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नंदी की पूँछ में कौन लटक रहा और क्यों?

         नंदी महाराज की पूंछ में लटके मनुष्य की दंतकथा 

 


बैजनाथ मंदिर, हिमाचल प्रदेश में खड़े नंदी


साथियों! आपने भगवान सदा शिव के मंदिर के बाहर अक्सर बैठे हुए नंदी महाराज की मूर्ति देखी होगीं। परन्तु कुछ मंदिरों में नंदी महाराज खड़े हुए हैं। जिनके खड़े रहने के लोगों ने कई कारण दिये। आपके पास भी कोई कारण या कोई दंतकथा य पौराणिक कथा हो तो जरूर साझा करें। 

साथियों! यह उपरोक्त फोटो बैजनाथ मंदिर में खड़े हुए नंदी महाराज की है। 
   

साथियों! हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा जिले के बैजनाथ मंदिर में नंदी खड़ी मुद्रा में हैं। यह मंदिर लगभग 8 या 9 शताब्दी पुराना है और इसमें एक स्वयंभू लिंग है। यह हिमालय की धौलाधार श्रेणी के लुभावने दृश्य के साथ बिनवा नदी के तट पर स्थित है।

यहां एक अन्य विचित्र विशेषता नंदी की पूंछ से लटके हुए मनुष्य की छवि थी। जो सोचने पर विवश करती है। आखिर! यह क्या बताना चाह रही है। 

कुछ लोगों का मानना है कि नंदी का अंडकोश दिखाना इस लिए जरूरी है। कि लोगों को भ्रम है कि वह गाय ही है जबकि ऐसा नहीं। नंदी नर है (गाय नहीं) और वह बछिया नहीं है (बैल या स्टीयर या बैल नहीं)। इसका मतलब है कि वह पालतू नहीं है। नंदी का उपयोग हल या गाड़ी खींचने के लिए नहीं किया जा सकता है। वह बोझा उठाने वाला जानवर नहीं है। नंदी को अंडकोश के बिना दिखाना उनकी पहचान छीनने जैसा है।जोकि आजकल के मंदिरों में सपाट प्रतिमाओं का निर्माण किया जा रहा है। इसलिए इस मंदिर में खड़े नंदी खुद की पहचान दिखा रहे हैं कि वह गौमाता नहीं है। 

 अण्डकोष वाली बात इनके विचारानुसार है👇




इसके अलावा कुछ लोगों का मानना यह है कि हिंदू पौराणिक कथाओं में, गरुड़ पुराण में प्रेत खंड का 47वां अध्याय वैतरणी नदी के बारे में जिक्र है, जिसे मृतकों की आत्माओं को पार करना चाहिए। शक्तिशाली नदी को देखना सभी नश्वर लोगों पर निर्भर है। जिन लोगों ने अपने जीवनकाल में उपहार दिए थे वे इसे आसानी से पार कर सकते हैं, अन्यथा वे इसमें डूब जाते हैं। जो लोग श्रेष्ठ ब्राह्मण को गाय दान करते हैं, वे वैतरणी नदी में कभी नहीं गिरते। गाय की पूँछ से लिपटकर निःसहाय आत्मा नदी यानि भवसागर पार कर सकेगी।इसलिए पूंछ में लिपटे मनुष्य को दिखाया गया है। यह भी कि हर जीव जन्तुओं पशुओं को सम्मान करें उनसे घृणा न करें। पूंछ पकड़ना मतलब प्रकृति को दामन न छोड़ने से है। प्रकृति को मजबूती से पकड़े रहना सम्मान करने जिम्मेदारी निभाने से हैं। कि नंदी के रूप में सम्पूर्ण पशुधन खड़ा है आप उसे इग्नोर न करें। बल्कि पकड़ कर रखें। 

इसके अलावा एक दंत कथा है कि एक बार एक शिव भक्त को जब भगवान शिव जी ने दर्शन नही दिये तो वह दु:खी भक्त बाहर बैठे हुए एक नंदी को भगवान शिव वाले नंदी समक्ष कर उनकी पूँछ से लटक गये कि हे! नंदी आप मेरे भगवान के अति निकट हो जब तक आप प्रभु के दर्शन नही करा देते मैं इस पूंछ में लटका रहूंगा। उस नंदी की बैचेनी देख उसी रूप में नंदी महाराज प्रकट होकर बोेले मेरी पूँछ से भवसागर पार नही होता यह अधिकार तो गौमाता को प्राप्त है। गाय की सेवा कर तुझे प्रभु जरूर दर्शन देगें ऐसा मेरा नंदी का वचन है। बाद में उसे भगवान शिव के दर्शन हुए पर उसने धन्यवाद खड़े हुए नंदी को ही किया कि आपकी पूंछ में न लटकता तो नाथ के दर्शन न होते। बस भक्त के वश में हैं भगवान। शायद इसीलिए ऐसा कहा भी जाता है। 

