दर्द के रंग
दर्द के रंग
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देखो होली आई प्रिये
आओ मिला कर नाचे गायें हम
हर तखलीफ़ को भूल जायें हम
रंगों कि मादक खुशबू में
पोर -पोर भीग जायें हम
में कैसे सज - धज आऊँ पिया
में कैसे त्योहार मनाऊँ पिया
मेरे हृदय के घाव हरे हैं
में कैसे रंगों को हाथ
लगाऊं पिया
जब आज शहीद का शव
बिन सिर के घर
पहुँचाया जाता है
शहीद कि पत्नी से
अंतिम दर्शन भी
छीना जाता है
तो,इसी दर्द दोपहरी में
मैं कैसे अश्रु छुपाऊँ पिया
जब दुधमुही बेटी के साथ
कुकृत्य हो जाता है
फिर मुजरिम घर- परिवारी
ही पकड़ा जाता है
तो सोचो कैसा लगता है
जीवन को दबाह करनेवाला
चाँद सिक्कों मैं छूट घर
आता है ,दिलों मैं लगी
इस आग को देखकर
मैं कैसे होलिका दहन
कराऊं पिया
कभी जिनके आगन में
तुलसी पर घी का
दीपक जलता था
आज उसी घर का बच्चा
सूखी रोटी से पला जाता है
तो ऐसी प्यासी महगाई
में, मैं कैसे होली के मिष्ठान
बनाऊं पिया
देखो देश का भविष्य
सड़कों पे रिक्शा खींच रहा
सुनहरे सपनो की होली
हर रोज़ हर दिल में
जलती रहती है
बोलो,अब कौन सी होली
मनाऊँ पिया
मैं कैसे सब कुछ
भूल जाऊं पिया
अब दर्द से हाँथ कराह उठे
तुम्हें कैसे रंग लगाऊं पिया
जब कलम हमारी ही रो पड़ी
कैसे शब्दों मैं हास्य लाऊं पिया
बोलो कैसे रंगों मैं डूब जाऊं पिया
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आकांक्षा सक्सेना
जिला - औरैया
मार्च 2013
bahut hi umda hai
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