माता दुर्गा का शक्तिशाली ॥ अथार्गलास्तोत्रम् ॥
Durga Saptashati argala stotram -
यह पाठ दुर्गा माँ की माहात्म्य के अंतर्गत किया जाने वाला स्तोत्र अत्यंत शुभमंगल और सभी प्रकार से कार्य सिद्ध करने के लिए लाभप्रद है।
॥ अथार्गलास्तोत्रम् ॥
ॐ अस्य श्रीअर्गलास्तोत्रमन्त्रस्य विष्णुर्ऋषिः,अनुष्टुप् छन्दः,
श्रीमहालक्ष्मीर्देवता, श्रीजगदम्बाप्रीतयेसप्तशतीपाठाङ्गत्वेन जपे विनियोगः॥
ॐ नमश्चण्डिकायै॥
मार्कण्डेय उवाच-
ॐ जयन्ती मङ्गला काली भद्रकाली कपालिनी।
दुर्गा क्षमा शिवा धात्री स्वाहा स्वधा नमोऽस्तु ते॥1॥
जय त्वं देवि चामुण्डे जय भूतार्तिहारिणि।
जय सर्वगते देवि कालरात्रि नमोऽस्तु ते॥2॥
मधुकैटभविद्राविविधातृवरदे नमः।
रुपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि॥3॥
महिषासुरनिर्णाशि भक्तानां सुखदे नमः।
रुपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि॥4॥
रक्तबीजवधे देवि चण्डमुण्डविनाशिनि।
रुपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि॥5॥
शुम्भस्यैव निशुम्भस्य धूम्राक्षस्य च मर्दिनि।
रुपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि॥6॥
वन्दिताङ्घ्रियुगे देवि सर्वसौभाग्यदायिनि।
रुपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि॥7॥
अचिन्त्यरुपचरिते सर्वशत्रुविनाशिनि।
रुपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि॥8॥
नतेभ्यः सर्वदा भक्त्या चण्डिके दुरितापहे।
रुपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि॥9॥
स्तुवद्भ्यो भक्तिपूर्वं त्वां चण्डिके व्याधिनाशिनि।
रुपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि१॥10॥
चण्डिके सततं ये त्वामर्चयन्तीह भक्तितः।
रुपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि॥11॥
देहि सौभाग्यमारोग्यं देहि मे परमं सुखम्।
रुपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि॥12॥
विधेहि द्विषतां नाशं विधेहि बलमुच्चकैः।
रुपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि॥13॥
विधेहि देवि कल्याणं विधेहि परमां श्रियम्।
रुपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि॥14॥
सुरासुरशिरोरत्ननिघृष्टचरणेऽम्बिके।रुपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि॥15॥
रुपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि॥16॥
रुपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि॥17॥
रुपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि॥18॥
रुपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि॥19॥
रुपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि॥20॥
रुपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि॥21॥
रुपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि॥22॥
रुपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि॥23॥
तारिणीं दुर्गसंसारसागरस्य कुलोद्भवाम्॥24॥
स तु सप्तशतीसंख्यावरमाप्नोति सम्पदाम्॥25॥
॥ इति देव्या अर्गलास्तोत्रं सम्पूर्णम्
बीज मंत्र-
शैलपुत्री : ह्रीं शिवायै नम: ।
ब्रह्मचारिणी : ह्रीं श्री अम्बिकायै नम: ।
चन्द्रघंटा : ऐं श्रीं शक्तयै नम: ।
कूष्मांडा : ऐं ह्री देव्यै नम: ।
स्कंदमाता : ह्रीं क्लीं स्वमिन्यै नम: ।
कात्यायनी : क्लीं श्री त्रिनेत्रायै नम: ।
कालरात्रि : क्लीं ऐं श्री कालिकायै नम: ।
महागौरी : श्री क्लीं ह्रीं वरदायै नम: ।
सिद्धिदात्री : ह्रीं क्लीं ऐं सिद्धये नम: ।
जगतमाता जगदम्बा आप सभी की सपरिवार रक्षा करें और सभी मनोकामनाएं पूर्ण करें 🙏🚩💐
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