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मंत्रों की रहस्यमयी महिमा



मंत्र संग्रह धार्मिक कार्यों, पूजा, अनुष्ठान आदि में मंत्रों का सर्वाधिक महत्त्व है। वैसे तो मंत्रों के अर्थ इतना महत्व नहीं रखते क्योंकि विशेषज्ञों का मानना है कि मंत्रों के अर्थ में नहीं बल्कि ध्वनि में शक्ति होती है।

‘मंत्र’ का अर्थ शास्त्रों में ‘मन: तारयति इति मंत्र:’ के रूप में बताया गया है, अर्थात मन को तारने वाली ध्वनि ही मंत्र है।
वेदों में शब्दों के संयोजन से ऐसी ध्वनि उत्पन्न की गई है जिससे मानव मात्र का मानसिक कल्याण हो। जिन्हें मंत्र कहा गया है।



ये किसी व्यक्ति विशेष द्वारा नहीं लिखे गए हैं अर्थात् किसी व्यक्ति के द्वारा इनकी रचना नहीं हुई है, बल्कि वर्षों की साधना के बाद ऋषि-मुनियों ने इन ध्वनियों को सुना है। विशेषकर बीज मंत्रों के बीजाक्षरों का अर्थ साधारण व्यक्ति के लिए समझना बहुत मुश्किल है। ऐसा माना जाता है कि मंत्रोच्चारण से ऐसी शक्ति उत्पन्न होती है जो भगवान को विचलित कर सकती है।

मंत्र जाप से उत्पन्न होने वाली तरंगों से वातावरण में कम्पन्न होता है। मंत्र जप से व्यक्ति को पूरे ब्रह्मांड की एकरूपता का ज्ञान प्राप्त होता है। मन का लय हो जाता है और मन भी शांत हो जाता है। मंत्रजप के अनेक लाभ हैं – आध्यात्मिक प्रगति, शत्रु का विनाश, अलौकिक शक्ति पाना, पाप नष्ट होना और वाणी की शुद्धि आदि।



कमलामाता मंत्र 



1. एकाक्षरी कमला मंत्र

श्रीं॥

मां कमला का एकाक्षरी मंत्र श्रीं बहुत ही प्रभावशाली है इस मंत्र के ऋषि भृगु हैं और निवृद छंद। मां लक्ष्मी से धन्य व ऐश्वर्य की प्राप्ति के लिए इस मंत्र का जाप किया जाता है। श्रीं= श्+र+ई+नाद+बिंदू से बना है इसमें श् मां लक्ष्मी, र धन व संपत्ती के लिए ई महामाया तो नाद जगत जननी के लिए प्रयुक्त हुआ है। वहीं हर मंत्र में बिंदु का प्रयोग दुखहर्ता अर्थात दु:खों का हरण करने वाले के रुप में किया जाता है।

2. द्वीक्षरी साम्राज्य लक्ष्मी मंत्र

स्ह्क्ल्रीं हं॥

इस बीज मंत्र के ऋषि हरि हैं एवं छंद गायत्री है, इस मंत्र में साम्राज्यदा मोहिनी लक्ष्मी देवता का आह्वान किया जाता है।

3. त्रयाक्षरी साम्राज्य लक्ष्मी मंत्र

श्रीं क्लीं श्रीं॥

श्रीं का अर्थ उपरोक्त मंत्र में सपष्ट किया गया है क्लीं कामबीज अथवा कृष्णबीज के रुप में प्रयोग होता है जिसमें क= योगस्त या श्रीकृष्ण, ल= दिव्यतेज, ई= योगीश्वरी या योगेश्वर एवं बिंदु= दुखहरण यहां पर इसका प्रयोग कामबीज रुप में हुआ है जिसका तात्पर्य है राजराजेश्वरी योगमाया मेरे दुख दूर करें। अर्थात पूरे मंत्र के जरिये साधक मां लक्ष्मी एवं मां राजराजेश्वरी योगमाया का आह्वान करता है और सुख, समृद्धि के साथ दुखों के हरण की कामना करता है।

4. चतुराक्षरी कमला मंत्र




ऐं श्रीं ह्रीं क्लीं॥

इस चतुराक्षरी बीज मंत्र में ऐं माता सरस्वती, श्रीं मां लक्ष्मी, ह्रीं शिवयुक्त विश्वमाता आद्य शक्ति, क्लीं योगमाया के लिए प्रयुक्त हुआ। ये सभी कमला माता के ही भिन्न रुप हैं। इस मंत्र के जरिये साधक देवी के इन सभी रुपों से अपने संकटों का हरण करने एवं उसकी मनोकामना पूर्ण करने की कामना करता है।

