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सुन्दरकाण्ड से लें बेहतरीन मोटिवेशन

_ब्लॉगर आकांक्षा सक्सेना 

हमारे देश के लाखों युवा हजारों रूपये देकर मोटिवेशनल क्लास के लिए बड़े-बड़े सेमिनार अटेंड करते हैं और फिर भी मन की संतुष्टि नहीं पाते। आप सिर्फ़ एक बार थोड़ा समय निकाल कर सुन्दरकाण्ड पढ़िये। उसमें भगवान श्री राम जी के भक्त हनुमानजी जब सीतामाता की खोज में निकले थे... तब एक प्रसंग आता है कि

जलनिधि रघुपति दूत बिचारी।
तैं मैनाक होहि श्रम हारी॥5॥

अर्थ :-समुद्र ने उन्हें श्री रघुनाथजी का दूत समझकर मैनाक पर्वत से कहा कि हे मैनाक! तू इनकी थकावट दूर करने वाला हो (अर्थात्‌ अपने ऊपर इन्हें विश्राम दे)॥5॥

हनुमान तेहि परसा कर पुनि कीन्ह प्रणाम।
राम काजु कीन्हें बिनु मोहि कहाँ विश्राम॥1॥

अर्थ :-हनुमान्‌जी ने पर्वत को हाथ से छू दिया, फिर प्रणाम करते हुए कहा- भाई! प्रभु श्रीरामचंद्रजी का काम किए बिना मुझे विश्राम कहाँ?

मैं समय बर्बाद नहीं कर सकता। मेरा लक्ष्य प्रभु का काज करना है। यह जो लक्ष्य पूरा करने की बात हमारे ग्रंथों में जबर्दस्त तरह से कही गई है। कि पहले हमें वो कार्य करना चाहिए जो हमारे लिये प्रथम है, तब तक आराम कहाँ।

अब आगें जब हम पढ़ते हैं तो इसमें वर्णित है कि मातासीताजी, हनुमान जी से कहतीं हैं, पुत्र! तुम वानर हो यहां के भयंकर राक्षसों से कैसे लड़ोगे?तब हनुमान जी की बात सुनने वाली है और जबर्दस्त मोटिवेशन देने वाली है -

मोरे हृदय परम संदेहा। सुनि कपि प्रगट कीन्हि निज देहा॥
कनक भूधराकार सरीरा। समर भयंकर अतिबल बीरा॥4॥

अर्थ :-अतः मेरे हृदय में बड़ा भारी संदेह होता है (कि तुम जैसे बंदर राक्षसों को कैसे जीतेंगे!)। यह सुनकर हनुमान्‌जी ने अपना विराटशरीर प्रकट किया। सोने के पर्वत (सुमेरु) के आकार का (अत्यंत विशाल) शरीर था, जो युद्ध में शत्रुओं के हृदय में भय उत्पन्न करने वाला, अत्यंत बलवान्‌ और वीर था॥4॥

सीता मन भरोस तब भयऊ।
पुनि लघु रूप पवनसुत लयऊ॥5॥

भावार्थ:-तब (उसे देखकर) सीताजी के मन में विश्वास हुआ। हनुमान्‌जी ने फिर छोटा रूप धारण कर लिया॥5॥

सुनु माता साखामृग नहिं बल बुद्धि बिसाल।
प्रभु प्रताप तें गरुड़हि खाइ परम लघु ब्याल॥16॥

अब हनुमान जी कितनी सुन्दर बात कहते हैं सुनो!

