गुमनाम मुसाफ़िर
गुमनाम आशियाना
..............़................गुमनाम दिल तेरा दिवाना
तेरी याद ही मेरी जॉन अब मेरा आशियाना
दोस्त, कामयाबी के रास्ते गुमनामी से हैं जाते
तेरी नजरों से रोज मिलकर वापस हम लौट आते
तू वक्त है तो मुझ में बदल
तू नज़र है तो मुझ में ठहर
तू बुझी तो मैं कहाँ धहकूँगा
तेरे होठों से फिसला हूँ
बोलो अब कहाँ जाऊँगा
बदनाम है एक शब्द
पूरी दुनिया है जिसका ठिकाना
वो प्यार है मेरी जाँन
बदनाम जिसका आशियाना
मेरी श्वांस में घुली है तेरी श्वांस की वो जाँ
मेरी प्यास ही मेरी जॉन मेरा अब ठिकाना
अब ख्वाबों में ही सिमट जा
मेरी जाँन जानेजाना
तू ही है मेरी मंजिल मैं मुसाफिर तेरा पुराना
शदियों से इस जहाँ में अपना है आना-जाना
मैं गुमनाम दिल हूँ तेरा तू मेरा गुमनाम आशियाना
स्वहस्तरचित
आकांक्षा सक्सेना
जिला औरैया
उ.प्र
दिनांक 26 अगस्त 2015
दिन बुधवार
समय शाम 12:15
बेहतरीन
ReplyDeleteThanks Rajeev Sharma ji
Deleteआपने अच्छा लिखा ।।
ReplyDeleteधन्यवाद,
ReplyDeleteराजेंद्र कुमार जी......
मंच प्रदान करने के लिये शुक्रिया|
बेहतरीन...बेहद खूबसूरत।
ReplyDeleteबहुत ही प्रेरणास्पद सशक्त रचना आदरणीय।
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