5. पंचाक्षरी कमला मंत्र

श्रीं क्लीं श्रीं नमः॥

इस मंत्र का अर्थ त्रयाक्षरी मंत्र के समान हैं। किसी भी मंत्र या बीज मंत्र का जाप देवी-देवता को खुश कर उनकी कृपा प्राप्त कर अपने मनोरथ सिद्ध करने के लिये ही किया जाता है ऐसे में कई मंत्रों के अंत में स्वाहा, फट् आदि लगा होता है ये एक विशेष प्रयोजन में प्रयोग किये जाते हैं। बीज मंत्रों के अंत में नम: का प्रयोग स्तम्भन, विद्वेषण और मोहन के लिए किया जाता है।

6. नवाक्षरी सिद्धी लक्ष्मी मंत्र

ॐ ह्रीं हूं हां ग्रें क्षौं क्रों नमः॥

ॐ परमपिता परमात्मा अर्थात ईश्वर, ह्रीं शिवयुक्त विश्वमाता आद्य शक्ति, हूं कूर्च बीज है इसमें ह भगवान शिव के लिए ऊ भैरव एवं अनुस्वार दुखहर्ता के लिए है, इसका तात्पर्य है असुर संहारक भगवान शिव मेरे दुखों का नाश करें, इसी प्रकार अन्य बीज मंत्र भी अलग-अलग देवी-देवताओं का प्रतिनिध्व करते हैं। इसलिए अपने मंत्र की शक्ति को बढ़ाने के लिए प्रत्येक देवी-देवता के मंत्र में अन्य देवी-देवताओं के मंत्र को शामिल कर लिया जाता है ताकि साधक को साधना का अभिष्ट फल निर्विघ्न रुप से प्राप्त हो। कुल मिलाकर इस मंत्र के माध्यम से भी यही आह्वान किया गया है कि साधक के जीवन के कष्टों को दूर करते हुए सभी देव उसके जीवन को समृद्ध करें एवं शत्रुओं का शमन करें।

7. दशाक्षरी कमला मंत्र

ॐ नमः कमलवासिन्यै स्वाहा॥

माता कमला का यह दशाक्षरी मंत्र काफी लोकप्रिय है। इसमें भी साधक मां कमला से पापों का नाश करने, जीवन में समृद्धि लाने के लिए, आंतरिक शक्ति को मजबूत करने की प्रार्थना करता है।
देवी लक्ष्मी को धन और समृद्धि की देवी माना जाता है। आज के युग में बिना धन-वैभव मनुष्य का जीवन अधूरा होता है। कलयुग में जिन देवों को सर्वाधिक पूजा जाता है उनमें लक्ष्मी जी एक हैं। देवी लक्ष्मी जी को प्रसन्न करने के कुछ आसान मंत्र निम्न हैं:

1. मॉं लक्ष्मी बीज मंत्र
ॐ ह्रीं श्रीं लक्ष्मीभ्यो नमः॥
Om Hreem Shreem Lakshmibhayo Namah॥

2. मॉं महालक्ष्मी मंत्र
ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये प्रसीद प्रसीद ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं महालक्ष्मयै नम:॥
Om Shreem Hreem Shreem Kamale Kamalalaye Praseed Praseed
Om Shreem Hreem Shreem Mahalakshmaye Namah॥

3. मॉं लक्ष्मी गायत्री मंत्र
ॐ श्री महालक्ष्म्यै च विद्महे विष्णु पत्न्यै च धीमहि तन्नो लक्ष्मी प्रचोदयात् ॐ॥
Om Shree Mahalakshmyai Cha Vidmahe Vishnu Patnyai Cha Dheemahi
Tanno Lakshmi Prachodayat Om॥

