फल वाले की मक्कारी
__________________
_ब्लॉगर आकांक्षा सक्सेना
साथियों! आजकल यह समय हम इंसानों की लालच की पराकाष्ठा का, यानि मिलावट का दौर चल रहा है । जहाँ आजकल खाने-पीने की चीजों, स्वभाव, भाव-भंगिमाओं, आचार-विचार, आदान-प्रदान, रिश्तों-नातों हर चीज में "सत्य" भी शत् प्रतिशत मिलावट की चपेट में है। आज जो इंसान कुर्सी पर या किसी भी तरह की ऊँचाई यानि ठैले तक पर बैठा है वो भी मक्कारी से बाज नही आता, हाँ मैं यहां सब की बात नहीं कर रही हूं पर ज्यादातर लोग आज अपना जमीर /ईमान/सद्चरित्र को भूलते जा रहे हैं। हर किसी को बस किसी भी कीमत पर ज्यादा सो ज्यादा बस पैसा कमाने की होड़ है और यह पैसे कमाने की भी मानो गला काट प्रतियोगिता से कम नहीं है। बस इसी प्रतियोगिता की कड़ी में आज एक फल वाले की मक्कारी उजागर करती कहानी आप सभी के सामने प्रस्तुत हैं - रविवार का दिन था और एक करीब 82 साल के बुजुर्ग जिनका एक हप्ते पहले ही मोतियाबिंद का आप्रेशन हुआ था। वहीं उनकी पत्नी जिनकी उम्र करीबन 75 साल रही होगी । जिन्हें कैंसर के अलावा भी अनेकों बीमारियों ने घेर रखा था। जिनके भगवान की कृपा से दो लड़के थे जो पूना में जॉब करते थे पर बीस बर्षों से उन्होंने अपने बूढ़े माता-पिता की कोई सुध नही ली। क्योंकि इन दोनों माता-पिता को चर्म रोग है और उन बेटों और बहुओं को इससे बहुत एलर्जी है कि कहीं हमें न हो जाये। कुल मिलाकर यह दोनों बुजुर्ग अपनी जिंदगी अकेले ही गांव के पुराने कच्चे मकान में बिता रहे हैं ।
लोगों ने कहा भी कि मोदी सरकार पक्के मकान की सुविधा दे रही है आप कहो तो कोशिश करें। तो वह बुजुर्ग बोले थोड़े दिन की जिंदगी है कट ही जायेगी । क्यों मोदी जी को परेशान करना। यह सुनकर सामने खड़े लोग हँस पड़े कि बाबा जी आप से क्या ही कहें अब। तभी अचानक एक कोट पैंट में चमकते जूतों के साथ एक नौजवान ने प्रवेश किया तो वहां खड़े लोग बोले, "आइये! डॉक्टर साहब, तो डॉक्टर साहब मुस्कुराते हुए बोले, बाबा जी, दादी बहुत कमजोर हो गयी हैं, कुछ फ्रूट बगैरह ले लिया करो, कुछ सेब, केले, पपीता, कीवी वगैरह।" यह सुनकर बाबा ने कहा, हाँ बेटा आज ले आयेगें। फिर उसने कुछ दवा लिखी और वह वहां से चलते हुआ बोला, काश! सरकार आप जैसों के लिए बेसहारा बृद्ध आयुष्मान कार्ड योजना शुरू कर दें। तो आपको कुछ सहारा मिल जाये। यह सुनकर बाबा ने कहा, अरे! बेटा सरकार क्या - क्या करे? कुछ किस्मत के लिखे लेख होते हैं बेटा जिसे दुनिया की कोई सरकार मिटा नहीं सकती, उसके लिए तो सिर्फ़ हरि नाम का सहारा ही काम आता है। बेटा शाम हो रही है मै थोड़ा भजन कर लूं। तो डॉक्टर बोले, हाँ बिल्कुल, और वह वहां से चला गया। थोड़ी देर भजन करने के बाद बाबा ने अपनी लठिया उठायी और धीरे-धीरे बाजार के लिए निकले तो पड़ोस में ही उनके बचपन के मित्र का घर था। वह उस घर के सामने से गुजरे तो उन्हें लगा दो मिनट मित्र के हाल-चाल ले लें। तो उन्होंने गेट खटखटाया