हे माता!, वानरों में बहुत बल-बुद्धि नहीं होती, परंतु प्रभु श्री राम के परम प्रताप से बहुत छोटा गरुड़ भी सांप को खा डालता है। (अत्यंत निर्बल भी महान्‌ बलवान्‌ को मार सकता है)॥16॥

भगवान पर भरोसा है तो हम कितने भी निर्बल(तन, मन, धन से) क्यों न हों फिर भी हर परीक्षा में विजयी हो सकते हैं। हैं ना मजबूत मोटिवेशन... अब आगें पढ़ते हैं तब, देखिए! जब हम किसी बड़े इंटरव्यू को फेस कर रहे हों तब किस तरह का विनम्र कॉन्फिडेंस हो और किस तरह अपना और अपनी योग्यता का परिचय देना होता है कि सामने वाला संतुष्ट हो जाये, यह हनुमान जी से सीखिये जबकि जगतमाता सीता जी सबकुछ जानतीं हैं.... फिर भी अपने पुत्र की परीक्षा ले रही हैं, क्योंकि सारा संसार प्रेरणा ले सके।

मन संतोष सुनत कपि बानी। भगति प्रताप तेज बल सानी॥
आसिष दीन्हि राम प्रिय जाना। होहु तात बल सील निधाना॥1॥

भक्ति, प्रताप, तेज और बल से सनी हुई हनुमानजी की वाणी सुनकर सीताजी के मन में संतोष हुआ। उन्होंने श्री रामजी के प्रिय हनुमान्‌जी को आशीर्वाद दिया कि
हे तात! तुम बल और शील के निधान होओ॥1॥

जो स्टूडेंट्स अपनी माता के आशीर्वाद से जिस बड़े कार्य को जाते हैं उन्हें सफलता जरूर मिलती है। सुन्दरकाण्ड पुष्टि है कि मां की सेवा और आशीर्वाद से अमरता तक सम्भव है। इसलिये किसी भी परिस्थिति में मां को प्रेम करें और युवाओं को जगाओ कि भारत में वृद्धाश्रम होना, कितना दु:खद है।यह नहीं होना चाहिए। हमें हमारे ग्रंथों को पढ़ना होगा और अपनी भूलों को सुधारने हेतु संकल्पित होना होगा।

अजर अमर गुननिधि सुत होहू। करहुँ बहुत रघुनायक छोहू॥
करहुँ कृपा प्रभु अस सुनि काना। निर्भर प्रेम मगन हनुमाना॥2॥

हे पुत्र! तुम अजर (बुढ़ापे से रहित), अमर और गुणों के खजाने होओ। श्री रघुनाथजी तुम पर बहुत कृपा करें। 'प्रभु कृपा करें' ऐसा कानों से सुनते ही हनुमानजी पूर्ण भक्तिप्रेम में मग्न हो गए॥2॥

बार बार नाएसि पद सीसा। बोला बचन जोरि कर कीसा॥
अब कृतकृत्य भयउँ मैं माता। आसिष तव अमोघ विख्याता॥3॥

हनुमान्‌जी ने बार-बार सीता माँ जी के चरणों में सिर नवाया और फिर हाथ जोड़कर कहा- हे माता! अब मैं कृतार्थ हो गया। आपका आशीर्वाद अमोघ (अचूक) है, यह बात प्रसिद्ध है॥3॥

हनुमानजी अनंत शक्तियों के पुंज हैं पर फिर भी मां के सामने अपने ज्ञान का बखान न करते हुए सदा विनम्र हो शीष नवाये रहे हैं और उन्होंने सीतामाँ के आशीर्वाद से अमरत्व को प्राप्त किया। हाँ, जहाँ शक्ति प्रदर्शन करना था वहां खुल कर किया, लंका का वो हाल किया था कि रावण कांप गया था कि रामजी का दूत ऐसा है तो रामजी क्या होगें...!

कितनी विडम्बना है कि हम मोटीवेशन यहां वहां तलाश रहे हैं जबकि हमारे ग्रंथ मोटीवेशन का अक्षुण्ण भण्डार हैं। हमें समय निकाल कर सुंदरकाण्ड पढ़ना चाहिए और हृदय में संतुष्टि और चेहरे पर प्रसन्नता की गारंटी हमारी।

जय श्री राम जय सनातन 🙏 6 अप्रैल 8:33

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