शांति पाठ मंत्र

ॐ द्यौ: शान्तिरन्तरिक्षँ शान्ति:,

पृथ्वी शान्तिराप: शान्तिरोषधय: शान्ति:।

वनस्पतय: शान्तिर्विश्वे देवा: शान्तिर्ब्रह्म शान्ति:,

सर्वँ शान्ति:, शान्तिरेव शान्ति:, सा मा शान्तिरेधि॥

ॐ शान्ति: शान्ति: शान्ति:॥

यजुर्वेद के इस शांति पाठ मंत्र के जरिये साधक ईश्वर से शांति बनाये रखने की प्रार्थना करता है। विशेषकर हिंदू संप्रदाय के लोग अपने किसी भी प्रकार के धार्मिक कृत्य, संस्कार, यज्ञ आदि के आरंभ और अंत में इस शांति पाठ के मंत्रों का मंत्रोच्चारण करते हैं। वैसे तो इस मंत्र के जरिये कुल मिलाकर जगत के समस्त जीवों, वनस्पतियों और प्रकृति में शांति बनी रहे इसकी प्रार्थना की गई है। इसका शाब्दिक अर्थ लें तो उसके अनुसार इसमें यह गया है कि हे परमात्मा स्वरुप शांति कीजिये, वायु में शांति हो, अंतरिक्ष में शांति हो, पृथ्वी पर शांति हों, जल में शांति हो, औषध में शांति हो, वनस्पतियों में शांति हो, विश्व में शांति हो, सभी देवतागणों में शांति हो, ब्रह्म में शांति हो, सब में शांति हो, चारों और शांति हो, हे परमपिता परमेश्वर शांति हो, शांति हो, शांति हो।
1. कुबेर मंत्र

ॐ यक्षाय कुबेराय वैश्रवणाय धनधान्याधिपतये
धनधान्यसमृद्धिं मे देहि दापय स्वाहा॥

धन धान्य और समृद्धि के स्वामी श्री कुबेर जी का यह 35 अक्षरी मंत्र है। इस मंत्र के विश्रवा ऋषि हैं तथा छंद बृहती है भगवान शिव के मित्र कुबेर इस मंत्र के देवता हैं। कुबेर देवताओं के कोषाध्यक्ष हैं। इस मंत्र को उनका अमोघ मंत्र कहा जाता है। माना जाता है कि तीन महीने तक इस मंत्र का 108 बार जाप करने से घर में किसी भी प्रकार धन धान्य की कमी नहीं होती। यह मंत्र सब प्रकार की सिद्धियां देने पाने के लिये कारगर है। इस मंत्र में देवता कुबेर के अलग-अलग नामों एवं उनकी विशेषताओं का जिक्र करते हुए उनसे धन-धान्य एवं समृद्धि देने की प्रार्थना की गई है। यदि बेल के वृक्ष के नीचे बैठ कर इस मन्त्र का एक लाख बार जप किया जाये तो धन-धान्य रुप समृद्धि प्राप्त होती है।

2. कुबेर धन प्राप्ति मंत्र




ॐ श्रीं ह्रीं क्लीं श्रीं क्लीं वित्तेश्वराय नमः॥

धन प्राप्ति की कामना करने वाले साधकों को कुबेर जी का यह मंत्र जपना चाहिये। इसके नियमित जप से साधक को अचानक धन की प्राप्ति होती है।

3. कुबेर अष्टलक्ष्मी मंत्र

ॐ ह्रीं श्रीं क्रीं श्रीं कुबेराय अष्ट-लक्ष्मी मम गृहे धनं पुरय पुरय नमः॥

कुबेर और मां लक्ष्मी का यह मंत्र जीवन की सभी श्रेष्ठता को देने वाला है, ऐश्वर्य, लक्षमी, दिव्यता, पद प्राप्ति, सुख सौभाग्य, व्यवसाय वृद्धि, अष्ट सिद्धि, नव निधि, आर्थिक विकास, सन्तान सुख उत्तम स्वास्थ्य, आयु वृद्धि, और समस्त भौतिक और परासुख देने में समर्थ है। शुक्ल पक्ष के किसी भी शुक्रवार को रात्रि में इस मंत्र की साधना शुरू करनी चाहिये।

इन तीनों में से किसी भी एक मंत्र का जप दस हजार होने पर दशांश हवन करें या एक हजार मंत्र अधिक जपें।

शिव मंत्र 


ॐ नमः शिवाय॥
Om Namah Shivaya॥

अर्थ : ” हे शिव , मै आपको बार बार नमन करता हूँ ” भगवान शिव का यह मूल मंत्र सबसे सरल और सबसे लोकप्रिय मंत्र है | और इस मंत्र का उच्चारण कोई भी व्यक्ति कर सकता है | इस मंत्र के उच्चारण के लिए कोई विशेष स्थान या फिर विशेष समय की आवश्यकता नही है | दिखने में यह मंत्र बहुत ही सरल और छोटा प्रतीत होता है किन्तु शिवमहापुराण में दर्शाया गया है कि इस मंत्र के महात्म्य का विस्तार से वर्णन 100 करोड़ वर्षो में भी नहीं किया जा सकता है | इस मंत्र को सभी वेदों का सार तत्व भी माना गया है |

ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्
उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मुक्षीय मामृतात्॥
Om Tryambakam Yajamahe Sugandhim Pushti-Vardhanam
Urvarukamiva Bandhanan Mrityormukshiya Mamritat॥

महामृत्युंजय मंत्र का अर्थ
त्रयंबकम- त्रि.नेत्रों वाला ;कर्मकारक।
यजामहे- हम पूजते हैं, सम्मान करते हैं। हमारे श्रद्देय।
सुगंधिम- मीठी महक वाला, सुगंधित।
पुष्टि- एक सुपोषित स्थिति, फलने वाला व्यक्ति। जीवन की परिपूर्णता
वर्धनम- वह जो पोषण करता है, शक्ति देता है।
उर्वारुक- ककड़ी।
इवत्र- जैसे, इस तरह।
बंधनात्र- वास्तव में समाप्ति से अधिक लंबी है।
मृत्यु- मृत्यु से
मुक्षिया, हमें स्वतंत्र करें, मुक्ति दें।
मात्र न
अमृतात- अमरता, मोक्ष।

महामृत्युंजय मंत्र का सरल अनुवाद
इस मंत्र का मतलब है कि हम भगवान शिव की पूजा करते हैं, जिनके तीन नेत्र हैं, जो हर श्वास में जीवन शक्ति का संचार करते हैं और पूरे जगत का पालन-पोषण करते हैं।

रुद्र गायत्री मंत्र
ॐ तत्पुरुषाय विद्महे महादेवाय धीमहि
तन्नो रुद्रः प्रचोदयात्॥
Om Tatpurushaya Vidmahe Mahadevaya Dhimahi
Tanno Rudrah Prachodayat॥

यह शिव गायत्री मंत्र है, जिसका जप करने से मनुष्य का कल्याण संभव है। शिव गायत्री मंत्र का जप प्रत्येक सोमवार को करना चाहिए। शुक्ल पक्ष के किसी भी सोमवार से उपवास रखते हुए इस मंत्र का आरंभ करना चाहिए। श्रावण मास में सोमवार को शिव गायत्री मंत्र का जप विशेष शुभ फलदायी माना गया है। शिव गायत्री मंत्र का जप करके शिवलिंग पर गंगा जल, बेलपत्र, धतूरा, चंदन, धूप, फल, पुष्प आदि श्रद्धा भाव से अर्पित करने से शिव एवं शक्ति दोनों की ही कृपा मिलती है।

श्री गणेश मंत्र
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1.वक्रतुण्ड गणेश मंत्र
वक्रतुण्ड महाकाय कोटिसूर्य समप्रभ।
निर्विघ्नं कुरू मे देव सर्वकार्येषु सर्वदा।।

2.गणेश शुभ लाभ मंत्र
ॐ श्रीं गं सौभाग्य गणपतये
वर्वर्द सर्वजन्म में वषमान्य नमः॥

3.गणेश गायत्री मंत्र
ॐ एकदन्ताय विद्धमहे, वक्रतुण्डाय धीमहि,
तन्नो दन्ति प्रचोदयात्॥

गायत्री मंत्र 
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वेद माता गायत्री देवी को गायत्री मंत्र की देवी माना गया है। गायत्री मंत्र हिंदू धर्म में आस्था रखने वालों के लिए सबसे पवित्र मंत्र माना जाता है। शास्त्रों के अनुसार यह वेदों का श्रेष्ठ मंत्र है। माना जाता है कि चारों वेदों का सार इस मंत्र में समाहित है।

ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्यः धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्॥

ऊँ का अर्थ है ईश्वर, भू: का अर्थ प्राणस्वरूप, भुव: दुखों का नाश करने वाला अर्थात दुखनाशक, स्व: सुख का स्वरुप अर्थात सुख स्वरूप, तत् का तात्पर्य है उस, सवितु: का अभिप्राय है तेजस्वी, वरेण्यं कहते हैं श्रेष्ठ को, भर्ग: का अर्थ लिया जाता है पापनाशक, देवस्य देवताओं का अर्थात दिव्य, धीमहि धारण करने को कहते हैं, धियो का मतलब है बुद्धि, यो का अर्थ जो, न: का तात्पर्य है हमारी, प्रचोदयात् को कहते हैं प्रेरित करें। अर्थात मंत्र का अभिप्राय हुआ उस प्राणस्वरुप, दु:ख नाशक, सुख स्वरूप, श्रेष्ठ, तेजस्वी, पापनाशक, देव स्वरूप परमात्मा को हम अन्तरात्मा में धारण करें। वह ईश्वर हमारी बुद्धि को सन्मार्ग पर प्रेरित करे।

