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यौन उत्पीड़न: तमाशाई बनी लोकशाही -


यौन उत्पीड़न : तमाशाई बनी लोकशाही  - 
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- ब्लॉगर आकांक्षा सक्सेना 

बलात्कार, यौन उत्पीड़न और महिलाओं के साथ होने वाले अपराध यही संकेत देते हैं कि बेटियां कहीं सुरक्षित नहीं हैं। कब कौन किस जगह किन  की  बेटी,बहु किस दरिंदगी का शिकार हो जाये  कोई नहीं जानता।
      जिस तरह आज जुर्म की कोख अपराधियों को जन्म दे रही है उससे तो यही लगता है कि आने वाले समय में कहीं इंसान का वजूद ही खतरे में न पड़ जाये। क्योंकि जिस तरह साईंस रिसर्च कहती है कि मंगल पर किसी बड़े आणविक हमले ने पूरा ग्रह आज विरान कर दिया है। आज हमें सोचना होगा कि अगर हमने कोई उन्नत सॉल्यूशन इजाद नहीं किया तो कहीं ऐसा न हो कि इंसान हैवान बन जाये और जिसकी कीमत पूरे प्लैनट यानि पृथ्वी को न चुकानी पड़ जाये, जिसका परिणाम पूरी पृथ्वी को न भुगतनी पड़ जाये। 
 महिलाओं के साथ हर रोज़ जो ऐसी घटनाएं सामने आ रही है, वे इस बात का संकेत हैं कि भारतीय समाज में लैंगिक भेदभाव की जड़ें अब तक हिल नहीं पा रही हैं. इन आंकड़ों से पता चलता है कि महिलाओं के विरुद्ध अपराध की श्रेणियों में बलात्कार, शादी के लिए शोषण, अपहरण और पति/पति के रिश्तेदारों के द्वारा की गई हिंसा सबसे ज्यादा प्रभावी सिद्ध होते हैं। भारतीय दंड संहिता आईपीसी  की धारा 498 – ए के तहत पति और रिश्तेदारों द्वारा किसी भी महिला को शारीरिक या मानसिक रुप से चोट पहुंचाना देश में सबसे अधिक होने वाला अपराध है। आंकड़ों की मानें तो पिछले दस सालों में आईपीसी 498 ए के तहत 909,713 मामले या यूं कहें कि हर घंटे 10 मामले दर्ज की गई है।धारा 354 के तहत किसी भी महिला की लज्जा भंग करने के आशय से उस पर हमला या आपराधिक बल प्रयोग करना जैसी वारदातें देश में होने वाला दूसरा सबसे अधिक अपराध है। पिछले एक दशक में इस तरह के करीब 470,556 मामले दर्ज की गई है। महिलाओं के अपहरण ( 315,074 )करने जैसी वारदाते देश में होने वाला तीसरा सबसे अधिक अपराध है। बलात्कार  243,051  , महिलाओं के अपमान 104,151  और दहेज हत्या  80,833  अन्य देश में सर्वाधिक होने वाले अपराध है। पिछले एक दशक में दहेज प्रतिषेध अधिनियम, 1961 के तहत कम से कम 66,000 मामले दर्ज की गई है।  देश में हर घंटे महिलाओं पर बॉस,सहकर्मी, पति या उसके रिश्तेदार के द्वारा अत्याचार के सैकड़ों मामले दर्ज की जाती है जबकि महिला का जबर्दस्ती, हमला या आपराधिक बल प्रयोग करने जैसी 5 वारदातें एवं अपहरण एवं बलात्कार के तीन-तीन मामले दर्ज की जाती है।  एनसीआरबी के अनुसार इनके अपराधों के अलावा वर्ष 2014 में महिलाओं के खिलाफ़ होने वाले अपराध में कुछ नई श्रेणियां भी जोड़ी गई है। इनमें बलात्कार के प्रयास ( 4,234 ), आईपीसी की धारा 306 के तहत महिलाओं को आत्महत्या के लिए उकसाना ( 3,734 ) एवं घरेलू हिंसा से बचाव ( 426 ) शामिल हैं।  दिल्ली में वर्ष 2010 में हुए महिलाओं के साथ होने वाले सर्वे के अध्ययन में पाया गया कि पिछले एक साल में कम से कम 66 % महिलाओं ने हर तीसरेे दिन यौन उत्पीड़न का सामना किया है।पिछले दशक में महिलाओं के खिलाफ़ अपराध के कम से कम 2.24 मिलियन मामले दर्ज किये गये हैं। प्रति घंटे महिलाओं के खिलाफ़ अपराध के  हर दो मिनट में एक रिपोर्ट दर्ज होती है।किसी भी महिला पर प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रुप से शारीरिक या मानसिक रुप से चोट पहुंचाना  “महिलाओं के खिलाफ अपराध”कहलाता है। विशेष रुप से महिलाओं के खिलाफ़ किया गये अपराध एवं जिसमें पीड़ित केवल महिलाएं ही बनती हैं उसे ही “महिलाओं के खिलाफ़ अपराध” के रुप में वर्गीकृत किया गया है।



