रिश्ता ...
( माँ और बेटी का )
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स्कूल मैं डांट पड़ी तो घर आकर
माँ से शिकायत करके रोती है
रास्ते मैं शोहदों ने जब घूरा
माँ के आँचल को पकड़ कर रोती है
डोली उठी बेटी की माँ से लिपट के रोती हैं
दो साल बनीं नही जो माँ,
माँ से छिप-छिप कर रोती है
ससुराल मैं जली-कटी सुनी तो,
माँ को याद करके रोती है
रोज़ अस्पतालों के चक्कर लगाये
पति की बेरुखी देख कर रोती है
जब पता चला भ्रूण है बेटी का,
बेटी की जान बचाने को रोती है
जन्मी जब बेटी उतर गया सभी का चेहरा
सभी को समझाकर मन ही मन रोती है
नवजात फूल सी बेटी को सीने से लगाकर रोती है
प्यारी बच्ची जब नन्हें-नन्हें कदम चले
नाजुक मुस्कान देख माँ हँसते-हँसते रोती है
जब बेटी दूर शहर पढ़े,
बेटी की चिंता मैं रोती है
जवान बेटी की माँ आज,
'वर' की चिंता मैं रोती है
ढूँढने जाती वर तो मांग होती है लाखों की
विवाह है या बाजार की सूरत
समाज का हाल देख कर रोती है
अपने हालात देख कर रोती है
बेटी का ब्याह आज तय है हुआ
मंदिर मैं बैठी रोती है
बेटी कल हो जायेगी परायी
माँ गुमसुम बैठी रोती है
अपनी बेटी मैं अपनी झलक देख
जीवन की बातें समझा कर रोती है
बेटी की गृहस्थी खुशहाल देख
आज, माँ ख़ुशी के आँसू रोती हैं
माँ सब के लिए सब-कुछ सहती है
माँ खुद से भी छिप कर रोती है
|| एक बेटी की माँ देखो कितना कुछ सहती है ||
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