काली मंत्र
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काली मां दुर्गा का ही एक स्वरुप है। मां दुर्गा के इस महाकाली स्वरुप को देवी के सभी रुपों में सबसे शक्तिशाली माना जाता है। दसमहाविद्याओं में काली का पहला स्थान माना जाता है। दुष्ट, अभिमानी राक्षसों के संहार के लिए मां काली को जाना जाता है। अक्सर काली की साधना सन्यासी या तांत्रिक करते ही करते हैं लेकिन मां काली के कुछ मंत्र ऐसे भी हैं जिनका जाप कर कोई भी साधक अपने जीवन के संकटों को दूर कर सकता है।

22 अक्षरी श्री दक्षिण काली मंत्र

ॐ क्रीं क्रीं क्रीं हूँ हूँ ह्रीं ह्रीं दक्षिणे कालिके क्रीं क्रीं क्रीं हूँ हूँ ह्रीं ह्रीं स्वाहा॥

इस मंत्र के जरिये दक्षिण काली का आह्वान किया जाता है। शत्रुओं के विनाश के लिए साधक इस मंत्र के जरिये मां काली की साधना करते हैं व सिद्धि प्राप्त करते हैं। तंत्र विद्या में मां काली की साधना के लिए यह मंत्र काफी लोकप्रिय है। इस मंत्र का तात्पर्य है अर्थ है कि परमेश्वरी स्वरुप जगत जननी महाकाली महामाया मां मेरे दुखों को दूर करें। शत्रुओं का नाश कर मां अज्ञानता का अंधकार मिटाकर ज्ञान का प्रकाश हो। वैसे भी मां काली ज्ञान, मोक्ष तथा शत्रु नाश करने की अधिष्ठात्री देवी हैं। इनकी कृपा से समस्त दुर्भाग्य दूर हो जाते हैं

एकाक्षरी काली मंत्र

ॐ क्रीं

यह मां काली का एकाक्षरी मंत्र है। इसका जप मां के सभी रूपों की आराधना, उपासना और साधना में किया जा सकता है। मां काली के इस एकाक्षरी मंत्र को मां चिंतामणि काली का विशेष मंत्र भी कहा जाता है।

तीन अक्षरी काली मंत्र

ॐ क्रीं ह्रुं ह्रीं॥

मां काली की साधना व उनके प्रचंड रुपों की आराधना के लिए यह तीन अक्षरी मंत्र एक विशिष्ट मंत्र है। एकाक्षरी व त्रयाक्षरी मंत्रों को तांत्रिक साधना के मंत्र के पहले और बाद में संपुट की तरह भी लगाया जा सकता है।

पांच अक्षरी काली मंत्र

ॐ क्रीं ह्रुं ह्रीं हूँ फट्॥

माना जाता है कि इस पंचाक्षरी मंत्र का जाप प्रतिदिन प्रात:काल में 108 बार किया जाये तो मां काली साधक के सभी दुखों का निवारण करके उसके यहां धन-धान्य की वृद्धि करती हैं। पारिवारिक शांति के लिए भी इस मंत्र का जप किया जाता है।

षडाक्षरी काली मंत्र

ॐ क्रीं कालिके स्वाहा॥

इस षडाक्षरी मंत्र का जप सम्मोहन आदि तांत्रिक सिद्धियों के लिए किया जाता है। यह मंत्र तीनों लोकों को मोहित करने वाला है।

सप्ताक्षरी काली मंत्र

ॐ हूँ ह्रीं हूँ फट् स्वाहा॥

यह मंत्र भी धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष की प्राप्ति के लिए यह मंत्र कारगर माना जाता है।

श्री दक्षिणकाली मंत्र

ॐ ह्रीं ह्रीं ह्रुं ह्रुं क्रीं क्रीं क्रीं दक्षिणकालिके क्रीं क्रीं क्रीं ह्रुं ह्रुं ह्रीं ह्रीं॥

