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बहस- बच्चियों का आसरा गृह या यातना गृह -

बहस- 

बच्चियों का आसरा गृह या यातना गृह -




मुज़फ़्फ़रपुर बालिका गृह के चर्चा में आने के बाद बिहार के शेल्टर होम से लेकर यूपी के देवरिया तक जहन्नुम जैसे लग रहे हैं। हर जगह से भीषण यातनाएं दिए जाने वाले व अपहरण के मामले सामने आ रहे हैं जोकि बेहद गम्भीर स्थति है। 




इंग्लैंड में हुए एक अध्ययन के अनुसार यौन उत्पीड़न के शिकार हुए आठ में से केवल एक बच्चे की जानकारी अधिकारियों को मिल पाती है। पुलिस और स्थानीय अधिकारियों ने अप्रैल 2012 से अप्रैल 2014 के बीच दो साल में 50 हज़ार उत्पीड़न के मामले दर्ज़ किए हैं। लेकिन बाल आयुक्त की रिपोर्ट के मुताबिक़ सही आंकड़ा चार लाख पचास हज़ार तक है, जिसमें 85 फ़ीसदी मामले रिपोर्ट ही नहीं हुए हैं।इसमें ख़ासकर परिवार के अंदर के मामले शामिल हैं।



 दुनियाभर में यौन शोषण से पीड़ित बच्चों की सबसे बड़ी संख्या भारत में है लेकिन फिर भी यहां इस बारे में बात करने में सब की घिघ्घी बंध जाती है और कभी समाज का डर दिखाकर घिघ्घी बांध दी जाती है। मुजफ्फरपुर की हृदयविदारक घटना के भ्रमित और भ्रष्ट तार अब समाज कल्याण विभाग और स्थानीय नेताओं से लेकर ब्यूरोक्रेसी तक जुड़ गए हैं। जिसमें मनीषा दयाल जैसा बडा नाम शामिल है। नव अस्तित्व फ़ाउंडेशन में प्रोजेक्ट डायरेक्टर के पद पर काम कर रही मनीषा दयाल  जिनकी तस्वीरें पटना आसरा गृह कांड के सामने आने के बाद वायरल हुई हैं।



 लड़कियों की मौत के आरोप लगने बाद जैसे ही पुलिस ने मनीषा दयाल को गिरफ्तार किया, पटना के राजनीतिक गलियारों में उनकी चर्चा शुरू हो गई जिसमें मनीषा दयाल के राजनीतिक ग्राफ के बढ़ते स्तर पर पुलिस की निगाह गयी तो पूर्व मंत्री और राजद नेता अब्दुल बारी सिद्दिक़ी से उनके पारिवारिक रिश्ते सामने आयें पर पूछने पर उन्होंने मनीषा के साथ किसी भी तरह के करीबी संबंध से साफ इनकार किया है। मीडिया के ये पूछे जाने पर कि मनीषा दयाल उनकी रिश्तेदार हैं, सिद्दिक़ी ने कहा कि ''विवाह के बाद से ही उनकी ससुराल पक्ष से निकटता नहीं है आसरा होम की घटना शर्मनाक है और उसकी संचालिका पर कड़ी से कड़ी कार्रवाई होनी चाहिए।''



 पटना पुलिस के एसएसपी मनु महाराज के अनुसार पुलिस की जांच में मनीषा दयाल का संबंध मुजफ्फरपुर बालिका गृह कांड के मुख्य अभियुक्त ब्रजेश ठाकुर से भी जोड़ कर देखा जा रहा है क्योंकि समाज कल्याण विभाग में ब्रजेश‌ ठाकुर की गहरी पैठ थी। पूर्व समाज कल्याण मंत्री मंजू वर्मा को अपने पति चंद्रशेखर वर्मा के साथ ब्रजेश‌ ठाकुर के संबंध के सामने आने पर इस्तीफ़ा देना पड़ा था।पता हो कि आज फर्जी एनजीओ के नाम पर जबरदस्त काली कमाई की जा रही है। जिसमें बिहार सरकार एनजीओ की मदद से 110 शेल्टर होम या संरक्षण गृह चलाती है।