उपरोक्त आंकड़े बता रहे हैं कि पिछले पांच सालों में महिलाओं पर डेढ़ गुणा तक अपराध बढ़ गए हैं। इनमें अपराधों पर दुष्कर्म से लेकर छेड़छाड़ तक शामिल हैं। 
हम सभी को  राष्ट्रीय अपराध अनुसंधान ब्यूरो की नवीनतम जानकारी के अनुसार वर्ष  2015 के दौरान देश में बलात्कार के 34,651मामले दर्ज किए गए और जिनमें सबसे दुखद या कहूँ लानत है कि हमारे देश जहां शक्ति पूजा का विधान जहां नौ दिन कन्या पूजन किया जाता और नवरात्रि साल में दो बार आती है तो हो गये पूरे 18 दिन जिस देश में कन्याओं का पूजन हो वहां यह बात खंजर की तरह धंस रही है ।



हमारे भारत में रोज़ 92 बलात्कार के मामले दर्ज होते हैं लेकिन महिला सुरक्षा को लेकर यह आंकड़े कितने सही हैं यह तो प्रतिदिन प्रकाशित होने वाली खबरों से हम और आप बखूबी समझ सकते हैं।विडंबना देखिए कि वोमेन्स प्रोटेक्शन,शेल्टर हाउसेस (आश्रय ग्रह) ,ओल्ड वीमेन हाउसेस कही भी कोई सुरक्षित नही जबकि इन घरों की देख भाल के लिए भी महिलाओं का ही अपॉइंटमेंट होता पर यह सब भी तमाशाई बनी रहतीं हैं शायद इसलिए की वहां उन शेल्टर्स हाउसेस में उनकी अपनी बहू बेटियां नहीं होतीं।यहां यही कहना चाहूंगी कि दुष्कर्म चाहे किसी भी जगह, किसी भी धर्म की बेटी के साथ हो पर 'है तो वह बेटी ही न' फिर आज तो दुष्कर्म पर भी सियासत हो जाती है। इससे ज्यादा शर्मिदगी की बात और क्या होगी कि आज कठुआ में 12 साल की बच्ची के साथ दुष्कर्म, मुजफ्फरनगर , मुजफ्फरपुर बालिका ग्रह कांड, बिहार के जहानाबाद में एक नाबालिग गरीब लड़की से बदसलूकी का वीडियो वायरल था जिसमें 5 से ज्यादा लड़के उस मासूम बच्ची को घेरकर उसके साथ बदसलूकी कर रहे थे।वहीं क्राइम कैपीटल दिल्ली में 8महीने की बच्ची के साथ दुष्कर्म। यह सभी शर्मनाक दुर्घटनायें यह बताने के लिए काफी है कि हमारा समाज किस दिशा में जा रहे है। इससे भी ज्यादा शर्मनाक यह है कि देश भर की बेटियां सुरक्षा को लेके सहमी हुईं हैं तो क्या कर रहा है देश का महिला आयोग? मैं यह तो नही जानती की पूरे भारत में कितनी ऐसी संस्थाए हैं जो महिलाओं की हक़ हक़ूक़ के लिए आवाज़ बुलंद करती हैं या उनकी कितनी सुनी जाती है।पर महिला आयोग है और महिला आयोग केवल केंद्र में ही नही बल्कि राज्यों में राज्य महिला आयोग का शोर सुनाई देता है।इसके अलावा पोलिटिकल पार्टीज में महिला विंग्स होते है।राष्ट्रीय स्तर पर भी कई ngo महिला सुरक्षा में सहयोग का कागजी दम भरते नज़र आ ते हैं पर मुझे समझ में नही आता कि आखिर! इनका काम क्या है? और अगर इन के पास बेटियों के प्रति हितकारी कोई उत्थान योजना रोजगार प्रोजेक्ट हैं तो वो नज़र क्यों नही आते? दुष्कर्म पीड़ित बेटियों के आँसू सिर्फ़ कागजों चंद सिक्कों व सहानुभूति से नहीं पोछे जा सकते। हर कोने में पीड़िता खून के आँसू रो रहीं हैं तो मैं यह जानना चाहती हूं कि उच्च महिला पदाधिकारी,सत्तासीन महिला विंग आखिर! कहां हैं?

