कविता : पित्रस्नेह पर कविता "पिताजी"
पिताजी
............
आँखों में आँसू दिखते ना
माथे पर ना सिकन दिखे
होठों पर मुस्कॉन सजे ना
नाक पर गुस्सा घूमा करता
चेहरे पर सख्ती दिखती
पर दिल में प्यार बसा करता
बनावट से नही जिनका रिश्ता
हाँ रिश्तों में गहरा वो रिश्ता
वो हस्ती नही मामूली कोई
दुनिया ने नही समझा जिसको
वो आमंत्रण के आगाज़ हैं
परिश्रम के वो आधार हैं
परिवार के पालनहार हैं
भगवान का दूसरा नाम हैं
कोई और नही वो
हमारे संरक्षक
"पिता" महान हैं
जिनसे हमारी "नाम"
और "पहिचान" है |
आदरणीय "पिताजी"
आपको ससम्मान
प्रणाम है |
आकांक्षा सक्सेना
ब्लॉगर 'समाज और हम'
No comments