तो मित्र ने ही गेट खोला और वह बोले अरे! ब्रज तुम, आओ आओ, अब आँख में दिक्कत तो नहीं। तो वह बाबा बोले, नही हल्की चिलमिली पड़ती है बस। तो बाबा के मित्र ने कहा कि क्या बाजार जा रहे थे? तो बाबा ने कहा, हाँ वो कुछ फल लेने थे तेरी भाभी के लिए पर...। तो वह बोले, "पर, मतलब? तो बाबा ने कहा, कुछ नहीं परमिंदर । तो बाबा के मित्र परमिंदर ने अपनी कुर्ते की जेब में हाथ डाला और कुछ रूपये निकाल कर बाबा के हाथ में रखते हुए बोला कि चुपचाप रख ले ब्रज, कहीं मेरे पोते देख न लें, कुछ मत बोल बस रख ले।
ब्रज बाबा ने अपने मित्र परमिंदर की आखों में झांका तो सब समझ लिया कि इसकी भी बुढ़ापे पर छीछालेदर ही है। तभी परमिंदर का नाती दौड़ता हुआ आया और बोला, दादा जी मुझे पैसे दो। पैसे दो। परमिंदर ने कहा कि किस लिये पैसे चाहिए । तो वह बोला कि मैने शेयर मार्केट निफ्टी फिप्टी में पैसे लगाये सब डूब गये । तो परमिंदर ने कहा कि पढ़ाई करो बेटा शार्टकट के चक्कर में मत रहो। वह बोला, पैसे देते हो या नही। तो परमिंदर ने कहा, नही। तो परमिंदर का पोता बोला, लास्ट बार पूछता हूं । पैसे देते हो या नही। तो परमिंदर ने कहा, नहीं। यह सुनकर परमिंदर के नाती ने गुस्से में आगबबूला होते हुए परमिंदर के कुर्ते की जेब में ताकत के साथ हाथ घुसैड़ दिया जिससे उनके कुर्ते की जेब ही फट गयी और उनके नाती का हाथ कुर्ते के बाहर दिखने लगा। वह चिल्लाते हुए दौड़ा कि आज फिर दादाजी ने अपने किसी मित्र को उधार पैसे दे दिए लगता है, इनकी जेबें खाली हैं। तब उसकी मां उसे पीटने लगी तो परमिंदर ने कहा, बहू रहने दे। मार मत समझा उसे, शांति से समझा। यह सब गृह क्लेश देखते हुए बाबा ब्रज उस घर से धीरे-धीरे बाहर निकलते हैं और अपने बूढ़े मित्र परमिंदर की बेबसी को दु:खी मन से सोखते हुए बाजार तक आते हैं। फिर धीरे-धीरे सड़क पार करते हुए फल वाले ठेले की तरफ़ पहुंचते हैं। फल वाले ठेले पर काफी भीड़ देखते हुए वह दूसरे ठेले की तरफ़ मुड़ते हैं कि उस ठेले पर लगा लड़का कहता है अरे! बाबा कहां जात हो, रूको देत हैं फल। यह सुनकर, बाबा ठहर गये। तो ऊंचाई पर बैठे फल वाले ने कहा क्या चाहिये बाबा? तो बाबा ने कहा, सेब दे दो। तो फल वाले ने कहा कि, कित्ते दे दें सेब? तो बाबा ने कहा बस आधा किलो। तो फल वाले ने बाबा कि तरफ ध्यान से देखा कि इनकी तो आंखें बनी हैं लगता है ताजा मोतियाबिंद का आप्रेशन हुआ.. इन्हें क्या दिखेगा। बस यही सोचते हुए उस फल वाले ने जानबूझकर दो छोटे सेब पूरी तरह सड़े और तीसरा सेब आधा खराब तोल कर काली पन्नी में बांध कर दे दिए । तो बाबा ने कहा कि कितने पैसे हुए तो फल वाले ने कहा 60 रूपये । बाबा ने कहा, बड़े मंहगे सेब हैं। सेब कभी सौ से कम होता क्यों नहीं। तो फल वाले ने कहा चलो बाबा 50 रूपये दे दो । यह सिर्फ़ तुम्हारे लिये रेट लगायें हैं, डिलीसियन सेब है बाबा महंगा तो होत ही है दूर कश्मीर से जो आत है। बाबा ने परमिंदर वाले वही नोट फल वाले का तरफ बढ़ा दिये । तो फल वाला नोटों की तरफ़ आंखें तरेर के बोला, इत्ते सड़े नोट, देखो! बाबा यह बीस का नोट तो मैं 17 मैं ही लूंगा। यह 15 में ही चलेगा, कहां घुसैड़ कर रखते हो बाबा, कितना गला नोट। बाबा ने कहा ठीक है.. ।
