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श्री गणेश चतुर्थी पर विशेष-



आज श्री गणेश चतुर्थी पर विशेष 🙏🌻.... 

भगवान श्री गणेश आदि सर्वपूजनीय देव हैं। उनका स्वरूप असामान्य और ध्येय है। उनका मुख छोटे हाथी के शिशु के समान बड़ा ही लावण्यमय है। शिवमानस पूजा में श्री गणेश को प्रणव (ॐ) कहा गया है। इस एकाक्षर ब्रह्म में ऊपर वाला भाग गणेश का मस्तक, नीचे का भाग उदर, चंद्रबिंदु लड्डू और मात्रा सूँड है।

भगवान श्री गणेश पूजन मंत्र-

वक्रतुण्ड महाकाय सूर्यकोटि समप्रभ।
निर्विघ्नं कुरु मे देव सर्वकार्येषु सर्वदा॥

गजाननं भूतगणाधिसेवितं कपित्थजम्बूफलचारुभक्षणम् ।
उमासुतं शोकविनाशकारकम् नमामि विघ्नेश्वरपादपङ्कजम् ॥

गणपति अथर्वशीर्ष में श्रीगणेश के रूप का वर्णन इस प्रकार है–

एकदन्तं चतुर्हस्तं पाशमंकुशधारिणम्।
अभयं वरदं हस्तैर्विभ्राणं मूषकध्वजम्।।

रक्तं लम्बोदरं शूपकर्णकमं रक्तवाससम्।
रक्तगन्धानुलिप्ताँगं रक्तपुष्पै: सुपूजितम।।

भगवान श्रीगणेश जी का प्रत्येक अंग सम्पूर्ण मानव जाति के लिए शिक्षाप्रद हैै - जिनका गूढ़ अर्थ है। 

गोल मटोल रूप–उनका यह रूप यह शिक्षा है कि मनुष्य को सरलता और नम्रता आदि गुणों के साथ सदैव अपने को छोटा ही मानना चाहिए जिससे उसके अन्दर अंहकार न आने पाये।

गजमुख–भगवान श्रीगणेश बुद्धि, ज्ञान और विवेकदाता हैं और मस्तक ही बुद्धि व विचार शक्ति का प्रधान केन्द्र है। हाथी में बुद्धि, धैर्य एवं गाम्भीर्य की प्रधानता होती है। वह अन्य पशुओं की भाँति खाना देखते ही उस पर टूटता नहीं बल्कि धीरता एवं गम्भीरता के साथ उसे ग्रहण करता है।

शूपकर्ण–भगवान श्रीगणेश के कान बड़े होते हैं। इसका अर्थ है कि साधक को अच्छा श्रोता होना चाहिए। यह भी सफलता का मन्त्र है। हाथी जैसे लम्बे कानों का एक अर्थ यह भी है कि मनुष्य को अपने कान इतने विस्तृत बना लेने चाहिए कि उनमें सैंकड़ों निंदकों की बातें भी समा जाए और वह कभी जिह्वा पर भी न आए अर्थात् मनुष्य में निन्दा को पचाने की क्षमता होनी चाहिए।

लम्बोदर–इस रूप से यही अर्थ निकलता है कि मनुष्य का पेट बड़ा होना चाहिए यानि सबकी अच्छी बुरी बातों को अपने पेट में रखे तुरन्त उसकी इधर उधर चुगली ना करे।

एकदन्त– भगवान श्रीगणेश का एक दाँत हमें यही ज्ञान कराता है कि जीवन में सफल वही होता है जिसका लक्ष्य एक हो। श्रीगणेश अपने एकदन्तरूपी लक्ष्य के कारण ही जीवन में न केवल सफल रहे अपितु अग्रपूजा के अधिकारी बने।

दीर्घनासिका–नाक मनुष्य की प्रतिष्ठा की प्रतीक है और मनुष्य हरसंभव उपाय से अपनी नाक बचाने का प्रयास करता है। श्रीगणेश की दीर्घनासिका मानव को नाक की प्रतिष्ठा की रक्षा का संदेश देती है।

छोटे नेत्र–हाथी के नेत्र प्रकृति ने कुछ इस प्रकार बनाए हैं कि उसे छोटी वस्तु भी बड़ी दिखायी देती है। श्रीगणेशजी की आँखें हाथी की होने के कारण हमें बताती हैं कि मानव का दृष्टिकोण उदार होना चाहिए। उसे अपने गुणों की अपेक्षा दूसरे के गुणों को अधिक विकसित रूप में देखना चाहिए।

वक्रतुण्ड–मनुष्यों को भ्रान्ति में डालने वाली भगवान की माया वक्र (दुस्तर) है। उस माया को अपनी तुण्ड (सूँड) से दूर करने के कारण गणेशजी वक्रतुण्ड कहलाते हैं।

