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श्रीराम भक्तों का अनोखा सम्प्रदाय - ब्लॉगर आकांक्षा सक्सेना








गोस्वामी तुलसीदास जी लिखते हैं कि 
हरि अनंत हरि कथा अनंता। कहहिं सुनहिं बहुबिधि सब संता॥रामचंद्र के चरित सुहाए। कलप कोटि लगि जाहिं न गाए। यानि हरि अनंत हैं (उनका कोई पार नहीं पा सकता) और उनकी कथा भी अनंत है। सब संत लोग उसे बहुत प्रकार से कहते-सुनते हैं। रामचंद्र के सुंदर चरित्र करोड़ों कल्पों में भी गाए नहीं जा सकते।
     बस ऐसे ही भगवान श्री राम के अनोखे अद्भुत भक्तों की भक्ति की जिद्द कि प्रभु मेरे रोम रोम में हैं।मुझे मेरे राम से कोई अलग न कर सके। मैं जहां भी देखूं मुझे भगवान श्री राम ही नज़र आये। ऐसी प्रेम में डूबी अनंत भक्ति में समाये भारत का एक सम्प्रदाय 
अपने पूरे शरीर पर राम नाम का गुदना यानि आज की भाषा में टेटू गुदवा कर पूरी दुनिया में विशिष्ट पहचान बनाने वाला छत्तीसगढ़ का रामनामी संप्रदाय पिछले 20 पीढिय़ों से इस अनोखी परंपरा के साथ आज भी चल रहा है। यह अनोखा सम्प्रदाय महानदी छत्तीसगढ़ की एक पवित्र और पुण्यदायिनी नदी है। इसे चित्रोत्पला गंगा भी कहा जाता है और इसका उल्लेख रामायण और महाभारत कालीन ग्रंथों में मिलता है। गंगा के समान पवित्र इस नदी के तट पर अनेक नगर और मंदिर स्थित हैं। महानदी की पवित्रता के कारण ये नगर सांस्कृतिक तीर्थ कहा जाता है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार हमारे ऋषि- मुनी इन नगरों में अपना आश्रम बनाकर कठोर तप किया करते थे।इस
सम्प्रदाय की रीति के अनुसार अपने आराध्य भगवान श्री रामनाम को समर्पित महिला और पुरुष अपने पूरे शरीर में राम नाम गुदवाकर कराकर निर्गुण राम को भजने वाले रामनामी इसी महानदी के तटवर्ती ग्रामों में बसते हैं। जिन्हें यहां कि लोक संस्कृति में यह लोग रमरमिहा, रामनमिहा या रामनामी कहा जाता है। छत्तीसगढ़ के पांच सीमावर्ती जिलों रायपुर, बिलासपुर, जांजगीर- चांपा, महासमुंद और रायगढ़ के सारंगढ़, घरघोड़ा, मालखरौदा, चंद्रपुर, पामगढ़, कसडोल, बलौदाबाजार और बिलाईगढ़ क्षेत्र के लगभग 300 गांवों में निवास करते हैं।
     यह रामनामी पंथ, संत रैदास को अपने पंथ का मूल पुरूष मानते हैं। यह रामनाम में सदा मस्त रहने वाले ये लोग अहिंसक और शाकाहारी होते हैं।किसी भी तरह के नशे से यह लोग बहुत दूर रहते हैं।महानदी की सहायक नदी जोंक के तट पर गुरू घासीदास का धाम गिरौदपुरी स्थित है। यहीं सतनाम पंथ का जन्म हुआ । इसी प्रकार सरसींवा के पास महानदी का तटवर्ती ग्राम उड़काकन रामनामी पंथ का एक पवित्र तीर्थधाम है। रामनामी और सतनामियों के लिये शिवरीनारायण का वही महत्व है जो दूसरों के लिये प्रयाग और काशी का है। माघी पूर्णिमा में लगने वाले मेले के समय इस पंथ के लोग भी शिवरीनारायण में अपना तम्बू लगाकर केवल अपने आराध्य भगवान श्री राम जी का भजन करते हैं। इस मेले में यह लोग अपने पूरे शरीर में रामनाम का अंकन किए हुए रामनामियों का रेला यानि भीड़ देखना लोगों के लिये आकर्षण का केन्द्र होता है। यह लोग पूरे शरीर में रामनाम का गोदना, सिर पर मोर मुकुट लगाये हाथ में मजीरा बजाते हुए  रात- दिन भगवान श्री रामनाम का भजन करते रहते हैं । राम के इन निर्गुण भक्तों के शरीर का ऐसा कोई भाग नहीं बचा होता जहां रामनाम गुदा यानि अंकित न हो। यहां तक कि उनके कपड़ों पर भी रामनाम का