बाबा खुशी-खुशी फल लेकर सड़क पार करते हुए घर की गली में पहुंचे तो बगल से एक लड़की बोली, बाबा जी, बंदर हैं फल कुर्ते में छिपा लो। यह सुनकर, बाबा ने वह फल कुर्ते में छिपाते हुए अपनी छाती से लगा लिए और धीरे-धीरे अपने घर की चौखट की तरफ़ मुड़े ही थे कि सामने से दो सांड लड़ते हुए उनकी तरफ आने लगे और उन्हें लड़ता देख पास में लेटे चार पांच कुर्ते बुरी तरह भौंकने लगे। और तभी बाबा कि लठिया गली में पड़े गोबर से सिरक गयी और बाबा जी का सतुंलन बिगड़ गया और वह उन सेब को छाती से लगाये बगल की नाली में गिर पड़े कि तभी सामने वाले पड़ोसी के लड़के ने उन्हें उठाया और उन्हें उनके घर के अंदर पहुंचा दिया। उन्हें आता देख उनकी पत्नी ने कहा, क्या हुआ, क्या हुआ क्या चोट लग गई। तो बाबा ने कहा, अरे! नहीं । सामने से नंदी बाबा आ रहे थे तो छोटू ने मुझे थोड़ा सहारा दे दिया बस, जा बेटा हम ठीक है। छोटू ने बाबा का इशारा समझ लिया कि दादी को बाबा के गिरने की बात नहीं बतानी है क्योंकि वह बीमार है और बेवजह ज्यादा तनाव ले लेगीं। यह सोच वह चुपचाप अपने घर वापस चला गया। इधर बाबा ने कहा, यह लो अपने फल और तुरंत काट कर खाओ वरना भूल जाती हो। तो वह बोलीं, हाँ पहले अपने लड्डू गोपाल को चढ़ा दूं। तो बाबा ने कहा कि काट लो उसी में से भगवान को खिला देना। तो वह बोलीं, अच्छा काटतीं हूं। फिर वह सेब छीलने लगीं कि उनके हाथ में पानी - पानी हो गया और फिर उन्होंने सेब काटा कि पूरा सड़ा निकला और बदबू भी आ रही थी कि तभी उन्होंने दूसरा सेब काटा तो दूसरा भी पूरी तरह सड़ा फिर उन्होंने कहा, हे! गोविंद यह तो ठीक निकले भोग क्या लगाऊंगीं तुम्हें । तो वह भी आधा खराब निकला बस दो फांक ही ठीक निकलीं। जिसमें उन्होंने एक फांक भगवान को रखी और दूसरी बाबै को देते हुए बोलीं, लो यह खा लो। तो बाबा ने कहा क्या हुआ सब ठीक तो हैं ना। तो बाबा की पत्नी बोलीं, ठीक नहीं निकले सेब, सब खराब कढ़ गये। बस दो फांके(कली) ठीक बस। यह सुनकर बाबा तुरंत उठे और किसी तरह लड़खड़ाते हुए सेब वाले ठेले के सामने पहुंचे और बोले कि काहे! बेटा हमारा बीस का गला नोट तुमने 17 में लिया हम कछु नहीं बोले पर तुमने सब सड़े सेब तौले उसका क्या बोलो? तो वह बोला कि तुम हो कौन? मेरे ठेले के नहीं होगें सड़े सेब... बाबा ने कहा, तुम्हारे ठेले के ही हैं। तो वह फल वाला बोला कि क्या में सेब में घुसा बैठा हूं । हटो यहां से मेरी दुकानदारी खराब न करो और उसने ठेले वाले दूसरे लड़के से कहा, कि हटाओ इस पगलेट को। तो बाबा ने कहा तुम तो वही लड़के हो जो कह रहे थे यहीं से लो तो मैं इसी ठैले पर ठहर गया था। तो वह लड़का बाबा के कान में धीरे से बोला, कि हां मेरे मालिक ने तुम्हें जानबूझकर सड़े फल तौले, बाबा फल वल लेने अपने लड़के नातियों को भेजा करो समझा करो, तुम्हें बुढऊ देखकर कोई भी पागल बना देगा।