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वोटों की राजनीति में निराश होते युवा


जब जीविका विवादित और जीवन बाधित है तो कैसे होगा विकास और कैसे होगा विकसित भारत का सपना साकार? 


मेरे कहने का स्पष्ट आशय यह है कि दीवानी न्यायालयों में किस लेवल पर भूमि विवाद फाईलों में कैद है। कैद भी ऐसी कि पीढ़ियों को न्याय का इंतजार करा दे। तब तक वह भूमि का छोटा सा टुकड़ा बंजर वीरान पड़ा रहे। अगर यह भूमि विवाद निपटान गति को भी ज़रा बढ़ा दिया जाये तो गरीब की जीविका जो उसका अपना खेत - प्लॉट-दुकान है, उस पर वह अपना और अपने युवा बच्चों के लिए रोजगार का साधन बना सके। देश में कितने ही मकान "भुतवा" अंधविश्वास के चलते बंद बाधित पड़े हैं, कितनी ही गवर्नमेंट प्रोपर्टी जिनसे रोजगार मिल सकता था वह सब अनेकों विवादों से लिपटी बाधित पड़ी है। अब रही बात जीवन बाधित की तो देखिये! कितने ही बेकसूर युवा कसूरवार युवकों की काली भीड़ का काला हिस्सा बनकर जेलों में पड़े हैं। जब देश की जवानी जोकि देश की रीढ़ होती है वो जेलों में बर्बाद होगी तो आप कैसे कह सकते हैं कि भारत युवाओं का देश है। आप कानून कठोर कीजिये जिससे युवा अपराध से सदा दूरी बरते क्योंकि बिना भय के सुधार सम्भव नहीं है। दूसरी तरफ़ आप देखिए! कि घरेलू हिंसा, यौन शोषण, दहेज़,मेंटीनेंस तलाक तक पहुंचते - पहुंचते वो लड़की आती तो गुड़िया जैसी पर कोर्ट के चक्कर काटते-काटते, तारीख पर तारीख की कभी कोर्ट में चुनाव, कभी जज छुट्टी पर, कभी हड़ताल आदि के चलते भी पीड़िता इस तरह की भी यातना भोगती रहती है। जिन वर्षों में वह कैरियर पर फोकस कर सकती थीं उन वर्षों को न्याय में मिली देरी से मानसिक तनावग्रस्त होकर पीड़िता मानसिक रोगी बन जाती है। बाद में फिर नये जीवन की शुरूआत तब तक वह 40-45 साल की हो चुकती तब एक और दर्द कि इस उम्र में बेरोजगार माँ बनकर कैसे बच्चे को अच्छी शिक्षा दे सकेगीं। न्यायव्यवस्था क्यों नहीं टाईम मैनेजमेंट पर ध्यान देती? कि यदि किसी को तलाक चाहिये तो ज्यादा से ज्यादा 6 महीने में उसको फ्री कर दो। यह नहीं कि दस साल तक चल ही रहा है। कभी-कभी जेलों में जाकर भी सर्वे करना चाहिए कि जेलों में जो युवा-युवतियां बंद हैं उनके नाम किसी आपसी रंजिश में लिखवाकर कहीं उनका जीवन तो बर्बाद नहीं किया जा रहा? अनेकों मामलों में देखा गया है कि वर्षों से जेल में पड़ा फलानां मुजरिम तो निर्दोष था। अब उसकी बर्बाद जवानी का इल्ज़ाम किसे दिया जाये? जेल प्रशासन को सजगता से विचारना चाहिए कि छोटी-छोटी चोरी में या झगड़े में पकड़ा गया युवा जेल में रहकर किस तरह का सकारात्मक कार्य करके अपनी सजा कम कर सके और देश के विकास की मुख्य धारा से जुड़ सके। क्योंकि करोड़ों के घोटाले करके तथाकथित नेता जेल में भी ऐश करते देखे गयें हैं और भयंकर अपराधी आतंकी फांसी से इतर उम्रकैद में तब्दील किये गये हैं। यह तो बात हुई न्यायव्यवस्था