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इंसानी चौंगा








               इंसानी चौंगा 

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दुनिया के रचियता ने सबसे बुद्धिमान प्राणी को रचा जिसमें प्रेम, दया,परोपकार, बुद्धि, विवेक, सोचने -समझने की शक्ति व मुस्कुरा के सभी के हृदय को जीतने की शक्ति और सहानुभूति और प्रार्थना स्वरों से किसी पीड़ित को नवजीवन देने की अपार शक्ति निहित थी | जिसमें सपनों और कल्पनाओं को साकार रूप देने की अनंत ऊर्जा विद्दमान थी जोकि दुनिया के रचियता की सबसे भरोसेमन्द और प्रिय रचना थी जिसे उसने नाम दिया "इंसान" | दुनिया के रचियता को पूरा विश्वास था कि यह प्राणी हमारा सहयोगी साबित होगा | यह प्राणी हमारी प्रकृति और हमारी अनंत रचनाओं का रक्षक होगा | दुनिया के रचियता ने उसे समझाया तुम्हारा होना, तुम्हारा कर्म प्रकृति के सभी जीवों की रक्षा और मेरी सभी रचनाओं का सेवाभाव से सम्मान करते हुये जीवन पथ पर सच्चाई और ईमानदारी से अग्रसर होना है तभी तुम्हारा इंसान होना और मेरा तुम्हें रचना सफल और सार्थक होगा | मैं अपनी सृष्टि के प्रत्येक प्राणी, इंसान को एक अदभुद प्रतिभा और ऊर्जा के साथ भेजता हूँ | मैं किसी को खाली हाथ नही भेजता और नही चाहता कि मेरा इंसान मेरे पास खाली हाथ मिटा हुआ ना लौटे | उसे रक्षक बनाकर भेजा वह भक्षक बन कर न लौटे| उसे देकर भेजा वह छीन कर न लौटे | उसे गर्व से भेजा वह शर्मिंदा होकर न लौटे | वह इंसान है इंसान बन के तो लौटे | इंसान ने पूछा कि हे !  प्रभु इस दुनिया में सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण कीमती क्या है ? दुनिया के रचियता ने कहा," जीवन |" जीवन की रक्षा करना तुम्हारा प्रथम कर्म और धर्म है, इस सुकर्म को ही इंसानियत कहते हैं |" इंसान ने पूछा यह सब भले कार्यों में मेरा सबसे बड़ा सहयोगी कौन होगा प्रभु? 
दुनिया के रचियता ने कहा," इंसान |" 
इंसान ने कहा," मतलब ? दुनिया के रचियता ने समझाते हुये कहा," हाँ, इंसान ! वह सर्वगुण सम्पन्न सुन्दर सहयोगी शक्ति होगी "नारी" | इंसान, इंसान का सहयोगी हो तो वह और भी उन्नत हो सकेगा | आपसी सहयोग भी एक योग है और जहां सेवा और सहयोग होगा वहां उन्नत मानसिकता, उन्नत भविष्य और एक उन्नत युग का आरम्भ होता है और उन्नत इंसान की शक्ति की कोई सीमा नही होती | वह अनंत अच्चुयत्तम् अद्वैत को भी जान सकता है  | इंसान ही एक मात्र वो अदभुद रचना है जो निस्वार्थ सेवा और प्रेम से निश्चल मुस्कॉन से अपने सुकर्मों से दुनिया के रचियता का साक्षात्कार कर सकती है | पर, अगर इंसान ने इंसानियत को शर्मशार किया तो वह इसका भयंकर दण्ड़ भोगेगा क्योंकि मेरा न्याय यही है कि तुम जो दोगे वही पाओगे | इंसान यह सुनकर बहुत खुश हुआ और उसने वादा किया कि हम इंसानियत धर्म निभायेगें | दुनिया के रचियता ने प्रेम से समझाया कि वह धरती पर जाकर हर तरह की अति से बचे और हर तरह के लालच से बचे | सदा मुझ पर श्रद्धा रखें और खुद पर भरोसा रखें | इंसान सदा यह याद रखे कि वह इंसान है जिसके ऊपर जीवन मूल्यों को जिंदा रखने की और प्रकृति के रक्षक होने की जिम्मेदारी है जिसे उसे ईमानदारी से इंसानियत के दायरे में रहकर निभानी है | इंसान को सदैव इस बात का स्मरण रहे कि जीवन और  मृत्यु मेरे हाथ में है और उसे अंत में वापस मेरे पास ही लौटना है और जब मेरे पास ही आना है तो हे ! मेरे हृयांश तुम पापी बनकर मत लौटना कि तुम इंसान बने ही लौटना, पशु बनकर मत लौटना | मैं तो एक रचियता हूँ और मैं हमेशा इंसान रचता रहूंगा इस भरोसे से कि कोई तो इंसान, खुद को याद रखे लौट सके और इंसानियत को समेटे, इंसानियत को जिये हुये, कोई इंसान मुस्कुराते हुये मेरे पास लौटे | समय बीता समय बदला इंसान जमाने की चकाचौंध में इस कदर अंधा हुआ कि वह सबकुछ भूल गया और वह धन और रूतवे में तो बहुत ऊँचा उठा पर इंसानियत से लुढ़क कर पशुता पर जा गिरा | उसने अपनी स्वार्थपूर्ति हेतु प्रकृति को पूरी तरह रौंद डाला है | उसने जंगल काट डाले जिससे कई औषधीय पेड़ -पौधे फूल तथा जीव - जन्तुओं और पक्षियों की अनगिनित उन्नत प्रजातियां लुप्त हो गयीं | उसने निजस्वार्थ में  प्रकृति का सीमा से ज्यादा दोहन किया जिससे प्रकृति