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क्रूर ख़िलजी रतनगढ़ वाली राजकुमारी को पा ना सका

रतनगढ़ का रहस्यमयी इतिहास-



एक क्रूर राक्षस वहशी दरिंदा था ख़िलजी 
[रतनगढ़ की राजकुमारी को हासिल करने की नियत से कर डाली थी उनके सात भाईयों की हत्या फिर भी उन्हें कभी ना, पा सका]

अलाउद्दीन ख़िलजी मानव के रूप में एक बहशी दरिंदा राक्षस था।करीब चार सौ साल पुरानी घटना है जब मुस्लिम तानाशाह अलाउद्दीन खिलजी ने, पारस पत्थर जो किसी भी धातु को सोने में बदल देने की रहस्यमयी शक्ति रखता था, उस अद्भुत पत्थर को पाने के लालच में मध्यप्रदेश की पावनभूमि पर जगह-जगह आक्रमण करने शुरू किए और इसी बीच उसे रतनगढ़ की राजकुमारी की सुंदरता के विषय में सुनने को मिला। बस इतना सुनते ही वासना के भूखे उस दरिंदें ने उस राजकुमारी को हर कीमत पर हासिल करने की योजना बनायी और सेंवढ़ा से रतनगढ़ में आने वाला पानी बंद कर दिया तो राजा रतन सिंह की बेटी मांडुला व उनके भाई कुंअर गंगाराम देव ने इसका मुखर विरोध किया। बस इसी बहाने क्रूर अल्लाउद्दीन ख़िलजी ने रतनगढ़ किले पर अपनी पूरी सेना के साथ हमला कर दिया और उस भयावह युद्ध में राजकुमारी मांडुला के 6 भाइयों की बड़ी ही बेरहमी से हत्या करके जैसे ही वह महल की तरफ बढ़ा तो मांडुला के सबसे छोटे 7वें भाई ने कहा, 'हम पीठ नहीं दिखा सकते हम लड़ेगें।' यह सुनते रोते हुए मांडुला ने अपने भाई को तिलक लगाकर युद्ध विजय को भेजा पर जहां पहुंच कर सांतवा भाई उस ख़िलजी की सेना पर मौत बन टूट पड़ा और अनेकों सैनिकों को कीड़े-मकोड़े की तरह मरता देख ख़िलजी के इशारे पर उनका युद्ध से ध्यान भटकाने वास्ते उनपर कई जहरीले नाग फिंकवा दिये गये पर कुँवर साहब के दिव्य तेज के सामने सब नाग नतमस्तक, किसी नाग ने उन्हें नहीं काटा। यह देख खिलजी ने कुँवर सिंह के पीठ पर वार करके बड़े ही मक्कारी से षड्यंत्र के तहत मार दिया। सांतवे भाई को भी क्रूरतापूर्ण तरीके से मारने की यह खबर कुछ विश्वासपात्र सैनिकों ने अपनी जान पर खेल कर उनकतक पहुंचायी। इधर क्रूर खिलजी यह  सोचने लगा कि अब वह जीत गया तुंरत महल में घुस कर अपना ख्वाब पूरा करेगा। इतने मैं ही राजकुमारी ने जैसे ही यह बुरी खबर सुनी तो वह वहीं किले के पीछे पहाड़ों पर जाकर चीखीं कि हे! धरती माँ यदि मैं पूरी तरह पवित्र हूँ और हम सब अपनी मातृभूमि के लिए लड़े हैं और अगर मैं तेरी सच्ची भक्त हूँ तो हे! धरती माँ, मुझे अपनी गोद में स्थान दो। और तभी वहां पहाड़ों में विवर उठा यानि गहरा गड्डा हो जाना/धरती फटी और राजकुमारी उसी में समां गयी। यह सब देखकर ख़िलजी बौखला गया और सिर पीटता हुआ वहां से लौटा जिसमें उसके भी बड़ी संख्या में लोग मारे जा चुके थे। बता दें कि मुसलमानों से युद्ध का स्मारक हजीरा पास में ही बना हुआ है। हजीरा उस स्थान को कहते हैं जहां हजार से अधिक मुसलमान एक साथ दफनाये गये हों। विन्सेण्ट स्मिथ ने इस देवगढ़ का उल्लेख किया है जो ग्वालियर से दस मील की दूरी पर है। युद्ध में मारे जाने वाले राजकुमार का चबूतरा भी यहां बना हुआ है जिसे कुंवर साहब का चबूतरा कहा जाता है।