की । इसके इतर बात करते हैं राजनीति व्यवस्था की तो इसकी तो माया ही अपरम्पार है। हो भी क्यों न टीवी पर सबसे ज्यादा नेता ही चमकते दिखते हैं, अखबारों की सारी ऊर्जा नेता ही सोखते दिखते हैं। कम लागत और मुनाफा ज्यादा जैसी स्कीम देख आज का अधिकतर युवा नेता बनना चाहते हैं कि उन्हें लगता है कि इसमें न कोई पढ़ाई, न लिखाई सिर्फ़ मलाई ही मलाई। ग्राम प्रधान, नगरपालिका, वार्ड मेम्बर में भी युवा बढ़ - चढ़ कर हिस्सा लेते हैं। ऐसा हो भी क्यों नहीं कालेजों में छात्र संघ चुनाव, न्यायालयों में चुनाव, धर्म जातिगत संगठनों में चुनाव, गांव, जिला, शहर, देश का हर महकमा परोक्ष या अपरोक्ष रूप से राजनीतिक गढ़ जो बन चुका हैं। कोई भी न्यूज टीवी चैनल खोल दो आपको ज्यादा से ज्यादा राजनीति पर ही हल्ला-गुल्ला मचा दिखेगा। देश में कम्पटीशन की तैयार करने वाला युवा जब टी. वी देखता है तो अपना माथा पीट लेता है कि हम बेरोजगारों की बात कब होगी? जिसने भयंकर भीड़ से जान की बाजी लगाकर रात-दन" पढ़कर "पेट" परीक्षा दी और पास भी कर ली पर वैकेंसी कब आयेगी कुछ पता नहीं? जनरल कैटगरी का युवा पास होकर भी निराश कि मेरा होगा भी या नहीं। बीपीएड, एनटीटी,सीटी तो बर्बाद हो चुकी। रही बीएड, बीटीसी, तो टैट, सुपर टैट उसके बाद भी बेरोजगार। सरकार कहती है कि सरकारी पद कम हैं नौकरी मांगने वाले ज्यादा। आइये! इस बात का विश्लेषण करते हैं कि सरकारी स्कूलों में इन्होंने प्राईमरी और जूनियर विद्यालय कम्पोजिट कर दिये। दोनों में अलग-अलग हैड मास्टर होने चाहिये पर काट दिए। जो एक हैडमास्टर है भी तो उसके रिटायर्मेंट के बाद सहायक टीचर को प्राईमरी जूनियर दोनों स्कूलों के हैड की जिम्मेदारी थमा दी गयी है। पर वेतन सिर्फ़ एक स्कूल का सहायक शिक्षक वाला बस। और उस सहायक को ऑनलाइन मीटिंग्स, ऑफलाइन मीटिंग्स, चुनाव में ड्यूटी, इंटर कॉलेज परीक्षा में ड्यूटी, संडे की छुट्टी में जयंती है तो भी उसकी ड्यूटी, सरकारी योजनाओं को गांव में पहुंचाने वास्ते जागरूकता रैली में ड्यूटी, मिड मील में बाजार सब्जी आटे दाल की ड्यूटी, ऊपर से जो डीएलएड के प्रशिक्षु जिन्होंने नियमित स्कूल न आकर भी बला टाल ली अब उन्हीं प्रशिक्षुओं को सरकारी स्कूलों में बच्चों की निगरानी सर्वेक्षण की लिए भेजा गया अब हैडमास्टर बनाम सहायक का ध्यान उस प्रशिक्षु पर जिन्हें उन्होंने बेदाग रखने की ड्यूटी निभाई, उसके बाद गांव वालों की शिकायत कि बच्चों का पैसा नहीं आया? बच्चों को डांट कैसे दिया? कर दी योगीजी के पोर्टल पर शिकायत, अब शिकायत पर निर्दोष होते हुए भी माफीअर्जी की ड्यूटी। इसके अलावा सभी विषयों के शिक्षकों की कमी होने पर सभी विषयों का पाठ्यक्रम पूरा कराने की ड्यूटी, लाईब्रेरियन बनकर लाईब्रेरी सजाने की ड्यूटी, माली बनकर क्यारी सजाने की ड्यूटी, स्वत: स्वच्छता कर्मी की ड्यूटी । कहीं स्वास्थ्य चेतना गतिविधियों, पंचायती राज  गतिविधियों में ड्यूटी, ऑनलाइन गतिविधियों में ड्यूटी । सामाजिक कुप्रथा, नशा उन्मूलन चेतना रैली में ड्यूटी। मास्टर घर पहुंचकर खाना भी खा न पाये कि मिड डे मील का फोन कितने बच्चों ने खाना खाया? एक मास्टर- हेडमास्टर अपना टिफिन घर आकर ही खा पाये ऐसी प्रैशर कुकर समान ड्यूटी।