कविता : मंहगाई
रुपैया के दो कम्पट
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रुपैया के दो कम्पट
माँ ने पुकारा ओ श्यामसुंदर
चुपचाप से ले आओ दालमोठ और बिस्कुट
मेहमानों को बिल्कुल भी ख़बर तक न होगी
जल्दी से मुझे दे दो बस एक अठन्नी
आज श्यामसुंदर उदास सा है बैठा
ढ़ेरों सवाल वो खुद से खुद से ही कर रहा है
दुकान भी वही है कम्पट भी वही है
बदला आखिर क्या क्यों चल न रही अठन्नी
आज श्यामसुंदर स्कूल से है लौटा
देखा जो मेहमानों को हुआ बेहद गदगद
माँ ने कहा श्यामसुंदर ले आओ सिर्फ बिस्कुट
अब अठन्नी नही है चलती देना पड़ेगा रुपैया
माँ ने गौर से देखा पल्लू की गांठ खोली
पाकर छोटी से हथेली पर बड़ा सा रुपैया
दौड़ गया श्यामसुंदर लेने को अपना कम्पट
रुपैया के दो कम्पट लेकर लौटा है श्यामसुंदर
...................................................................................................................यह कविता 2004 मै लिखी थी।
आकांक्षा सक्सेना
,
उत्तर प्रदेश .
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