तांत्रिक इस मंत्र के जरिये दक्षिण काली की साधना कर सिद्धि प्राप्ति की कामना करते हैं। यदि आपको शत्रुओं का भय सता रहा है तो आप भी अपने गुरु के मार्गदर्शन में इस मंत्र का जाप कर सकते हैं।

श्री दक्षिणकाली मंत्र

क्रीं ह्रुं ह्रीं दक्षिणेकालिके क्रीं ह्रुं ह्रीं स्वाहा॥

यह भी दक्षिण काली का एक प्रचलित मंत्र है। रोग दोष आदि को दूर करने के लिए इस मंत्र से साधना करें। मां काली शीघ्र कृपा करती हैं।

श्री दक्षिणकाली मंत्र

ॐ ह्रुं ह्रुं क्रीं क्रीं क्रीं ह्रीं ह्रीं दक्षिणकालिके ह्रुं ह्रुं क्रीं क्रीं क्रीं ह्रीं ह्रीं स्वाहा॥

इस मंत्र में भी विभिन्न बीज मंत्रों को सम्मिलित किया गया है जिससे मंत्र और अधिक शक्तिशाली हो जाता है। मां काली को शीघ्र प्रसन्न करने के लिए तांत्रिक या सन्यासी इस मंत्र के द्वारा मां काली की साधना करते हैं।

श्री दक्षिणकाली मंत्र

ॐ क्रीं क्रीं क्रीं ह्रुं ह्रुं ह्रीं ह्रीं दक्षिणकालिके स्वाहा॥

यह काली माता का एक विशिष्ट मंत्र है इसका प्रयोग भी तांत्रिक साधना में किया जाता है।

भद्रकाली मंत्र

ॐ ह्रौं काली महाकाली किलिकिले फट् स्वाहा॥

मां भद्रकाली के इस मंत्र का प्रयोग शत्रुओं को वश में करने के लिये किया जाता है। शत्रुओं के तीव्र विनाश के लिये मां भद्रकाली की साधना की जाती है। मां भद्रकाली को धर्म, कर्म और अर्थ की सिद्धी देने वाली माना जाता है। साधक जिस भी कामना से भद्रकाली की साधना करता है, उनकी उपासना करता है, वह पूर्ण होती है।

श्री शमशान काली मंत्र

ऐं ह्रीं श्रीं क्लीं कालिके क्लीं श्रीं ह्रीं ऐं॥

यह माना जाता है कि शमशान काली शमशान में वास करती हैं व शव की सवारी करती हैं। तंत्र विद्या के अनुसार शमशान काली की साधना शवारुढ़ यानि शव पर बैठकर की जाती है। इसलिए यह बहुत ही जटिल एवं अमानवीय साधना भी मानी जाती है जो कि सामाजिक व कानूनी रुप से लगभग प्रतिबंधित है। फिर भी लकड़ी आदि के टुकड़ों में प्राण प्रतिष्ठा कर उसे शव का रुप देकर भी तांत्रिक शमशान काली की साधना करते हैं। भूत-प्रेत, पिशाचादि को वश में करने के लिए शमशान काली की साधना की जाती है।

नोट: यह बात विशेष रुप से ध्यान दें कि कोई भी साधना गुरु के मार्ग दर्शन में ही करें। विशेषकर मां काली की साधना कठिन होने के कारण तांत्रिकों अथवा योगियों द्वारा ही की जाती है। माना जाता है कि भूलवश भी यदि गलत मंत्रोच्चारण किया तो उसका प्रतिकूल प्रभाव भी पड़ सकता है व मां काली के कोप का भाजन बनना पड़ सकता है। कमजोर दिल के लोगों को मां काली की साधना से दूर रहना चाहिये।

लक्ष्मी गणेशजी मंत्र 




लक्ष्मी-गणेश मंत्र

1. लक्ष्मी विनायक मन्त्र

ॐ श्री गं सौम्याय गणपतये वरवरद सर्वजनं में वशमानय स्वाहा।।

2. लक्ष्मी गणेश ध्यान मन्त्र

दन्ताभये चक्रवरौ दधानं, कराग्रगं स्वर्णघटं त्रिनेत्रम्।
धृताब्जयालिङ्गितमाब्धि पुत्र्या-लक्ष्मी गणेशं कनकाभमीडे॥

3. ऋणहर्ता गणपति मन्त्र

ॐ गणेश ऋणं छिन्धि वरेण्यं हुं नमः फट्॥

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