 
बैजनाथ अर्थात् वैद्यनाथ यानि विश्व के वैद्यनाथ सभी की रक्षा करने वाले चिकित्सक के रूप में भगवान शिव विद्यमान हैं। आइये! जानते हैं पूरी कथा

बैजनाथ शिव मंदिर हिमाचल प्रदेश के काँगड़ा ज़िले में शानदार पहाड़ी स्थल पालमपुर में स्थित है। 1204 ई. में दो क्षेत्रीय व्यापारियों ‘अहुक’ और ‘मन्युक’ द्वारा स्थापित बैजनाथ मंदिर पालमपुर का एक प्रमुख आकर्षण है और यह शहर से 16 कि.मी. की दूरी पर स्थित है। 

हिन्दू देवता भगवान शिव को समर्पित इस मंदिर की स्थापना के बाद से लगातार इसका निर्माण हो रहा है। यह प्रसिद्ध शिव मंदिर पालमपुर के ‘चामुंडा देवी मंदिर’ से 22 कि.मी. की दूरी पर स्थित है। बैजनाथ शिव मंदिर दूर-दूर से आने वाले लोगों की धार्मिक आस्था के लिए महत्वपूर्ण स्थान रखता है। यह मंदिर वर्ष भर पूरे भारत से आने वाले भक्तों, विदेशी पर्यटकों और तीर्थ यात्रियों की एक बड़ी संख्या को आकर्षित करता है।

 



निर्माण काल - 


तैरहवीं शताब्दी में बने शिव मंदिर बैजनाथ अर्थात ‘वैद्य+नाथ’, जिसका अर्थ है- ‘चिकित्सा अथवा ओषधियों का स्वामी’, को ‘वैद्य+नाथ’ भी कहा जाता है। मंदिर पठानकोट-मंडी राष्ट्रीय राजमार्ग के बिलकुल पास ही स्थित है। इसका पुराना नाम ‘कीरग्राम’ था, परन्तु समय के साथ यह मंदिर के नाम से प्रसिद्ध होता गया और ग्राम का नाम ‘बैजनाथ’ पड़ गया। मंदिर के उत्तर-पश्चिम छोर पर बिनवा नदी बहती है, जो की आगे चल कर ब्यास नदी में मिलती है।


पौराणिक कथा


त्रेता युग में लंका के राजा रावण ने कैलाश पर्वत पर शिव के निमित्त तपस्या की। कोई फल न मिलने पर उसने घोर तपस्या प्रारंभ की। अंत में उसने अपना एक-एक सिर काटकर हवन कुंड में आहुति देकर शिव को अर्पित करना शुरू किया। दसवां और अंतिम सिर कट जाने से पहले शिवजी ने प्रसन्न हो प्रकट होकर रावण का हाथ पकड़ लिया। उसके सभी सिरों को पुर्नस्थापित कर शिव ने रावण को वर मांगने को कहा। रावण ने कहा मैं आपके शिवलिंग स्वरूप को लंका में स्थापित करना चाहता हूँ। आप दो भागों में अपना स्वरूप दें और मुझे अत्यंत बलशाली बना दें। शिवजी ने तथास्तु कहा और लुप्त हो गए। लुप्त होने से पहले शिव ने अपने शिवलिंग स्वरूप दो चिह्न रावण को देने से पहले कहा कि इन्हें जमीन पर न रखना।


रावण दोनों शिवलिंग लेकर लंका को चला। रास्ते में ‘गौकर्ण’ क्षेत्र (बैजनाथ) में पहुँचने पर रावण को लघुशंका का अनुभव हुआ। उसने ‘बैजु’ नाम के एक ग्वाले को सब बात समझाकर शिवलिंग पकड़ा दिए और शंका निवारण के लिए चला गया। शिवजी की माया के कारण बैजु उन शिवलिंगों के भार को अधिक देर तक न सह सका और उन्हें धरती पर रखकर अपने पशु चराने चला गया। इस तरह दोनों शिवलिंग वहीं स्थापित हो गए। जिस मंजूषा में रावण ने दोनों शिवलिंग रखे थे, उस मंजूषा के सामने जो शिवलिंग था, वह ‘चन्द्रभाल’ के नाम से प्रसिद्ध हुआ और जो पीठ की ओर था, वह ‘बैजनाथ’ के नाम से जाना गया। मंदिर के प्रांगण में कुछ छोटे मंदिर हैं और नंदी बैल की मूर्ति है। नंदी के कान में भक्तगण अपनी मन्नत मांगते है।


