fariyad
फ़रियाद
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ढूँढ़ते थे हम जिनको हम-राह रहगुजर
करते थे अपनी आवाज़ को बुलंद
सुनता नहीं था कोई गला रूँध सा जाता
हर तरफ चीख-पुकार मातम वहां था छाया ।।
ऐ खुदा तेरी खुदाई किधर है .
ऐ मालिक तेरी रहनुमाई किधर है ...
डूबीं थीं लहूँ मैं लाशें घर के चिरागों की
गलियां तंग थीं सैलाब आसुओं के
रोयें भी किसके के सामने दुखड़ा किसे सुनाएँ
यहाँ भ्रष्ट और बहरों का फैला साम्राज्य है ।।
क्यों,ऐ मेरे मालिक तू खामोश है ....
दुल्हन की मांग है सूनी वहां राखी उदास है
त्यौहार रो रहें है ख़त्म सारा श्रंगार है
चूल्हे के सामने बैठे वो ह्रदय खामोश हैं
चुप्पी उनकी टूटे इसका सवाल है ।।
बता ऐ मालिक तू कितने पास है ......
हर सवाल,सवाल बन के लौटता है
आंसू भी अब समंदर बन के लौटता है
झूठे दिलासों से ज़ख्म न भर सकेंगे
गर,भर भी जायें ज़ख्म तो निशां कौन मिटायेगा ।।
ऐ मालिक तुझे सामने अब कौन लायेगा ....
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2008,मैं लिखी थी ।
आकांक्षा सक्सेना
बाबरपुर औरैया
उत्तर प्रदेश
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***वन्दे मातरम ***
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