में बहुत बड़ा असुंतलन हुआ और इसी असंतुलन का दुष्परिणाम कहीं बाढ़ तो कहीं सूखा व भयंकर गर्मी व रूह कपांती शर्दी  के रूप में सम्पूर्ण मानवजाति को भुगतना पड़ रहा है | यह इंसान के आधुनिकीकरण की अति का नतीजा है कि वह  प्राकृतिक पत्तल व धातु के बर्तनों को छोड़कर वह प्लास्टिक व पशु हड्डियों से बने बर्तनों में खाना खा रहा, दूध -छांछ की जगह बियर चल रही, सोफ्टड्रिंक चल रहा, कई दिनों के सड़े मैदा के पकवान साथ में धुंआ उड़ाने में अपनी शान समझ रहा | जिसके परिणामस्वरूप वह भयंकर बीमारियों का शिकार हो रहा है | इंसान की धन की भूख इतनी बढ़ी की सामान के आयात - निर्यात के बजाय वह इंसान का ही आयात- निर्यात करने में लगा, इंसान का अंग -अंग बेच कर यह मालामाल हो रहे और सरकार और पुलिस को चुनौती दे रहे | यह भितरघाती हमारे युवाओं को प्रेमजाल में फांस कर उन्हें नशीली दवाओं का आदी बनाकर हमारे देश के भविष्य को कमजोर कर रहे | यह भितरघाती समाज और देश के गद्दारों को समाज के सामने जलील करके फांसी दे देनी चाहिये जिससे जुर्म करने वालों की जुर्म सोचने से पहले रूह कांप जाये | पापियों को जबतक भय नही होगा तब तक यह पापी इंसान सुधरने वाले नही है| इंसान के लालच ने इंसान को हैवान बना डाला | इंसान ने अपनी बर्बादी की कहानी स्वंय लिखी | उसने केवल और केवल पाना, हड़पना, छीनना ही सीखा वह 'देना' शब्द ही भूल गया | उसकी देने की प्रवत्ति ही खत्म हो चली है जोकि भविष्य में  एक बहुत बड़ी त्रासदी को जन्म देगी और उसके परिणाम बेहद दुखदायी सिद्ध होगें |उसकी सबकुछ पाने की अंधी होड़ चालाक दौड़ ने उसने अपनी सहयोगीशक्ति नारी को भी हद के पार जाकर रूलाया | जन्म देने वाले माँ -बाप को बृद्धाआश्रम छोड़ आता | जिस गाय का दूध पीकर जिंदगी चली उसी गौ माता को काट कर खा जाता |उसने तो दैत्यों को भी बहुत पीछे छोड़ दिया जो अपनी ही दुधमुंही बच्चियों के साथ बलात्कार कर रहा | अपने कार्यक्षेत्र में गद्दारी कर रहा, अपने कार्यक्षेत्र में अपने सहकर्मियों को सता रहा उन्हें नीचा दिखाने का कोई मौका नही छोड़ रहा, अपने कार्यक्षेत्र में अपने नीचे काम करने वाले जूनियर का मनमाना आर्थिक, मानसिक, शारीरिक शोषण कर रहा | इंसान की फितरत ही चोरी और कपटीपन की धोका देने वाले बन चुकी है कि वह अनाज का व्यापार कर रहा तो उसमें मिलावट कर रहा, घी में रिफाइण्ड मिला रहा,तेल में कैमिकल मिला रहा, दूध में पानी और कैमिकल मिला रहा, फलों और सब्जियों में इंजेक्शन लगा रहा,यहाँ पर भी नही रूकता कि ग्राहक से पैसे तो सही चीज के ले रहा पर उन्हें बातों में लगा कर तीन फल में गो फल सडे चढा रहा, जूस में रंग मिला रहा, मिठाइयों में मावा की जगह कैमिकल दे रहा, उसे नही पता कि उसका यह कपटी स्वभाव हजारों मासूम लोगों की जान ले रहा | इंसान खाने-पीने की दुकानों पर यमराज बना बैठा है| वह हर पल लोगों को काल के मुंह में धकेल रहा है | वह हर पल गलतफहमी में है कि वह सामने वाले को लूट रहा पर सच तो यह है कि वह स्वंय को स्वअस्तित्व को, अपने ईमान, अपने जमीर को, इंसान तत्व को इंसानियत को लूट रहा है | इंसान आधुनिक तो बहुत हुआ पर दिमाग से अंधविश्वास नही मिटता कि धन के लालच में अाज भी अपने बच्चों की परिवारीजनों की बलि चढ़ा रहा | नर और नारी दोनों ने अपनी सबकुछ पा जाने की हवस ने इंसानियत को शर्मसार कर
रखा है | इंसान की इस विभाजनकारी विध्वंशकारी मानसिकता ने समस्त
जीवन मूल्यों और रिश्तों को अपने स्वार्थ और लालच व हवस की अाग में भस्म कर दिया है | इस राख में अगर कुछ बचा है तो बस झूठा दिखावा, इंसान का खोखलापन और मात्र "इंसानी चौंगा" जोकि बिल्कुल व्यर्थ है जिसका कोई मूल्य नही है | यह है मूल्यहीन जीवन और इस मूल्यहीन जीवन का दुनिया के रचियता को कोई इंतजार नही | प्रतिपल बदलते समय के साथ बहुत कुछ बदला पर नही बदला तो दुनिया के रचियता का इरादा कि वह आज भी इंसान रच रहा है और धरती की तरफ देख रहा इस भरोसे के साथ कि मेरा भेजा गया इंसान, "इंसान" बने लौटे ना कि इंसानी चौगें
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 आकांक्षा सक्सेना
ब्लॉगर 'समाज और हम'
http://akaksha11.blogspot.com

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