मैं यह जानना चाहती हूं।केवल स्वयंसेवी संस्थायें ही नही वरन राजनीतिक दलों में भी महिलाएं ऊँचे ऊँचे पदों पर हैं। जिनमें कोई विधायक है तो कोई सांसद पर इनकी भी ज़ुबान किसी महिला के उत्पीड़न पर नही खुलती क्यों? सही भी है कि जब दर्द खुद को हो तो उसका एहसास होता है गरीब, बेबस, लाचार की बच्चियों का दर्द भी शायद गरीब हो गया जिसे कोई सुनना नहीं चाहता। सवाल यही है पीड़िता के लिये देश की शीर्ष पदों पर बैठीं महिलाएं सड़कों पर क्यों नहीं उतरतीं? अगर आप सभी कुछ देर के लिए अपने एयरकंडीशन कारों बंगलों से बाहर निकल कर आवाज़ उठा देतीं तो सचमुच बड़ी क्रांति घट जाये पर नहीं यह होगा भी कैसे आज तक जो भी क्रांति घटी है वह आम जनता की आह की आवाज़ से ही निकली है। रोज-रोज दुष्कर्म, दहेज़ पीड़िता की मौत जैसी खबरों से मन उदास हो जाता है यह सुन कर के फलां जगह महिला के साथ यह अत्याचार हुआ पर यह सुनने और देखने को नही मिलता की यह महिला आयोग या महिला संस्थानों का कोई पदाधिकारी  कार्य कर रहा या पीड़िता के खिलाफ़ एक जुट होकर सामने आईं ।आखिर! क्यों यह जिम्मेदारी समाज के सभ्य आम नागरिकों को निभानी पड़ती है और जब अन्य को ही महिलाओं की लड़ाई लड़नी है तो महिला आयोग या महिला संस्थानों का क्या काम ?
      समझ से परे है के बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ का नारा कैसे सफल हो सकता है जब सरकार के पास ही महिलाओं के सुरक्षा का जैसे कोई ऑप्शन ही नही बचा हो।वरना क्या कारण हो सकता है के सरे राह महिलाएं दरिंदगी का शिकार हो जाती है और दरिंदे जिन्हें न क़ानून का डर है ना अदालतों के कालर खड़ा कर के घूमते नज़र आतें या उनका कोई कुछ नही बिगड़ पता क्यों।
     ज्ञात हो हो किसी भी देश का अपना एक क़ानून संविधान होता है यानी एक ऐसी छतरी जिस के दायरे में सब को रहना पड़ता है लेकिन कोई अपने क़ानून संविधान का दायरा ही तोड़ने लगे तो उस देश का हाल वैसा ही होता है जैसे नेपोलियन से पहले फ्रांस का या नादिर शाह के बाद हिंदुस्तान का।












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