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रेंगते सवाल, मौन हैं जवाब

 






रेंगते सवाल, मौन है जवाब
कैसे कहूं जिंदगी उलझ गयी जनाब
तुम ही हो मेरे हर सवाल के जवाब
छिप गये हों जैसे कहीं बादलों में चांद

रेंगते सवाल मौन है जवाब 
कैसे कहूं सुबह में दौड़ी आयी शाम
उन लम्हों में ही फँस गये सवालोंं के जवाब
बिक गये हों जैसे कहीं हीरे, काँच भाव

रेंगते सवाल मौन है जवाब 
कैसे कहूं दर्द में निकली हँसी वाह! 
हँसी की गली में दर्द घूमे गुमनाम
दब गये हों जैसे जिंदा इंसानों में इंसान

रेंगते सवाल, मौन है जवाब 
कैसे कहूं जिंदगी वाण है या प्राण 
प्राणों में ही बसता है वो परमात्मा महान
जिसको नहीं जान पाया आज तक विज्ञान 

रेंगते सवाल मौन है जवाब 
कैसे कहूं जिंदगी ले रही इम्तहान 
परीक्षा भी ना सवाल परिणाम भी नहीं जवाब
हो रही मेहनत - भाग्य में जंग आर पार

रेंगते सवाल, मौन है जवाब 
कैसे कहूं आकांक्षा हूं या कोई सवाल?
हँस ही दोगे तुम इस कविता पे मेरी जनाब
है यहि आसान काम तो करो बेमिसाल 

रेंगते सवाल मौन हैं जवाब
कैसे कहूं जिंदगी से है न कोई आस
मौत ही मेरे हर सवाल का जवाब 
आयेगी कब! ढूंढती कर रही हूं इंतज़ार 

अरे! बुजदिल नहीं मैं कायर नहीं
हूं जिज्ञासु कलमप्रेमी कोई पागल नहीं.... 



_ब्लॉगर आकांक्षा सक्सेना 
1:10 (दोपहर) PM 27/Jun/Friday/2025


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