 देवरिया उ.प्र में भी एक आश्रय गृह का मामला सामने आया है। वहां से भी 24 लड़कियों को छुड़ाया गया और तीन लोगों की गिरफ्तारी हुई है। गौरतलब हो कि दुनिया की कुल बाल आबादी में 19 फीसदी बच्चे भारत में है।  देश की एक तिहाई आबादी में, 18 साल से कम उम्र के करीब 44 करोड़ बच्चे हैं।सरकार के ही एक आकलन के मुताबिक 17 करोड़ यानी करीब 40 प्रतिशत बच्चे अनाश्रित हैं जो किसी तरह गुजर बसर कर रहे हैं।  सामाजिक-आर्थिक और भौगोलिक तौर पर वंचित और उत्पीड़ित बच्चों के अधिकारों की बहाली और उनके जीवन, शिक्षा, खानपान और रहन-सहन पर विशेष ध्यान देने की जरूरत है और विशेष अभियान चलाने की जरूरत है।



 महिला और बाल कल्याण के लिए 1966 में बना राष्ट्रीय जन सहयोग और बाल विकास संस्थान, एनआईपीसीसीडी बच्चों और महिलाओं के समग्र विकास के लिए काम करता है।बच्चों पर केंद्रित राष्ट्रीय बाल नीति, 2013 में अस्तित्व में आ पायी। बच्चों पर यौन अपराधों को रोकने के लिए पाक्सो एक्ट 2012 में लाया गया। 2014 में जुवेनाइल जस्टिस (केयर ऐंड प्रोटेक्शन ऑफ चिल्ड्रन) बिल लाया गया।


 जहां तक बाल कल्याण नीतियों की बात है तो समन्वित बाल सुरक्षा योजना, आईसीपीएस चलाई जा रही है। जिसका आखिरी आंकड़ा 2014 तक का है जिसके मुताबिक 317 स्पेशलाइज्ड एडॉप्शन एजेंसियां (एसएए) और अलग अलग तरह के 1501 होम्स के लिए 329 करोड़ रुपए आवंटित किए गए और 91,769 बच्चों को इनका लाभ प्राप्त हुआ। आईसीपीएस के तहत ही देश के ढाई सौ से ज्यादा जिलों में चाइल्डलाइन सेवाएं चलाई जा रही हैं। बच्चों के उत्पीड़न और उनकी समस्याओं का समाधान का दावा इस सेवा के माध्यम से किया जा रहा है लेकिन लगता नहीं कि मुजफ्फरपुर या देवरिया में बच्चियों की चीखें इन चाइल्डलाइन्स तक पहुंच पाईं और किसी की नींद टूटी हो।
देवरिया शेल्टर होम 

 “हमें बचा लो…ये लोग हमसे गंदे काम कराते हैं, हमें जानवरों की तरह रखते हैं. कोई मदद करो हमारी, हमें यहां जबरन अपनों से बड़े गैर मर्दों से सम्बन्ध बनाना होता है।''
ये शब्द हैं एक शेल्टर हाउस में रह रहीं उन कुछ बच्चियों के जो बच्चियां जो या तो अनाथ हैं या हालात से मजबूर।
सबसे शर्मनाक यह है कि इस शेल्टर होम की संचालिया खुद एक महिला है जिसका नाम गिरिजा त्रिपाठी है। 



इन घटनाओं को सुनकर एेसा लगता है कि प्रधानमंत्री जी का बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ का नारा तो लगता है एक असहनीय मजाक बन कर रह गया है। जिसका बड़े स्तर पर असर नहीं दिखता। 2007 में विधायी संस्था के रूप में गठित, नेशनल कमीशन फॉर प्रोटेक्शन ऑफ चाइल्ड राइट्स (एनसीपीसीआर) के एक आंकड़े के मुताबिक भारत में इस समय 1300 गैरपंजीकृत चाइल्ड केयर संस्थान (सीसीआई) हैं। इस डाटा के मुताबिक सभी सीसीआई में करीब दो लाख तैंतीस हजार बच्चे रखे गए हैं। पिछले साल सुप्रीम कोर्ट ने देश में चलाए जा रहे समस्त चाइल्ड केयर संस्थान को रजिस्टर करा लेने का आदेश दिया था। लेकिन सवाल पंजीकरण का ही नहीं है। पंजीकृत तो कोई एनजीओ करा ही लेगा क्योंकि उसे फंड या ग्रांट भी लेना है, लेकिन कोई पंजीकृत संस्था कैसा काम कर रही है इसपर निरंतर निगरानी और नियंत्रण की व्यवस्था रखनी ही होगी। डिजीटलाइजेशन पर जोर के बावजूद सरकार अपने संस्थानों और अपने संरक्षण में चल रहे संस्थानों की कार्यप्रणाली और कार्यक्षमता की निगरानी का कोई उन्नत कार्यप्रणाली विकसित नहीं कर पा रही है।
देवरिया शेल्टर होम 