प्लम्बर बन पानी की टोंटी टंकी रिसाव रोकथाम की ड्यूटी, रसोई, सैलेंडर सुरक्षा की ड्यूटी, फुलवारी कैसे उखड़ गयी, घास ज्यादा कैसे बढ़ गयी, स्कूल में गाय - बकरी-सांड कैसे घुस गये, रोकथाम की ड्यूटी? स्कूलों में बीपीएड शिक्षकों की कमी तो छोड़िए। सरकारी मास्टर उर्फ सह हैड मास्टर व्यायाम भी कराने की ड्यूटी। एक तरफ खेल को बढ़ावा देगें दूसरी तरफ़ बीपीएड ही खत्म कर दी गयी । समस्त बीपीएड डिग्री धारक ओवरऐज हो चुके किसी ने एक न सुनी। इसके अलावा सरकारी स्कूलों में बढ़ती चोरी की घटनाएं और पुलिस व न्यायिक प्रक्रिया में उलझकर वादी-प्रतिवादी की ड्यूटी। सरकारी स्कूल का मास्टर यदि स्कूलों में ही रहा करे - सो जाया करे, स्वंय चौकीदार बन जाये तब शायद यह चोरियां रूक जायें। शायद यहि और बचा है। सरकार यदि यह चाहती है तो वह देश के सभी सरकारी मास्टरों को उनके स्कूलों में ही मुफ्त सरकारी टीचर कॉलोनी यानि सरकारी क्वाटर बना एलॉट कर दें। हे! सरकार जी! आप लोगों ने सरकारी स्कूलों के मास्टर, सहायक शिक्षक उर्फ हैडमास्टरों को निचोड़ के रख दिया है। जबकि प्राईमरी जूनियर स्कूलों के विभिन्न कार्यों के लिए अनेकों युवाओं की बम्पर भर्तियां रोजगार दिया जा सकता है जिससे सरकारी स्कूलों के मास्टरों का तनाव कम हो और वह बच्चों को पूरी तसल्ली से पढ़ा सकें। तब आपको निश्चित ही "शिक्षा में गुणवत्ता" देखने को मिलेगी। क्योंकि दाल प्रैसर कुकर में पक सकती है परन्तु खोया यानि मावा को धीरे-धीरे कढ़ाई में ही बनाया जाता है। अब बात करते हैं वन विभाग की, कि इस फील्ड में वायोलॉजी/कृषि वाले स्टूडेंट्स की बम्पर भर्ती की जा सकती है जिससे वह क्लाईमेट चैंज जैसे वैश्विक मुद्दे पर अपनी जबर्दस्त उपस्थिति बतौर कर्म दर्ज करा सकें और जंगल बचाओ की जगह जंगल सजाओ मुहिम के वाहक बन सकते हैं। आपने गांव-गांव तालाब बनाने और समुचित व्यवस्था करने की जिम्मेदारी विधायकों को सौंपी है पर आप चाहें तो उन तालाबों में कमल और कमल से मखाने का कारोबार स्पीड पकड़ सकता है, सिंघाडे की बेल जिसमें मिगी का कारोबार, मछली पालन तथा शाम के समय रंगीन फव्वारे लगाकर राष्ट्रीय, सांस्कृतिक कार्यक्रमों से स्थानीय कलाकारों को रोजगार मुहैय्या कराया जा सकता है। आपने एक जिला एक प्रोडक्ट से बहुतों को रोजगार की चमक दी है परन्तु यह बात भी गौर करने लायक हैं कि जिले का हर बच्चा उम्दा कलाकार और कुशल व्यापारी तो नहीं बन सकता। कुछ बच्चों का सपना सरकारी नौकरी का है जोकि वैकेंसी ऊंट में जीरे के समान आप लोगों ने की हुईं हैं। हर बच्चे को हम जबरन आत्मनिर्भर नहीं बना सकते। कुछ बच्चे सरकारी नौकरी के लिए कड़ी मेहनत करते हैं और सभी परीक्षाओं में सफल होने के बावजूद उन्हें पता चलता है कि यह भर्ती का रिजल्ट कोर्ट में फंस गया? यह परीक्षा के सवालों को लेकर मामला कोर्ट में? सरकार कह रही कोर्ट जाने। कभी परीक्षा का पेपर आउट। एक सच्चा स्टूडेंट्स रोये भी तो कहाँ? उसके ही अपने आरक्षी दोस्त जो उससे आधे नम्बर लाये आज वह सरकारी नौकरी करके मुँह चिढ़ा रहे। और उसे बिजनेस "आत्मनिर्भर" बनने का ज्ञान दे रहे। "आत्मनिर्भर" बनने की बात गलत नहीं परन्तु जिन माता-पिता का पूँजी डिग्री डिप्लोमा में लग चुकी, बहन बेटी के दहेज़ में खर्च हो चुकी । आखिर! उनके पास व्यापार के लिए रूपया कहां से आया? बेरोजगार मार्केट में दुकान भी ले तो दस लाख की पगड़ी देनी पड़ती है। अब वह इतने पैसे कहां से लाये? सरकारी लोन ले तो चुकाने की रिस्क कौन से माता-पिता अपनी बुढ़ापे की लाठी उनकी अंतिम पूँजी, तोड़ना चाहेगें? हर व्यक्ति कि अपनी मजबूरियां हैं जोकि यह तथाकथित वोटमुग्ध आत्ममुग्ध नेता कभी नहीं समझ सकते। यही युवा डिप्रेशन के शिकार होकर गुमनामी में आत्महत्या कर रहे हैं जोकि उन्हें नहीं करनी चाहिए। कोटा - इलाहाबाद - बिहार हर जगह कितना स्टूडेंट्स सरकारी नौकरी की आस में टूट कर बिखर कर जी रहा है । यह कम्पटीशन फेस करने वाला ही जानता है। और सबसे ज्यादा बदहाली में जनरल कैटगरी के स्टूडेंट्स  हैं। जनरल स्टूडेंट्स इसलिए भयंकर अवसाद में है कि उसे न एडमिशन में डिस्काउंट मिलता, न किसी तरह के कोटे का डिस्काउंट, न उम्र में कोई डिस्काउंट। राजनीति में न पक्ष न विपक्ष उनके लिए कुछ बोलता है। बाकि जिन जनरल परिवार में एक मेम्बर कमाने वाला है आप लोग उस कमाने वाले की भी पुरानी पैंशन में ग्रहण लगाये पड़े हो। बताइये जनरल वाले भी आप सब के ही वोटर हैं, उनके साथ कुछ तो रियायत बरतिये। कम से कम जनरल स्टूडेंट्स की उम्र सीमा ही बढ़ा दीजिये। दूसरी तरफ़ पहाड़ी बेरोजगार युवाओं को रोजी-रोटी संघर्ष में कुछ वीजा फ्रॉड के जरिये खाड़ी देशों में भेजकर उनसे हाड़ तोड़ मजदूरी करायी जाती है । वहीं देश का मजूबर नागरिक दुबई में जाकर मजदूरी करने को विवश है। तथा यहां का मेहनती प्रतिभाशाली स्टूडेंट्स अमेरिका, रूस आदि विदेशों में जाकर बस गया है। हास्यास्पद तब होता है जब वही युवा या उसका अंश - वंश विदेशों में नाम कमाता है तब यहां के नेता "भारतीय मूल" का कहकर गर्व से छाती चौड़ी करते हैं। दु:खद है कि देश का सबसे ज्यादा पैसा नेताओं के ठाठ-बाट और उनकी चुनावी रैलियों आदि पर फूँका रहा है मगर युवाओं को नौकरी-रोजगार के लिए खजाना सूख जाता है। हर विभाग में पद खाली पड़े हैं पर नेताओं की जुगाड़ प्रणाली ने हर जगह अस्थायी मित्र भर रखे हैं। जिससे उन्हें कम सैलरी में काम भी पूरा की दोमुंही सोच युवाओं को गुमराम करती दिख रही है यानि हींग लगे न फिटकरी और रंग आये चोखा । दूसरी तरफ़ तथाकथित नेताओं ने