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महानग्रंथ श्री गीता जयंती

सत्य सनातन महाग्रंथ #श्रीमद्भगवतगीता जयंती -

[दुनिया के हर सवाल का जवाब है ''गीता'' जन्म से मृत्यु उसके बाद आत्मा तक के विषय में सबकुछ स्पष्ट किया गया है।इस महानग्रंथ में भगवान सम्पूर्ण मानवजाति को उपदेश करते हैं कि ''मैं'' यानि भगवान श्री कृष्ण, सबकुछ बर्दाश्त कर सकते पर अंहकार नहीं]

श्रीकृष्ण भगवान उवाच



अजो अपि सन्नव्यायात्मा भूतानामिश्वरोमपि सन । प्रकृतिं स्वामधिष्ठाय संभवाम्यात्ममायया ॥

अर्थ – भगवान श्री कृष्ण जी कहते हैं कि हे पार्थ, मैं एक अजन्मा तथा कभी नष्ट ना होने वाली आत्मा हूँ। इस समस्त प्रकृति को मैं ही संचालित करता हूँ। और इस समस्त सृष्टि का स्वामी मैं ही हूँ। और मैं योग माया से इस धरती पर प्रकट होता हूँ।तथा कोई भी मनुष्य मेरे बनाएं नियमों को तोड़ नही सकता हैं।

मत्तः परतरं नान्यत्किञ्चिदस्ति धनञ्जय।

मयि सर्वमिदं प्रोक्तं सूत्रे मणिगणा इव॥

हे धनंजय! मेरे सिवाय इस जगत का कोई दूसरा कारण नहीं हो सकता। मैं ही इस सम्पूर्ण संसार का महकारण हूँ। जैसे मोती सूत के धागे की माला में पिरोए हुए होते हैं, वैसे ही यह सम्पूर्ण जगत मुझमें ही ओत-प्रोत है। यह संसार मुझसे ही उत्पन्न होता है, मुझमें ही स्थित रहता है और मुझमें ही लीन हो जाता है। कहने का तात्पर्य यह है कि– भगवान श्री कृष्ण जी ने स्पष्ट कहा कि मेरे  सिवाय संसार की स्वतंत्र सत्ता नहीं है।


रसोऽहमप्सु कौन्तेय प्रभास्मि शशिसूर्ययोः।

प्रणवः सर्ववेदेषु शब्दः खे पौरुषं नृषु॥

अब, भगवान प्रकृति के कण-कण में अपनी सत्ता बताते हुए कहते हैं—

हे कुन्तीपुत्र! मैं ही जल का स्वाद हूँ, सूर्य तथा चन्द्रमा का प्रकाश हूँ, समस्त वैदिक मन्त्रो में ओंकार हूँ, (इसीलिए प्रत्येक मंत्र का आरंभ ॐ से किया जाता है) आकाश में ध्वनि हूँ और मनुष्यों द्वारा किया जाने वाला पुरुषार्थ भी मैं ही हूँ।

पुण्यो गन्धः पृथिव्यां च तेजश्चास्मि विभावसौ।

जीवनं सर्वभूतेषु तपश्चास्मि तपस्विषु॥

मैं पृथ्वी में पवित्र गंध हूँ, (पृथ्वी गंध तन्मात्रा से उत्पन्न होती है) अग्नि में उष्मा हूँ, समस्त प्राणियों में वायु रूप में प्राण हूँ और तपस्वियों में तपस्या भी मैं ही हूँ।

बीजं मां सर्वभूतानां विद्धि पार्थ सनातनम्‌।

बुद्धिर्बुद्धिमतामस्मि तेजस्तेजस्विनामहम्‌॥

भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं-- हे पृथापुत्र पार्थ! तुम मुझको ही सभी प्राणियों का सनातन कारण और अनादि-अनन्त बीज समझो। मैं ही बुद्धिमानों की बुद्धि और तेजस्वी मनुष्यों का तेज हूँ। देवकीनन्दन वासुदेव ही सम्पूर्ण विश्व के कारण हैं।