चतुर्भुज–गणपति जलतत्व के अधिपति हैं। जल के चार गुण होते हैं–शब्द, स्पर्श, रूप तथा रस। सृष्टि चार प्रकार की होती है–स्वेदज, अण्डज, उद्भिज्ज तथा जरायुज। पुरुषार्थ चार प्रकार के होते हैं–धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष। श्रीगणेश ने देवता, मानव, नाग और असुर इन चारों को स्वर्ग, पृथ्वी तथा पाताल में स्थापित किया। भक्त भी चार प्रकार के होते हैं–आर्त, जिज्ञासु, अर्थाथी एवं ज्ञानी। उपासना के भी चार प्रकार होते हैं। अत: गणेशजी की चार भुजाएँ चतुर्विध सृष्टि, चतुर्विध पुरुषार्थ, चतुर्विध भक्ति तथा चतुर्विध उपासना का संकेत करते हैं।

मोदक का भोग— मोदक के भोग का अभिप्राय है कि अलग-अलग बिखरी हुयी बूँदी के समुदाय को एकत्र करके मोदक के रूप में भोग लगाया जाता है। व्यक्तियों का सुसंगठित समाज जितना कार्य कर सकता है उतना एक व्यक्ति से नहीं हो पाता।

सिंदूर, हल्दी चावल–सिंदूर सौभाग्यसूचक एवं हल्दी रोगनाशक, चावल अन्न देव हैं, यह सब मांगलिक द्रव्य है। अत: मंगलमूर्ति गणेश को मांगलिक द्रव्य समर्पित करना चाहिए।

दूर्वा (दूव घास) –हाथी को दूर्वा प्रिय है। दूसरे दूर्वा में नम्रता और सरलता भी है। यही कारण है कि तूफानों में बड़े-बड़े पेड़ गिर जाते हैं और दूर्वा जस-की-तस खड़ी रहती है। एक और तथ्य है कि दूर्वा को कितना भी काट दो उसकी जड़ें अपने आप चारों ओर फैलतीं हैं । अत: दूर्वा की भाँति भक्तों के कुल की वृद्धि होती रहे और स्थायी सुख सम्पत्ति प्राप्त हो।

मूषक वाहन–मूषक का स्वभाव है वस्तु को काट डालना। वह यह नहीं देखता कि वस्तु नयी है या पुरानी, बस उसे काट देता है। इसी प्रकार कुतर्कीजन भी यह नहीं देखते कि यह विचार कितना अच्छा है बस उस पर कुतर्क करना शुरू कर देते हैं। गणेशजी बुद्धिप्रद हैं अत: वे कुतर्करूपी मूषक को वाहन रूप में अपने नीचे दबा कर रखते हैं।

पाश, अंकुश, वरदहस्त और अभयहस्त–पाश राग का और अंकुश क्रोध का संकेत है। गणेशजी भक्तों के पापों का आकर्षण करके अंकुश से उनका नाश कर देते हैं। उनका वरदहस्त भक्तों की कामना पूर्ति का तथा अभयहस्त सम्पूर्ण भयों से रक्षा का सूचक है।

नाग-यज्ञोपवीत और सिर पर चन्द्रमा–नाग-यज्ञोपवीत कुण्डलिनी का संकेत है तथा सिर पर चन्द्रमा सहस्त्रार के ऊपर स्थित अमृतवर्षक चन्द्रमा का प्रतीक है।

इक्कीस पत्रों से पूजा–गणेशजी को चढ़ाये जाने वाले विभिन्न पत्ते जैसे-शमी पत्र, विल्ब पत्र, धतूरा, अर्जुन, कनेर, आक, तेजपत्ता, देवदारू, गांधारी, केला, भटकटैया, सेम, अपामार्ग, अगस्त, मरुआ आदि के पत्ते आरोग्यवर्धक व औषधीय गुणों से युक्त हैं।

इस प्रकार हम देखते हैं कि भारत श्री गणेशजी के स्वरूप, पूजा के उपकरणादि का गहरा अर्थ है।उनका सुन्दर रूप सम्पूर्ण प्रकृति जीव, जन्तुओं, पेड़ों, मनुष्यों सभी के सम्मान से है। भगवान श्री गणेश जी के बालरूप (बच्चों में भगवान का वास होता है) इसी सुन्दर भाव से प्रभु श्री गणेश जी के चिन्तन मात्र से उन्हें प्रेमभाव से हम आप नमस्कार भी कर लें तो वह शीर्घ प्रसन्न होने वाले देव हैं उनकी सहज भक्ति प्राप्त करके मनुष्य समस्त सिद्धियों का अधिकारी हो जाता है।

हे! आदिदेव भगवान श्री गणेश जी आप सभी का कल्याण करें, सभी के सुन्दर सपनों को साकार करें। 

ॐ गंगणपतये नमो नम: 🌻
श्री सिध्धीविनायक नमो नम:🌹 
अष्टविनायक नमो नम:🌻 
गणपती बाप्पा मोरया…🙏🙏💐💐

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