे रहकर बुराईयों की पोटली खोलकर चाय से लेकर खाना तक पचाकर ऊपर से उसी से दो सौ चार सौ रूपये उधार लेकर निकलने वाले, दूसरों की जिंदगी में झांकने वाले लोग और छतों पर खड़े होकर कुछ महिलाओं का, मास्क लगाकर कानाफूसी करके किसी फलाने-ढ़िमके व्यक्ति या अन्य बेरोजगार लड़के, बहू - बेटी की बुराई करके कभी न थकने वाले बुराईयों के बिना लगाम के शब्दरथी घोड़ेरूपी अपनी आदतों से मजबूर यह  खुद ही जज बनकर सजा सुनाने वाले दूसरों को गुनाहगार ठहराने वाले यह तथाकथित लोग क्या खुद, सही मायनों में निर्दोष होते हैं?बेगुनाह होते हैं? गंगा जल व दूध के धुले होते हैं?क्या सुपरपॉवर से लैस होते हैं? मंजूर तब हैं गुनाह सारे जब सजा सुनाने वाले खुद बेगुनाह निकलें......!


-ब्लॉगर आकांक्षा सक्सेना

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