नशे मैं बर्बाद आशियाँ..
दर्द ...दर्द देता है...
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किधर नज़र थी और किधर देखा
दिन मै तो मेरे साथ थे रात किधर देखा
क्या कमीं थीं मुझमे और क्या उसमें देखा
मेरे ज़ख्म नहीं देखे,
किसी के सिर को सहलाते देखा ।।
किधर घर बसाया और मुड़ के किसे देखा
किसी को इक नज़र भी नहीं
किसी पर मर-मिटते देखा
किसीको कठपुतली बनाया,
किसी की कठपुतली बनते देखा ।।
किससे फेरे पड़े थे और किसके चक्कर लगाते देखा
किसी पर हाँथ उठाया
किसी की गाली खाते देखा
किसे के लिये दो वक्त की रोटी नहीं,
किसी पर सबकुछ लुटाते देखा ।।
किससे है बंधन और किसे बाँहों मै भरते देखा
किसी की पायल को नहीं देखा
किसी के घुंगूर मैं बजते देखा
किसी को दिल से निकाला,
किसी को धड़कनों मैं बसते देखा ।।
किसी को कफ़न उड़ाया किसी का घूँघट उठाते देखा
किसी को हमेंसा रुलाया
किसी पर रोते हुए देखा
कोई दुनिया से उठ गया,
किसी को लौटते देखा ।।
घर के गुलशन को देखा तो उजड़ा हुआ देखा
हिम्मत न थी की चित्र पर माला डालें
लगा आज खुद की जयमाला को जलते देखा
बहुत रोया हारा-बेजान सा बैठा,
खुद को खुद की नज़रों मैं गिरता हुआ देखा ।।
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ये 27-05-2004 मैं लिखी थी।
आकांक्षा सक्सेना
बाबरपुर जिला-औरैया
उत्तर प्रदेश
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