पत्रं पुष्पं फलं तोयं यो मे भक्त्या प्रयच्छति।
तदहं भक्त्युपहृतमश्नामि प्रयतात्मन:॥
(नवम अध्याय, श्लोक 26)

हिंदी अनुवाद: जो कोई भक्त मेरे लिये प्रेम से पत्र (पत्ती), पुष्प, फल, जल आदि अर्पण करता है, उस शुद्ध बुद्धि निष्काम प्रेमी भक्त का प्रेमपूर्वक अर्पण किया हुआ वह पत्र-पुष्पादि मैं सगुण रूप से प्रकट होकर प्रीति सहित खाता हूँ।

If one offers to Me with devotion a leaf, a flower, a fruit, or even water, I delightfully partake of that article offered with love by My devotee in pure consciousness.

कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।
मा कर्मफलहेतुर्भूर्मा ते सङ्गोऽस्त्वकर्मणि॥
(द्वितीय अध्याय, श्लोक 47)

हिंदी अनुवाद: कर्म पर ही तुम्हारा अधिकार है, लेकिन कर्म के फलों में कभी नहीं… इसलिए कर्म को फल के लिए मत करो और न ही काम करने में तुम्हारी आसक्ति हो।

You have a right to perform your prescribed duties, but you are not entitled to the fruits of your actions. Never consider yourself to be the cause of the results of your activities, nor be attached to inaction.


यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत:।
अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम्॥
(चतुर्थ अध्याय, श्लोक 7)

हिंदी अनुवाद: हे भारत, जब-जब धर्म का लोप होता है और अधर्म में वृद्धि होती है, तब-तब मैं धर्म के अभ्युत्थान के लिए स्वयम् की रचना करता हूं अर्थात अवतार लेता हूं।

Whenever there is a decline in righteousness and an increase in unrighteousness, O Arjun, at that time I manifest myself on earth.

नैनं छिद्रन्ति शस्त्राणि नैनं दहति पावक: ।
न चैनं क्लेदयन्त्यापो न शोषयति मारुत ॥
(द्वितीय अध्याय, श्लोक 23)

हिंदी अनुवाद: आत्मा को न शस्त्र काट सकते हैं, न आग उसे जला सकती है। न पानी उसे भिगो सकता है, न हवा उसे सुखा सकती है।

Weapons cannot shred the soul, nor can fire burn it. Water cannot wet it, nor can the wind dry it.

परित्राणाय साधूनाम् विनाशाय च दुष्कृताम्।
धर्मसंस्थापनार्थाय सम्भवामि युगे-युगे॥
(चतुर्थ अध्याय, श्लोक 8)

हिंदी अनुवाद: सज्जन पुरुषों के कल्याण के लिए और दुष्कर्मियों के विनाश के लिए… और धर्म की स्थापना के लिए मैं युगों-युगों से प्रत्येक युग में जन्म लेता आया हूं।


To protect the righteous, to annihilate the wicked, and to reestablish the principles of dharma I appear on this earth, age after age.

सर्वधर्मान्परित्यज्य मामेकं शरणं व्रज।
अहं त्वां सर्वपापेभ्यो मोक्षयिष्यामि मा शुच:॥
(अष्टादश अध्याय, श्लोक 66)

हिंदी अनुवाद: सभी धर्मो को छोड़कर मेरी शरण में आ जाओ. में तुम्हे सभी पापो से मुक्त कर दूंगा, इसमें कोई संदेह नहीं हैं।

Abandon all varieties of dharmas and simply surrender unto me alone. I shall liberate you from all sinful reactions; do not fear.

आप सभी शुभचिंतकों को आदिसनातनज्ञानग्रंथ 'गीता जयंती' महोत्सव की हार्दिक बधाई और अनंत शुभकामनाएं 🙏💐जय श्री कृष्णा🙏💐

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