समझे! अब यहां से जल्दी जाओ वरना यह मुझे मारने लगेगा समझो.. तभी फल वाला चिल्लाया, तू भी पगलेट है क्या? पगलेट को समझाने निकला है,चल जूस निकाल आ आकर। तभी वह बाबा पर जोर से चिल्लाया अरे! बाबा क्या पगलेट हो क्या?मुझे तुमने कब देख लिया? मैं तो अभी-अभी आया हूँ सुबह से बाहर था। यह सब ड्रामा देख बाबा धीरे-धीरे सधे कदमों से घर आ गये और आकर चुपचाप तखत पर लैट गये। तो बाबा की बूढ़ी पत्नी ने कहा कि छिपाओ मत क्या हुआ पूरी बात बताओ, ऐसे न मर जाऊंगी, अभी मुझे जगन्नाथ यात्रा देखनी है तब मरूंगीं। तो बाबा ने कहा बूढ़ी हो गयी,पर आज भी तुम मुझे शादी में तुझसे किया गया वादा कि मैं तुम्हें जगन्नाथ यात्रा दिखाऊंगा पर कभी वह वादा निभा ही नहीं सका,घर की जिम्मेदारियों ने कब जवान से बूढ़ा कर दिया पता ही न चला, मैं तुमसे क्षमाप्रार्थी हूं सचमुच लज्जित हूं। तो वह बोलीं, "तुम्हीं मेरे जगन्नाथ हो, और हम दोनों की पूरी जीवन यात्रा ही मेरी जगन्नाथ यात्रा के समान है, तुम्हारा जैसा जीवनसाथी पाकर मैं संतुष्ट हूं, बच्चों ने साथ छोड़ा, रिश्तेदारों ने, समाज ने पर तुमने नही। यह सुनकर बाबा ने कहा कि दवा खायी कि नहीं। तो वह बोलीं, पहले पूरी बात बताओ फिर खा लूंगी। तो बाबा ने फल वाले की पूरी करतूत विस्तार से सुना दी। यह सुनकर बाबा कि पत्नी ने कहा कि हाय राम! कितना मक्कार फलवाला है।
यह तो उस फल वाले की जानबूझकर की गयी मक्कारी है। जाने दो भगवान सब देखते हैं कल दूसरे फल वाले से लाना तो बाबा जी बोले, सबका यही हाल है नजर बचाकर एक खराब फल तौलना, चढ़ाना उनकी फितरत में हैं। टमाटर लेने जाओ तो चार में दो टमाटर खराब चढ़ाना ही हैं, दूध - घी यहां तक कि भगवान के मंदिरों में चढ़ने वाले प्रसाद में मिलावट.. समझ नही आता कि इंसान क्या से क्या बनता जा रहा है । इस तरह भी भला कोई कैसे करोड़पति बनता होगा, अपनी आत्मा को बेचकर, आत्मा को मार कर? तो बाबा जी की पत्नी बोलीं, जैसे कि सोना सुनार का,उसी प्रकार सेब अनार फल वाले का... । दुकानों पर लिखा होता है फैशन के दौर में मजबूती की बात न करें यानि लालच के दौर में ईमानदारी की बात न करें। यह सुनकर दोनों हँस पड़े तभी दोनों एक साथ बोले कि क्या जो हम दोनों दवायें खा रहे हैं क्या इनमें भी असली - नकली, सटर- गटर होता होगा... यानि कि यह जिंदगी हर पल खिलवाड़ की शिकार है.... बस राम भरोसे सब जिंदा हैं। तो बाबा जी कि पत्नी ने कहा कि समय में कोई मिलावट नहीं है रात होने को है आओ कुछ खा लिया जाये... फिर दवा खाकर आराम किया जाये। बाबा जी ने कहा, हाँ समय में मिलावट नहीं, रात हुई है तो दिन भी होगा, एक दिन इंसान की इंसानियत भी जागेगी।
फल वाले की मक्कारी
Reviewed by Akanksha Saxena
on
October 02, 2024
Rating: 5
No comments