अंकन होता है। आप उनके घरों की दीवारों पर भी राम- राम लिखा हुआ पाएंगे। मेला स्थल पर जिस तम्बू के नीचे वे रहते हैं, उसमें भी रामनाम ही अंकित होता है। अभिवादन के लिए राम- राम का संबोधन तो छत्तीसगढ़ में पूरी तरह प्रचलित है। छत्तीसगढ़ में रामनामी पंथ की उत्पत्ति के सम्बंध में मध्यप्रदेश आदिवासी शोध पत्रिका में लिखा है कि ये लोग हरियाणा के नारनौल से यहां आये थे। उस काल में तत्कालीन शासकों के दमनात्मक रवैये से त्रस्त होकर ये लोग छत्तीसगढ़ के शांत माहौल में आ बसे थे। आज उनकी 20 वीं पीढ़ी के वंशज अपनी परंपराओं और विशिष्ट सांस्कृतिक धरोहरों के कारण अलग से पहचाने जाते हैं। पारस्परिक सद्भाव और अद्भुत संगठन क्षमता वाले इस कौम को तोडऩे के लिये तत्कालीन शासकों ने एक चाल चली जिसमें वे सफल भी हो गये। पूर्व में रामनामी पंथ के लोग भी सगुण के उपासक थे। उनमें आपसी सद्भाव और भाईचारा था। उनमें अच्छा संगठन था। उनकी इस संगठन शक्ति को क्षीण करने और आपस में फूट डालने के लिये एक नवजात शिशु के माथे पर रामनाम गुदवा दिया और प्रचारित कर दिया कि यह शिशु राम की इच्छा से इस भूलोक में आया है। अत: राम की इच्छा के अनुरूप रामनाम का अनुसरण करें। इस प्रकार एक शक्तिशाली संगठन दो हिस्सों में बंट गया। आगे चलकर इन दोनों समुदाय के दो भाग और हुये। अलग रहने के बावजूद इनमें सांस्कृतिक साम्यता पायी जाती है।भगवान श्रीराम को भारत में हर घर में पूजा जाता है। शायद ही कोई ऐसा होगा जो श्रीराम के सगुण रूप को नकारता हो? लेकिन महानदी घाटी के ग्राम्यांचलों में बसे ये रमरमिहा श्रीराम के सगुण रूप को नकार कर उसके निर्गुण रूप के उपासक हैं। भारत में शायद ही कोई दूसरा पंथ होगा जो भगवान रामनाम में इतना रम जाए कि अपने पूरे शरीर में रामनाम ही गुदवा डाले।
      जांजगीर- चांपा जिले के मालखरौदा विकासखंड के अंतर्गत ग्राम चारपारा के श्री परसराम भारद्वाज को रामनामी पंथ का प्रवर्तक माना जाता है। सन् 1904 में उन्होंने निराकार ब्रह्म के प्रतीक राम को मानकर एक जन आंदोलन की शुरूवात की थी। उन्होंने सबसे पहले अपने माथे पर रामनाम अंकित कराया था। इसके पूर्व  जातिगत विवाद के कारण वे रामायण का पाठ और रामनाम का उच्चारण नहीं कर पाये। उनका मंदिरों में प्रवेश निषिद्ध करा दिया गया । इसी बीच विदेशी ताकतों ने इस क्षेत्र को अपने कार्यक्षेत्र में ले लिया और उन्हें इसाई धर्म मानने के लिये विवश किया। इसके लिये उन्हें हर प्रकार की मदद दी जाने लगी। इसी समय श्री परसराम भारद्वाज ने रामनामी पंथ के अंतर्गत निराकार ब्रह्म के प्रतीक राम की पूजा अर्चना करने की बात कही, जिसे सबने सहर्ष स्वीकार किया और तब से सब निराकार श्रीराम को जोकि श्री राम स् बड़ा उनका नाम है और वह इसी राम नाम जप. रोम रोम में राम नाम गुदवा कर अपने घर में पूजने लगे। भविष्य में कोई उन्हें परेशान न करे इसलिए उन्होंने सत्र न्यायाधीश से गुजारिश की तब उन्होंने अपने फैसले में लिखा कि - ये लोग जिस राम के नाम को भजते हैं वे भगवान श्री राम के निराकार रूप परब्रह्म राम नाम को मानने वाला सम्प्रदाय हैं।
     रामनामी पंथ के दो प्रमुख आयोजन होते हैं- एक रामनवमी के दिन संत समागम और दूसरा, पौष एकादशी से त्रयोदशी तक चलने वाला तीन दिवसीय पंथ मेला। इस मेले में सामाजिक वाद- विवाद तथा पारिवारिक झगड़े जैसी समस्याओं का फैसला होता है। इसके अलावा महासभा का आयोजन और सामूहिक विवाह भी होते हैं। अगला मेला किस स्थान में लगेगा, इसका निर्णय भी यहीं पर हो जाता है। रामनामी मेला महानदी के तटवर्ती ग्रामों में एक वर्ष महानदी के उत्तर में तो दूसरे वर्ष महानदी के दक्षिण में लगता है।