जाति-धर्म की राजनीति में युवाओं को पूरी तरह गुमराह कर दिया है। उन्हें जाति-धर्म के ऊपर उठ कर मानवता धर्म, शिक्षा सभ्यता विकास धर्म भी धुंधला दिखाई पड़ता है। अंततः, वह हतास निराश होकर ड्रग्स, नशे के आदि हो जाते हैं और अपने जीवन मार्ग से भटक कर गुमनामी मार्ग को पकड़ कर आत्महत्या करने पर विवश हैं। देश के युवाओं को सबसे ज्यादा बर्बाद देश के तथाकथित भ्रष्ट षड्यंत्री नेताओं ने किया। वैसे भी आप पक्ष और विपक्ष नामक दो पाटों के बीच में देश का निर्दोष बेरोजगार युवा पिस रहा है। जोकि देश की रीढ़ होता है। ज़रा सोचिये! जब देश की रीढ़ ही कमजोर होगी तो बोलो आप विकसित भारत का सपना कैसे जमीनी स्तर पर सार्थक कर पायेगें? आखिर! ओवरऐज बेरोजगार युवाओं के मुद्दे पर संसद में बहस कब होगी? कहते हैं कि मजबूत लोकतंत्र के लिए मजबूत विपक्ष जरूरी है पर देखो! विपक्ष क्या कर रहा है? यहां मैं स्पष्ट रूप से कहना चाहूंगी कि आप पक्ष और विपक्ष मिलकर एक दूसरे के गढ़े मुर्दे उखाड़ते रहिये । नज़ारा देखो! पक्ष विपक्ष को खोद रहा, विपक्ष पक्ष को खोद रहा... आप दोनों मिलकर यह खुदाई जारी रखो जब तक गड्ढ़ा, कुआं और कुआं, खाई न बन जाये और पूरी देश की मासूम जनता उस खाई में न गिर जाये।जनता की समस्याओं पर कोई डीप स्टडी नहीं..कुछ पुरानी खुदाई रोजगार के मुद्दे पर भी करो मिलकर। आप नेहरू जी को रोते रहो और वह आरएसएस को रोते रहो। इससे आगें बढ़कर आज को देखो! आज युवाओं की हालत पर बात हो। आप उन बेटियों का जीवन देखो कि जिनकी वैकेंसी के इंतजार में उम्र 45 हो चुकी। अब न उनकी शादी हो रही और हो भी गयी तो उम्र के ढ़लान मां बनने में प्रोब्लेम। देश में ऐसी भी लाखों लड़कियां हैं जिनकी बीएड, बीटीसी, टैट, पॉलीटेक्निक, बीटेक, नर्सिंग,आर्किटेक्ट,डिग्री डिप्लोमा देख कर शादी तो हुई परन्तु नौकरी न मिलने पर उन्हें उनके पति ने जबरन तलाक दे दिया। यहां तक कि लालच के कारण उनसे मां बनने तक का अधिकार छीन लिया। अब उन बेऔलाद बेरोजगार तलाकशुदा लड़कियाँ जो ओवरऐज की कगार पर हैं या ओवरऐज हो चुकीं। जिनका दूसरा विवाह भी नहीं हो रहा। हे! सरकार आप ही बताइए अब वह सब कहाँ जायें? क्या करें? क्या आपके पास इन मजबूर बहन-बेटियों के लिए कोई योजना है? एक दिन था जब यह युवा हुआ करतीं थीं अब बस गुमनामी में जिंदगी बसर कर रहीं। ऐसी ही कुछ हालत लड़कों की भी है। यहां, युवा शब्द मैं लिख रही हूँ जबकि इसी समय इसी पल, लाखों युवा, बुजुर्ग की श्रेणी में पहुंच चुके होगें। जिनके न घर बस सके न जीवन गति पकड़ सके। अब अगर ऐसे ओवरऐज बेरोजगार युवा मीडिया में कदम रखते हैं या अपना यूट्यूब चैनल बनाकर नेताओं को लताड़ते हैं तब बड़ी ही शर्मिंदगी की बात है कि तथाकथित नेता उनके यू-ट्यूब चैनल तक बंद कराकर उनके पेट पर लात मारते हैं। अब कुछ अनपढ़ नेता उस काबिल पत्रकार से पूछते हैं कि पत्रकारिता कहां से की? तो याद रखिए! कि सच लिखने और बोलने के लिए भारतीय संविधान में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार हर नागरिक के लिए समान रूप से दर्ज है। और सच को सच कहने के लिए किसी को पत्रकार बनने की जरूरत नहीं । प्रत्येक नागरिक सच लिखने-बोलने के लिए स्वतंत्र है। इसलिये हे! सत्ताप्रेमी आप रोजगार प्रेमी कब बनेगें।  