उत्तराखंड में वैद्यनाथ धाम शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक है। उसे ही असली रावण वाला असली शिवलिंग माना जाता है।इसीलिए कहा जाता है कि बैजनाथ में रामलीला का आयोजन नहीं होता। जिसने भी ऐसा करने की कोशिश की, उसके साथ अच्छा नहीं हुआ। यही नहीं, बैजनाथ में सुनार की एक भी दुकान नहीं।


पांडव नहीं बना पाए पूरा मंदिर - 


द्वापर युग में पांडवों के अज्ञातवास ने दौरान इस मंदिर का निर्माण करवाया गया था। यह भी कहा जाता है कि उन्होंने स्वर्ग के लिए सीढ़ी बनाने चाही थी, लेकिन सुबह हो जाने की वजह से उन्हें काम अधूरा छोड़कर जाना पड़ा। स्थानीय लोगों के अनुसार इस मंदिर का शेष निर्माण कार्य ‘आहुक’ एवं ‘मनुक’ नाम के दो व्यापारियों ने 1204 ई. में पूर्ण किया था और तब से लेकर अब तक यह स्थान ‘शिवधाम’ के नाम से उत्तरी भारत में प्रसिद्ध है।


स्थापत्य कला - 


अत्यंत आकर्षक सरंचना और निर्माण कला के उत्कृष्ट नमूने के रूप के इस मंदिर के गर्भ-गृह में प्रवेश एक ड्योढ़ी से होता है, जिसके सामने एक बड़ा वर्गाकार मंडप बना है, और उत्तर और दक्षिण दोनों तरफ बड़े छज्जे बने हैं। मंडप के अग्र भाग में चार स्तंभों पर टिका एक छोटा बरामदा है, जिसके सामने ही पत्थर के छोटे मंदिर के नीचे खड़े हुए विशाल नंदी बैल की मूर्ति है। पूरा मंदिर एक ऊंची दीवार से घिरा है और दक्षिण और उत्तर में प्रवेश द्वार हैं। मंदिर की बाहरी दीवारों में मूर्तियों, झरोखों में कई देवी-देवताओं की मूर्तियाँ हैं। बहुत सारे चित्र दीवारों में नक़्क़ाशी करके बनाये गये हैं। बरामदे का बाहरी द्वार और गर्भ-गृह को जाता अंदरूनी द्वार अंत्यंत सुंदरता और महत्व को दर्शाते अनगिनत चित्रों से भरा पड़ा है।



निषेध : इस मंदिर में जूते-चप्पल के अलावा बैग, बेल्ट आदि सहित चमड़े की सभी वस्तुएं बाहर छोड़नी पड़ती हैं।बैजनाथ में सुनार की एक भी दुकान नहीं होती।रामलीला कराने पर प्रतिबंध हैं। 


उज्जैन के भगवान शिव मंदिर में खड़े नंदी -




उज्जैन में महर्षि सांदीपनि ऋषि जी का आश्रम स्थित है। जहां, भगवान श्रीकृष्ण ने 64 दिनों में 16 कलाओं और 64 विद्याओं का ज्ञान हासिल किया था। जब भगवान शिव का एक मंदिर भी है, जिसे पिंडेश्वर महादेव कहा जाता है। कहा जाता है कि जब भगवान शिव अपने प्रभु श्रीकृष्ण की बाल लीलाओं का दर्शन करने यहां पधारे, तो गुरु और गोविंद के सम्मान में नंदीजी खड़े हो गए। यही वजह है कि यहां नंदीजी की खड़ी प्रतिमा के दर्शन भक्तों को होते हैं। देश के अन्य शिव मंदिरों में नंदी की बैठी प्रतिमाएं ही नजर आती हैं।

 


संदीपनी आश्रम एक पवित्र मंदिर है जो महर्षि सांदीपनि की याद में बनाया गया है और इसे उज्जैन के प्रसिद्ध पर्यटन स्थलों में से एक माना जाता है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, ऐसा माना जाता है कि यह वही आश्रम है जहां गुरु संदीपनी श्री कृष्ण, उनके मित्र सुदामा और भगवान कृष्ण के भाई बलराम को पढ़ाया करते थे। आश्रम अब एक मंदिर जैसा दिखता है और गुरु सांदीपनि के साथ कृष्ण, बलराम और सुदामा की तीन मूर्तियाँ मौजूद हैं।

आश्रम के पास के क्षेत्र को अंकपात के नाम से जाना जाता है, माना जाता है कि यह स्थान भगवान कृष्ण द्वारा अपनी लेखनी को धोने के लिए इस्तेमाल किया गया था। इसी जगह भगवान श्री कृष्ण जी ने लेखनी को धारण करने वाले यमराज यानि धर्मराज यानि भगवान श्री चित्रगुप्त जी का ध्यान किया था। दुष्टों के लिए वह यम का रूप लेते हैं और भक्तों के लिए धर्मराज का और यमपुरी में श्री चित्रगुप्त भगवान के रूप में सभी के पाप-पुण्य का लेखा-जोखा दंडविधान तय करते हैं। आज भी इसी जगह भगवान श्री चित्रगुप्त जी का मंदिर है जहां कलम दवात भेंट की जाती है। 