      रामनामी मेला का आयोजन महानदी के तटवर्ती ग्रामों में लगने के बारे में एक लोककथा प्रचलित है- आज से 85- 85 वर्ष पहले की बात है सवारी से भरी एक नाव महानदी को पार करते समय मझधार में फंस गयी। नाविकों ने नाव को किनारे लगाने की बहुत कोशिश की मगर सफलता नहीं मिलीं उस समय ईश्वर ही कोई चमत्कार कर सकता था। नाव में सवार सभी यात्री प्रार्थना करने लगे लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ। संयोग से उस नाव में रामनामी पंथ के प्रवर्तक श्री परसराम भारद्वाज और उनके अनुयायी भी सवार थे। सबने उनसे भी प्रार्थना करने का अनुरोध किया। तब उन्होंने भी कहा- यदि मझधार में फंसी नाव सकुशल किनारे लग जायेगी तो रामनामी समाज प्रति वर्ष महानदी के दोनों किनारों पर रामनाम के भजन- कीर्तन का आयोजन करेगी। आश्चर्य का ठिकाना नहीं रहा, उनके इतना कहते ही नाव सकुशल किनारे लग गयी। तब से प्रतिवर्ष महानदी के तटवर्ती ग्रामों में रामनाम के भजन- कीर्तन का आयोजन होने लगा जिसने आगे चलकर रामनामी सम्मेलन और मेले का रूप ले लिया। कहते हैं न कि भगवान श्री राम इतने दयालु हैं  कि चाहे निर्गुण पूजो या सगुण रूप, वो दया करते ही हैं। यह तीन दिवसीय इस मेले के पहले दिन मेला स्थल में निर्मित जय स्तम्भ के उपर कलश चढ़ाया जाता है। दूसरे दिन रामायण पाठ और भजन- कीर्तन का आयोजन होता है। मेले के अंतिम दिन सामूहिक विवाह और सामूहिक भोजन- भंडारा का आयोजन होता है। मेला स्थल के आस- पास जुआ, मांस- मदिरा जैसी कुप्रथा पूर्णत: प्रतिबंधित होती है। रामलीला का कार्यक्रम इस मेले का प्रमुख आकर्षण होता है। मेला स्थल के मध्य में 13 फीट ऊंचे जय स्तम्भ का निर्माण किया जाता है जिसके चबूतरे में भी रामनाम अंकित होता है। इस चबूतरे पर रामचरित मानस की प्रति रख दी जाती है, जहां रामनाम कीर्तन होता है जिसमें वाद्य यंत्रों के स्थान पर घुंघरू मंडित लकड़ी के चौके से ध्वनि और ताल दी जाती है। मयूर पंख से सुसज्जित तंबूरे से वातावरण राममय हो जाता है। विवाह के समय वर- वधू को जय स्तम्भ और रामायण को साक्षी मानकर सात फेरे लगवाए जाते हैं। फेरे के पूर्व महासभा के समक्ष वर और वधू पक्ष को विधिवत घोषणा पत्र भरना पड़ता है और संस्था का निर्धारित शुल्क देना पड़ता है। यहां दहेज मांगना और तलाक लेना पूर्णत: वर्जित है। हालांकि विधवा महिला के माथे पर रामनाम देखकर कोई व्यक्ति उनसे पुनर्विवाह कर सकता है। यह रामनामी सम्प्रदाय की अच्छाईयों से सर्व समाज को सीख लेनी चाहिए कि भगवान श्री राम की पूजा भजन के साथ ही साथ उनके आचरण को भी आत्मसात करना चाहिए। यही होगी असली रामभक्ति। भगवान श्रीराम जी के पास कपट नहीं ठहरता अत: वह सभी को प्यार करने वाले शरणागतवत्सल हैं। हमें उनके चरित्र से उनके चरित्र को फोलो करने की प्रेरणा लेनी चाहिए। परमात्मा रूप कुरूप देश भाषा नहीं वह तो सिर्फ़ भावना देखते हैं, विश्व कल्याण की भावना से भरा दिल देखते हैं। 

( इंडियन पंच और हम हिन्दुस्तानी,U. S. A न्यूजपेपर टीम का आभार) 

-ब्लॉगर आकांक्षा सक्सेना

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