 कभी-कभी यह भी खबरें प्रमुखता से सामने आती हैं कि किसी पिछड़े गांव की दलित महिलाओं और बेटियों के साथ अमर्यादित कार्य हुआ। इस खबर के निष्पक्षता से जांच करने पर इसे सही माना गया। नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो के आंकड़ों के मुताबिक भारत में मजदूर गरीब दलित महिलाओं की संख्या 10 करोड़ से भी अधिक है। साथ ही प्रतिदिन करीब चार दलित महिलाएं बलात्कार का शिकार होती हैं। सेक्स एक्सपर्ट्स कानूनी सुरक्षा पर अपने शोध के आधार पर कहते हैं कि कुछ अपराधी यौन अपराध पीड़ितों को डराने के लिए भी ऐसे जघन्य अपराध करते हैं और किसी दकियानूसी परम्परा के तोड़ने या बदलने की सजा के तौर पर वह महिलाओं और बच्चियों को ही अपना निशाना बनाते हैं।अफसोस! कि आज नेता दलित से वोट तो चाहते हैं पर उन्हें सम्मान सुरक्षा मर्यादित रोजगार और उनका हक देने में अपनी बगले झांकने लगते हैं।



आज की ताजा परिस्थितियों को देखकर यही लग रहा है कि यह बेहद दर्दनाक, हैरानी व हैवानियत से भरी बात है कि महिला एवं बाल कल्याण मंत्रालय की 2017 की रिपोर्ट बताती है कि देश में 53.22 फीसदी बच्चों को यौन शोषण में 52.94 फीसदी लड़के भी इन यौन उत्पीड़न की घटनाओं का शिकार हुए। आज सामान्य कानूनों को सख्त और निष्पक्ष रूप से क्रियान्वयन पर गम्भीरता और तेजी बरती जा रही है, इसकी शुरुआत पॉस्को कानून से हुई और अब धारा 377, पुरुषों के दुष्कर्म कानून को भी गम्भीरता से देखा और सुना जा रहा।



 जब हम लोग लिंग समानता की बात करते हैं तो पुरूष यौन शोषण के प्रति भी अपना व्यंगात्मक रवैया बदल कर गम्भीरता से न सिर्फ सोचना होगा बल्कि एक बड़ी बहस छेड़ी जा सकती है तो बच्चों के बचपन की सुरक्षा के पक्ष में हो न कि लड़की या लड़का। क्योंकि बच्चा पहले मासूम बच्चा है बाद में वह स्त्री या पुरुष। आज यौन उत्पीड़न के मामले इसलिये भी पांव पसार रहे हैं कि आज एकल परिवार हैं और कामकाजी माता-पिता जिनके पास अपने बच्चों के लिए समय ही नही।

 इस हालत में बच्चों का साथी है उनके वीडियोगेम और मोबाइल तथा वो गिद्ध जो बच्चे की पसंद जानकर उनका पसंदीदा गिफ्ट देकर व उसके माता-पिता की बुराई करके उसे अपनी बातों में फंसाकर हरवक्त मौके की तलाश में रहते हैं। आपको अपने बच्चों को अच्छा स्पर्श बुरे स्पर्श को समझाना होगा और बच्चों के सवालों से आप उसके अंदर हिम्मत भर सकते हैं और डर मिटा सकते हैं। उन्हें यह भी समझाना होगा कि हाँ समाज को भी समाज के कोढ़ उन हैवानों से निपटने के लिए स्वंय तैयार होना होगा और स्वंय उसे उसी समय करारा जवाब देना होगा। उन्हें यह भी समझाना होगा कि आप हिम्मत और निडरता में अपनी पुलिस स्वंय बनो पर कानून हाथ में न लो क्योंकि यही समय की मांग है।

-ब्लॉगर आकांक्षा सक्सेना

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 🙏धन्यवाद 🙏

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