कुँवर जी लोकदेवता के रूप में विख्यात -

बुन्देलखण्ड के प्रायः प्रत्येक गांव में, गांव के बाहर अथवा भीतर एक चबूतरे पर दो ईंटें रखी रहती हैं जिन्हें कुंवर साहब का चबूतरा कहा जाता है। इन्हें जनमानस में लोक देवता के रुप में प्रतिष्ठा प्राप्त है। सामान्य व्यक्तियों को इनके सम्बन्ध में केवल इतना ही बात है कि ये कोई राजपुत्र थे। अनेक स्थानों पर बहुत प्राचीन सर्प के रुप में भी ये दिखाई देते हैं। उस समय एक दूध का कटोरा रख देने से ये अदृश्य हो जाते हैं। ऐसा लोगों का विश्वास है।

यह गांव नहीं दुर्ग है -

यह जगह कोई गांव नहीं है बल्कि मध्यप्रदेश के दतिया जिला के सेंवढ़ा से आठ मील दक्षिण पश्चिम की ओर रतनगढ़ नामक एक स्थान है। यहां एक ऊंची पहाड़ी पर दुर्ग के अवशेष मिलते हैं। दुर्ग सम्पूर्ण पत्थर का रहा होगा, जिसकी दीवारों की मोटाई बारह फीट के लगभग है। यह पहाड़ी तीन ओर से सिन्धु नदी की धारा से सुरक्षित है। इसी विचार से यह दुर्ग बनाया गया होगा। यहां उस पहाड़ी पर एक देवी का मंदिर बना हुआ है जिसे रतनगढ़ की माता के नाम से जाना जाता है।

रहस्य -

जब राजकुमारी विवर में समां गयीं तब से यह जगह बहुत विरान हुआ करती थी पर एक दिन ऐसा हुआ कि जंगल में घूमते कुछ लोगों को सांप ने काट लिया। तो वहां कुछ लोगों ने मिलकर बंध लगाया और राजकुमारी व उनके सांतवे भाई का नाम आन देकर वह बंध लगा दिया कि अब वह उसे अस्पताल ले जा सकते हैं पर तभी रहस्यमयी घटना घटी कि वह लोग प्राकृतिक रूप से इकदम स्वस्थ हो गये। तबही से वहां सांप कटे लोगों को राजकुमारी व कुँवर जी के नाम से बंध लगाने का काम शुरू हुआ और भीड़ जुटने लगी तो भक्ति भाव से सराबोर लोगों ने राजकुमारी को अपनी माता मानकर उनका सुन्दर मंदिर बनवा दिया और यह मंदिर रतनगढ़ की माता के नाम से पूरे देश में प्रसिद्ध हुआ। आज वर्षभर 25 लाख से ज्यादा श्रद्धालु रतनगढ़ वाली माता के दर्शनों को आते हैं और माता उनकी मुरादें पूरी करतीं हैं।

मंदिर में है सबसे बड़ा घण्टा-
रतनगढ़ माता के मंदिर पर देश का सबसे वजनी घंटा (ध्वनि-यंत्र) है। विशेष पूजा अर्चना के बीच मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने सपत्नीक (साधना सिंह) इस घंटे को अर्पित किया। यह अनूठा एवं आकर्षक घंटा लगभग 21 क्विंटल वजनी है। देश के किसी भी मंदिर में स्थापित यह सबसे बड़ा घंटा बताया जा रहा है। यह घंटा मंदिर में अब तक चढ़ाए गए श्रद्घालुओं के छोटे-छोटे घंटों को मिलाकर बनाया गया है।आधिकारिक जानकारी के अनुसार घंटे को टांगने के लिए लगाए गए एंगल व उन पर मढ़ी गई पीतल और घंटे के वजन को जोड़कर कुल वजन लगभग 50 क्विंटल होता है। इस घंटे को प्रख्यात मूर्ति शिल्पज्ञ प्रभात राय ने तैयार किया है।

नोट : यह स्थान इतना विरान है कि यहां रात में रूकना सख्त मना है। लोगों का मानना है कि  यहां इतना रक्तपात हुआ है कि लोगों की आत्मायें रात में विचरण करतीं हैं और आज भी राजकुमारी व उनके भाई की दिव्यात्मा अपने किले व आसपास फैले उस जंगल की रक्षा करते हैं।इतिहास साक्षी है कि जिनके कर्म पवित्र होते हैं वह देवताओं तक ऊँचा उठते हैं।


__ब्लॉगर आकांक्षा सक्सेना















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