रात तो खुद जागती है ....
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दिन को तो सभी प्रणाम करते हैं
रात को सोच के क्यों डरते हैं ।।
रात को ही सुन्दर सपनों का जाल होता है
रात को ही वाराणसी मैं नौका विहार होता है ।।
रेलवे स्टेशन पर रात दौड़ती है
भूख और दर्द मैं रात खुद जागती है ।।
हर रात सुबह की आस बधांती है
दिन थकाता है गोद मै रात सुलाती है ।।
रात आखिर क्यों ''रात '' कहलाती है
दिन की हर प्यास रात ही तो बुझाती है ।।
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आकांक्षा सक्सेना
उत्तर प्रदेश
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रात खुद जागती है - ब्लॉगर आकांक्षा सक्सेना
Reviewed by
Akanksha Saxena
on
October 07, 2012
Rating:
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