सर! वे निर्दोष युवा आपसे जवाब चाहते हैं, जोकि राजनीति से दूर, न पक्ष में हैं और न विपक्ष में। वह सिर्फ़ इज्ज़त की जिंदगी चाहते थे जिन्हें ज़िल्लत भुगतनी पड़ रही। अब आप कहेगें कि बेरोजगार के केन्द्र में जनसंख्या बड़ी समस्या है।और अनेकों विवादों से संसद उलझी पड़ी है। तो सर! जनसंख्या नियंत्रण कानून, समान नागरिक संहिता कानून का शुभारंभ कीजिये परन्तु युवाओं को कृपा करके भ्रमित मत कीजिये। वैसे भी ओवरऐज बेरोजगार हो चुके युवा जिनका भविष्य किसी बृद्धाश्रम में या फुटपाथों पर आंसू न बहाये इसके लिए गम्भीरता से "मिशन रोजगार" योजना का शुभारंभ करना होगा। वरना देश में एक बड़ा समूह "नोटा प्रेमी" भी है जो सभी पार्टियों को नकार चुका है। इसी उथल-पुथल को दूर करने हेतु मैंने समाज में निकल कर अनेकों अनेकों युवाओं से बात की है । युवा कहते हैं कि नौकरी मिली नहीं ओवरऐज हो चुके और फ़लां पार्टी के कार्यकर्ता हैं । अब उस पार्टी कि सोच- विचारधारा बुरी हो या अच्छी, हमारी मजबूरी है, हम उनकी जिंदाबाद करेगें। वरना हम यहां से भी हटे तो करेगें क्या? हम कौन से बड़े नेता हैं जो दूसरी पार्टी हमें तुरंत बुला लेगी। मतलब बहुत से युवा बहुत सी पार्टियों में पापी पेट की मजबूरीवश जुड़े हैं। हमने कहा पहले तो आप यह विचारधारा पसंद नहीं करते थे तो बोले, अब भी नहीं करते परन्तु देश की तथाकथित राजनीतिक पार्टियों ने जाति-धर्म की राजनीति में युवाओं को पथभ्रष्ट कर दिया है।वह अंदर से तो चाहते हैं कि अपने नेता से रोजगार के मुद्दे पर बहस करें पर वह जानते हैं कि "नौकरी - रोजगार" नाम सुनते ही तथाकथित नेताओं ने अनेकों युवा कार्यकर्ताओं को पार्टी से बाहर कर दिया और कुछ तो गुमनाम ही हो गये। हमने अन्य युवाओं से भी बात की तो वह सब एक स्वर में बोले कि वर्तमान "मोदी सरकार" "बेहतरीन" है बस वह "रोजगार" पर भी गम्भीरता से फोकस करें। तब ही साकार होगा "रोजगार युक्त" "उन्नत भारत" "विकसित भारत" का खूबसूरत सपना। सही भी है वर्तमान सरकार ने बहुत से नामुमकिन से दिखने वाले कार्यों को मुमकिन कर दिखाया है । इसलिए देश की जनता को सारी उम्मीद "मोदी सरकार" से ही ज्यादा है। वैसे हमारी महान भारतीय संस्कृति में कहा भी गया है कि सुबह का देखा सपना, साकार अवश्य होता है और "रोजगार युक्त" भारत का सपना हर युवा के सुबह के देखे सपने जैसा ही है। बाकि भविष्य तो सदा ही समय की बंद मुठ्ठी में कैद रहा है.... ।

 _ब्लॉगर आकांक्षा सक्सेना,न्यूज एडीटर सच की दस्तक 









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