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हूँ मैं मोहब्बत मगर.....





मोहब्बत.... 
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गुमराह है मोहब्बत

बदनाम है मोहब्बत

जिस्मों के सींकचों से 

झांकते मय के प्याले 

दुनिया में ढोल पीटते

कविता में ढोल पीटे

कहीं मातृदिवस बनाते

कहीं प्रेम दिवस मनाते

महिलाओं के ऊपर 

लाख कसीदे पढ़े जाते 

विश्व भर की करेंसी पे

बोलो क्यों मर्द ही छाये
 
महिला के गेसुओं में

काले दिन ही आये

प्रेम की परीक्षा 

महिला बलि चढ़ती 

घर समाज गृहस्थी 

महिला से ही चलती 

मर्दों ने औरत को

कितना भरमाया

उसकी शक्ति को

किसने पहिचाना....? 

एक झूठी कहानी 

महिला बनी है... 

जिस्मों पर ही

तुम्हारी मोहब्बत 

रूकी है.... 

जिस्मों से आगें

ग़र जो तुम देख पाते

फिर महिला को

यकीनन जान पाते... 

मैं पूजी गयी हूं 

मैं जलाई गयी हूं

मैं मर्दों के नीचे

धकेली गयीं हूं... 

हाँ हूं मैं 'मोहब्बत' 

हाँ हूं मैं 'औरत'

सिर्फ़ हरायी 

गयी हूं......!! 


-ब्लॉगर आकांक्षा सक्सेना

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