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रोजगार एवं न्याय की प्राप्ति सिर्फ़ न्यायपालिका से ही सम्भव -

डेमो पिक
भारतीय राष्ट्रीय नागरिकता का प्रमाण पत्र व पहचानपत्र, रोजगार एवं न्याय की प्राप्ति सिर्फ़ न्यायपालिका से ही सम्भव -

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जब भारतीय राष्ट्रीय नागरिकता का प्रमाणपत्र व पहचानपत्र, रोजगार एवं न्याय की प्राप्ति सिर्फ़ न्यायपालिका से ही सम्भव है तो फिर भारत में सभी भारतीय राष्ट्रीय नागरिक मतदाता इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन का नोटा दबाकर सिर्फ नेक चुने अनेक नहीं। इसके पूर्व भारत में सभी प्रकार के चुनाव एक ही साथ अत्याधुनिक डिजिटल तकनीक से मोबाइल फोन द्वारा होने चाहिए और इस वास्ते भारतीय संविधान में तथा देश व सभी प्रदेशों के सम्बंधित कानूनों में संशोधन दर्ज होने चाहिए। 
           अत:, भारत के पूर्वनिर्धारित व पूर्वप्रचलित स्वाधीन भव्य रोजगारयुक्त विद्वान भारतीय मूलवासी एवं अनुशासित सभ्य न्याययुक्त विवेकवान राष्ट्रीय मूल निवासी भारतीय राष्ट्रीय नागरिकों को अपने भारत के स्वाधीन भव्य रोजगारयुक्त विद्वान भारतीय मूलवासी एवं अनुशासित सभ्य न्याययुक्त राष्ट्रीय मूलनिवासी भारतीय राष्ट्रीय नागरिक होने की सत्यापित एवं प्रमाणित पहचान का अत्यंत महत्वपूर्ण, अनिवार्य, परमावश्यक, सर्वोच्च न्यायिक अभिलेखीय साक्ष्य, ''भारतीय राष्ट्रीय नागरिकता का प्रमाणपत्र व पहचानपत्र '' तथा निशुल्क, तुरंत, निष्पक्ष, स्वच्छ, सम्पूर्ण, स्वाधीन भव्य रोजगार एवं अनुशासित सभ्य न्याय पाने के लिए, भारत में भारत की पूर्वनिर्धारित व पूर्वप्रचलित लोकतांत्रिक राज्य व्यवस्था संचालन की भारत के संगठन एवं विकास की विद्वान भारतीय उपन्यायपालिका की उपसंघात्मक एवं विवेकवान राष्ट्रीय न्यायपालिका की संघात्मक स्वचालित ईश्वरीय कार्यप्रणाली संचालित करने के लिए समस्त भारतीय राष्ट्रीय नागरिक मतदाताओं को अपने सर्वोच्च न्यायिक जनजीवन व जीविकाहित में अपनी विद्वता एवं स्वविवेक से बिना किसी लालच एवं दवाब से स्वंय ही स्वेच्छा से भारत में सभी प्रकार के चुनावों को एक ही साथ अपना मतदान निडर होकर इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन का अपनी विद्वान भारतीय उपन्यायपालिका  के प्रतीक चुनाव चिन्ह नोटा बटन दबाकर ही करना चाहिए जिससे कि विधि की शिक्षा प्राप्त विद्वान अधिवक्ता भारतीय मूलवासी समस्त सहायक न्यायाधीश प्रस्तुतकार, विधि व न्याय की शिक्षा प्राप्त विवेकवान राष्ट्रीय मूलनिवासी समस्त न्यायाधीशों को प्राप्त हो सके। 
   जिससे कि ''भारतीय राष्ट्रीय नागरिकता का प्रमाण पत्र व पहचानपत्र'' के बिना, भारत में बहुत लम्बे समय से डटे मौजूद हिंसक दुष्कर्मीं भारतीय राष्ट्रीय मानव विकास संसाधनों पर अनाधिकृत काबिज फर्जी स्वदेशी चुगलखोर घुसपैठिया अपने देश की नागरिकता से वंचित अपने देश से भागे भगौड़े विदेशी सरकारी राजनैतिक समाजी लुटेरे शासकों व भारत के गद्दार इनके अनुयायियों की पूर्वनियोजित धोखाधड़ी के अपराधिक षड्यंत्र की अलोकतांत्रिक राज्य दुर्व्यवस्था संचालन की भारत के विभाजन एवं विनाश की विधायिका की संसदीय कार्यप्रणाली का अंत हो सके। समस्त जागरूक भारतीय राष्ट्रीय नागरिकों को स्वंय ही इसका देशव्यापी एवं राष्ट्रव्यापी बहुत बड़े