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भलाई कभी भी तबाही नहीं लाती

 भलाई कभी भी तबाही नहीं लाती

यह काल के हाथ भी मारी नहीं जाती

        #भलाई


भलाई कभी भी तबाही नहीं लाती

और न किसी को लाने, आने देती है। 





ऐ! दोस्त 
गरीबी और भूख सभ्यता के रिवाज़ नहीं जानती 

-ब्लॉगर आकांक्षा सक्सेना 3 :42 11/01 /2023 



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"झूठ" को "झूठ" लिखना "सत्य" की साधना है । 
जोकि मेरी अंतिम श्वांस तक जारी रहेगी।

______जय हिंद, वंदेमातरम् _________



गुलामों की बस्ती में

 

गुलामों की बस्ती में वफादार का मकान पूछते हो?  
ऐ! इंसान तुम गूंगा सवाल पूछते हो 
यहां भरमार है लालची कैंचियों की 
तुम यहां सत्य का हालचाल पूछते हो 

_ब्लॉगर आकांक्षा सक्सेना 
05/01 /2023 


#समंदरऔरनदी

समंदर को ढूंढती है नदी जाने क्यूँ
पानी को पानी के पाने की अजीब प्यास क्यूँ

समंदर को ढूंढती है नदी जाने क्यूँ 
पानी को पानी की अजीब प्यास क्यूँ? 

_ब्लॉगर आकांक्षा सक्सेना 







पप्पूस्वी का तपस्वीकरण 
लोगों का मनोरंजनीकरण
राजनीति का क्षरणीकरण
जमीनी मुद्दों का धुव्रीकरण
मुहब्बत का नाटकीकरण 
ने.हे.केस का आवरणीकरण 
पीएम पर आरोपीकरण 
बयानों का कौरवीकरण
साथीजनों का यात्रीकरण
सोच! सिर्फ़ सत्ताअधीकरण

#हास्यव्यंग्य 
_ब्लॉगर आकांक्षा सक्सेना
9:47 10 /01/2023 



गुरू द्रोणाचार्य गलत नहीं है 
बस ग्रंथ सांकेतिक भाषा में हैं जिनका हम 
भाव समझ नहीं पाते

अंगूठा मांग लेना का मतलब है शपथ। 
ग्रथों में सांकेतिक भाषा है। वही ताड़न के अधिकारी.. में ताड़ना मतलब.. 
गहन दृष्टि रखना......
बुरे कर्म करने वाले लोगों को नीच कहा जाता है रेपिस्टों आदि को....
अन्यथा परमात्मा की सभी संताने महाउच्च हैं.... 
सब बेहतरीन हैं।


जिनका वोट बैंक ज्यादा.. 
नेता उनके पार्टी उनकी। 
यहां सत्य असत्य भी एक पलड़े में तोल दिये जाते हैं। 
नेताओं के लिए सत्ता से बढ़कर कुछ भी नहीं। 
उनकी हृदय चीरती वोट पाने की महत्वाकांक्षा 
का जनता के दर्द से कोई सरोकार नहीं। 
उनके लिए यह मूल्यहीन है। 
जब तक कि चुनाव निकट न हो। 


 जिनका वोट बैंक ज्यादा.. नेता उनके पार्टी उनकी। यहां सत्य असत्य भी एक पलड़े में तोल दिये जाते हैं।नेताओं के लिए सत्ता से बढ़कर कुछ भी नहीं। उनकी हृदय चीरती वोट पाने की महत्वाकांक्षा का जनता के दर्द से कोई सरोकार नहीं। उनके लिए यह मूल्यहीन है। जब तक कि चुनाव निकट न हो।इसी दुविधा में वोटर और नेता एक दूसरे को दूर से देखते रहते हैं। बाद में ठीकरा कोर्ट पर फोड़ते हैं। और कोर्ट नेताओं पर। सबमिलकर सिस्टम को कोसते हैं। बस ऐसे ही नेता करोड़ों की सम्पत्तियां बनाते हैं और जनता को पंगु व मूर्ख। कहते हैं लोकतंत्र है। सच पूछो तो इन्हें न लोक का पता होता है और न हि तंत्र की कोई जानकारी। अंत में दोषी जनता को ठहराते हैं और व्यंग वाण चलाते हुए कहते हैं कि तुम ही तो हो जो हमें नेता बनाते हो।


 _ब्लॉगर आकांक्षा सक्सेना 

05:52 pm 10/01/2023 






।। सत्यमेव जयते ।। 

_ब्लॉगर आकांक्षा सक्सेना 

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