वोट छापने की मशीन ले लो साहिब! - ब्लॉगर आकांक्षा सक्सेना
साहिब! हम गरीब के लिए भी सुप्रीमकोटवा
रविवार के दिन खुल सकत है का.. ?
या हम गरीब, पीड़ित, मजूर की
सिरफ वोट के लिए जरूरत है?
उह वोट छापन वाली मशीन भी बनाये लो.. मालिक
हम वोटरों की आपको
इहु जरूरत भी खतम हो जाये.....
वोट छापने की मशीन ले लो साहिब!
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हे! सत्ताशीनों, आपकी योजनाओं का लाभ, क्या वास्तविक पात्रों (जरूरतमंदों) को मिल पा रहा है या बिचौलिये आज भी खा-पचा रहे हैं।कम से कम पलट कर देख तो लिया कीजिए।
साहिब! आप एक सर्वेक्षण करवाइये और वास्तविक गरीब को उनका सपनों का घर वो कॉलोनियां दिला दीजिए प्लीज, शर्दी आ रहीं हैं कैसे रहेगें वो लोग......!
वरना जिस दिन गरीब अन्यायपीड़ितों की आत्मा फूट पड़ी ना साहब तो फिर ना 'लोक' होगा ना 'तंत्र', आपके 'यंत्र' 'मंत्र' सबकुछ भागा फिरेगा...फिर.ना देश में नेता होगा और ना होगी राजनीति। केवल सुप्रीम कोर्ट ही होगा.. जहां न्याय की एक अदद उम्मीद तो है गरीब को।
साहिब गरीब के लिए न्याय बहुत मंहगा है। न्याय के लिए उसके पास धन नहीं है.. ग़र वो बीमार है, ऐम्स में भर्ती होना भी चाहें तो MLA. MP नेताओं की सिफारिश चाहिए। उसकी कोई जमीन हड़प ले तो राजस्व /दीवानी के मुकदमें बीसयों साल क्या पीड़ी दर पीढ़ी खत्म ही नहीं होते। तब तक वह गरीब कहां जायें साहिब? वो थाने जाता तो रिपोर्ट नहीं लिखी जाती। थानेदार कहते ज्यादा रिपोर्ट लिख गयीं तो ऊपर से डांट पड़ेगी तेरे क्षेत्र में इतना क्राईम है? डर से थानेदार रिपोर्ट तक नहीं लिखते। अब वो नेता के घर जाये तो वहां बाहर से ही उसे भगा दिया जाता है।
साहिब! मतदाता की यह वैल्य है आप लोगों की नज़र में..वह मतदाता जो बीमारी में खटिया पर लैट कर भरी दोपहर में अपनी दवा भूल कर आपको वोट करने जाता है कि मेरी मढ़ैया से मुक्ति होगी मुझे भी छत मिल जायेगी, समस्याओं का अंत हो सकेगा...पर जब उसके साथ अन्याय हो तो बता दो वो कहां जाये? ये उन सभी पीड़ित वोटरों की आह है जिनके वोटों से बड़ी-बड़ी सरकारों बनतीं और गिरतीं हैं, करोड़ों - करोड़ों रूपये ले - दे के विधायक इधर से उधर हो जाते हैं...
ये करोड़ों रूपये हैं किसके..हम सब पीड़ित आम जनता के टैक्स के...? साहिब! आपकी सैलरी और पैंसन तो जहाज की रफ्तार से बढ़ गयी पर गरीब बुजुर्गों की पैंसन आज भी बैलगाड़ी पर हिचखोले खा रही है।
साहिब! गरीब के खाते चैक करोगे ना.. तो रो पड़ोगे? मात्र 14 रूपये.देखकर बैंक वाले भी उसे भगा देते, जाओ चौदह रूपये ही हैं.. फार्म पांच सौ का भर दिया... हाँ पांच सौ, गरीब के बच्चे की दवा आ जाती है पांच सौ में.. पांच सौ बहुत हैं....
साहिब! आप कहेगें कि जनता बहुत बकवास करती है। नाजायज़ मांग करती है। बहुत तर्क-वितर्क और कुतर्क करती है.. आपसे कभी पांच दस हजार की बहुत बड़ी नौकरी मांगती तो कहीं एक कमरे की आलीशान सरकारी कॉलोनी.. कभी साफ पानी तो कहीं फसल का उचित मूल्य...कभी बेटियों की सुरक्षा मांगती है।
साहिब! अब आप एक काम करें। वोट छापने की भी मशीन इजात कर लें करवा लें.. आपकी हम जनता से यह भी हैडक खत्म.....
-ब्लॉगर आकांक्षा सक्सेना
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