जीतने की हवस
जीतने की हवस
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जीतने की हवस इतनी न हो तुम्हारी
की,तुम खुद से खुद को हार जाओ
खुद को खुद से जुदा पाओ
जीतने की हवस इतनी न हो तुम्हारी
की,तुम खुद ही मैं मिटते चले जाओ
और,खुद को ही भूल जाओ
जीतने की हवस इतनी न हो तुम्हारी
की,तुम खुद की राहों मैं डगमगाओ
खुद ही को ढूँढो और खुद ही को बुलाओ
जीतने की हवस इतनी न हो तुम्हारी
खुद का खुद पर विश्वास भूल जाओ
सामाजिक अंधकार को अँधा आईना दिखाओ
जीतने की हवस इतनी न हो तुम्हारी
घर की चोखट का पता भूल जाओ
माँ का दुलार और पिता की डांट भूल जाओ
जीतने की हवस इतनी न हो तुम्हारी
दया,अहिंसा मानवधर्म भी भूल जाओ
दौलत कि हवस मैं खुद ही बलि चढ़ाओ
जीतने कि हवस इतनी न हो तुम्हारी
परिवार भूल जाओ चमक मैं फिसल जाओ
दुनिया मैं आने और जाने का सत्य भूल जाओ
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