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तेरी सूरत झूठी सही शहर को दिखाने आ जा





तेरी सूरत झूठी सही शहर को दिखाने आ जा

तू एक बार दो चार अलाव जलाने आ जा

मैं अजनबी हूँ तू मुझपर भौंकने आ जा

ओ! लेताजी तू एक रात गरीब को देखने आ जा

यह वहीं गरीब हैं जो तुझे देते हैं बुखार में भी वोट

तू खून जमाऊ सर्दी में हालचाल लेने आ जा

अरे! मेरा वोट जूठा सही पर तुझ जैसा झूठा नहीं

ओ! बेरहम देख और दिखाने आ जा.....

कमबख़्त! बेज़ुबानों का हालचाल लेने आ जा


समस्त रजाईलिप्त(रजाईपरस्त,फ्रीसुविधालिप्त) धूर्त और भ्रष्ट लेताओं को अप्रेम अश्रुगुर्दित समर्पित रचना।


संजीवनी -) : इस कविता का जीवित और मृत सभी भ्रष्ट लेताओं से आदतन गहरा सम्बंध है। राष्ट्रहित हेतु अपने ऊपर जरूर लें ।

_ब्लॉगर आकांक्षा सक्सेना 03:17 PM

07 /01 /2023 

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