पैमाने पर प्रचार एवं प्रसार करना चाहिए कि ''इ. वी. एम. का नोटा दबाकर सिर्फ़ नेक चुनें अनेक नहीं।'' जिससे कि वर्तमान दुर्व्यवस्था का अंत हो सके। चुनाव तो सिस्टम का हो न कि व्यक्ति व पार्टी का। चुनाव में जनता को विधायिका की संसदीय कार्यप्रणाली पसंद है या न्यायपालिका की संघात्मक स्वचालित कार्य प्रणाली। जब न्याय के लिये न्यायमूर्ति के पास ही जाना है तो उसी को क्यों न चुन लिया जाये। आखिर! इस भ्रष्ट तंत्र का कहीं तो अंत हो या बड़ा बदलाव । कहते हैं कि राजनीति हमेशा हैवानियत को जन्म देती है तो राजनीति से इतर दूसरे मार्ग पर पर भी मंथन किया जाये। कारण इस लोकशाही सिस्टम से हर कोई तृष्त है और उसे मार्ग ''नोटा'' में दिख रहा । नोटा का भी सरकार ध्येय स्पष्ट करे कि सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि अगर नोटा में 50% मतदान होता है तो वह चुनाव निरस्त माना जायेगा पर चुनाव निरस्त से कौन सी बेरोजगारी खत्म होगी और कौन सा कोर्ट में करोड़ों मुकदमें का बोझ कम होगा और कौन सा पीड़ित बहू बेटियों तुरंत पारदर्शी  न्याय मिल सकेगा और कौन सा बहुजन और पिछड़ी जन जातियों का उद्धार सम्भव हो पायेगा। यह जो हर आम और खास की असहनीय पीड़ा है आखिर! इससे वह कब और कैसे मुक्त हो। इसका समाधान तो होना ही चाहिए पर इन सवालों पर सरकारें मौन है और जनता में भारी रोष है। 
 वर्तमान में  भारत के समस्त विवेकवान राष्ट्रीय न्यायाधीश विधि व न्याय की शिक्षा से युक्त हैं तो फिर भारत के समस्त  भारतीय  सहायकन्यायाधीश पेशकार विधि की शिक्षा से युक्त विद्वान अधिवक्ता क्यों नहीं? 
      कहते हैं कि पराधीन सपनेहु सुख नाही, कर विचार देखो मन माही। सकल पदारथ हैं जग माहीं, कर्महीन नर पावत नाहीं। कोई भी शासक स्वेच्छा से अपनी स्वाधीनता अपने आधीनों को देता नहीं है, आधीनों को स्वाधीन होने के लिए इसे स्वंय ही हासिल करना होता है। 
      यदि भारत के सर्वाधिक बेरोजगार विद्वान भारतीय मूलवासी लघुसंख्यक मलिनों ने व भारत के सर्वाधिक अन्याय पीड़ित विवेकवान राष्ट्रीय मूल निवासी अल्पसंख्यक दलितों ने अपने भारतीय राष्ट्रीय नागरिकता का प्रमाण पत्र व पहचानपत्र, रोजगार एवं न्याय का मौलिक अधिकार पाने के लिए ई. वी. एम. का नोटा बटन दबाकर अपने मतदान के सद्पयोग के द्वारा स्वंय ही अपना मौलिक कर्तव्य किया होता तो अन्तोदय के सिद्धांत के अनुसार विधि व न्याय की शिक्षा प्राप्त विद्वान अधिवक्ता प्रस्तुतकार(पेशकार) होता व विधि व न्याय की शिक्षा प्राप्त विवेकवान भारत का राष्ट्रीय सर्वोच्च मुख्य सहायक न्यायाधीश होता तो इन मलिनों की बेरोजगारी एवं मलिनता तथा इन बहुजनों का अन्याय एवं दलिद्रता भारत में नजर न आती। 
     तब भारत की न्यायपालिका में काफी लंबे समय से विचाराधीन अनावश्यक करोड़ों मुकदमें के मामले की गंदगी का बोझ नजर न आता। 
     तब भारत स्वंय ही विश्व का सर्वोच्च न्यायिक स्वाधीन भव्य रोजगारयुक्त एवं अनुशासित सभ्य न्याय युक्त, गुणवत्तायुक्त, उत्पादनशील, विकासशील, वैभवशाली, समृद्धिशाली एवं वीटो पावरफुल अत्याधुनिक विश्व विजयी सैन्य शक्तिशाली, दर्शनीय गौरवशाली अखण्ड भारतवर्ष विश्वगुरू होता, यदि समस्त भारतीय राष्ट्रीय नागरिकों ने अपने मतदान का सदुपयोग किया होता। 

-ब्लॉगर आकांक्षा सक्सेना 

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