इसी अंकपात जगह पर माना जाता है कि एक पत्थर पर पाए गए अंक 1 से 100 तक गुरु सांदीपनि द्वारा उकेरे गए थे। पहले इसका नाम अंकपट था वो इसलिये कि 

आश्रम के समीप ‘अंकपट’ है। इसके प्रति लोगों में ऐसा विश्वास है कि यहाँ भगवान कृष्ण अपनी लेखन पट्टिका को साफ किया करते थे। इस आश्रम के पास एक पत्थर पर 1 से 100 तक गिनती लिखी है और ऐसा माना जाता है कि यह गिनती गुरु सान्दीपनि द्वारा लिखी गई थी। पुराणों में उल्लिखित गोमती कुंड पुराने दिनों में आश्रम में पानी की आपूर्ति का स्रोत था।

कथा कहती है कि । शिक्षा पूरी होने के बाद जब गुरु दक्षिणा की बात आई तो ऋषि सांदीपनि ने कहा कि शंखासुर नाम का एक दैत्य मेरे पुत्र को उठाकर ले गया है। उसे ले लाओ। यही गुरु दक्षिणा होगी। श्रीकृष्ण ने गुरु पुत्र को खोजकर वापस लाने का वचन दे दिया।

भगवान श्रीकृष्ण और बलराम समुद्र तक पहुंचे तो समुद्र ने बताया कि पंचज जाति का दैत्य शंख के रूप में समुद्र में छिपा है। संभव है कि उसी ने आपके गुरु के पुत्र को खाया हो। भगवान श्रीकृष्ण शंखासुर को मारकर उसके पेट में गुरु पुत्र को खोजा, लेकिन वह नहीं मिला। तब श्रीकृष्ण शंखासुर के शरीर का शंख लेकर यमलोक पहुंच गए और  यमराज से गुरु पुत्र को वापस लेकर गुरु सांदीपनि ऋषि को लौटा दिया जिसे देखकर गुरू माँ ने भगवान श्री कृष्ण को हृदय से लगाकर ढे़रों आशीर्वाद दिये। 

बता दें कि नंदी की एक छवि तालाब के पास शुंग काल के समय की है। वल्लभ संप्रदाय के अनुयायी इस स्थान को वल्लभाचार्य की 84 सीटों में से 73 वीं सीट के रूप में मानते हैं जहां उन्होंने पूरे भारत में अपने प्रवचन दिए।

आश्रम परिसर विशाल है और भूमि के विशाल हिस्सों के साथ है। बहुत सारे मंदिर हैं लेकिन जाहिर है, मुख्य मंदिर गुरु सांदीपनि का है। यहां स्थित मंदिरों में से एक, जिसे सर्वेश्वर महादेव कहा जाता है, शेषनाग के साथ 6000 साल पुराना शिवलिंग अपने प्राकृतिक रूप में है, और इस मंदिर में जो नंदी है वो खड़े है। किसी भी मंदिर में नंदी की मूर्ति बैठी हुई होती है। लेकिन यह वो खड़े स्वरूप में है। और माना जाता है कि गुरु संदीपनी और उनके शिष्यों द्वारा इसकी पूजा की जाती है। आश्रम में गोमती कुंड नामक एक विशाल सीढ़ीदार तालाब भी है, जिसमें भगवान कृष्ण ने पवित्र केंद्रों से सभी पवित्र जल को बुलाया ताकि गुरु संदीपनी को पवित्र जल प्राप्त करना आसान हो। इस तालाब का पानी पवित्र माना जाता है और इसलिए, भक्त यहां अपनी पानी की बोतलें भरते हैं और पानी को घर ले जाते हैं।

समय: सुबह 9 बजे - शाम 7 बजे

प्रवेश शुल्क: निशुल्क

उज्जैन जंक्शन से 6 किमी की दूरी पर, सांदीपनि आश्रम मध्य प्रदेश के उज्जैन में स्थित एक पवित्र मंदिर है। क्षिप्रा नदी के तट पर स्थित, यह उज्जैन में घूमने के लिए लोकप्रिय स्थानों में से एक है।

दिव्य नगरी उज्जैन के बाकी मंदिर को साथ ये भी एक महत्वपूर्ण मंदिर है। समय निकालकर अपने पूर्वजों की धरोहर देखने तीर्थों में शीष नवाने जरूर पहुंचे। धन्यवाद 🙏💐🚩

 

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