अकारण
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कुछ तो खो रहा
जाने क्या मिलने को है...
पाने की इतनी चाहत
आखिर!इंसा तुझे हुआ क्या है?
कुछ तो थिरक गया भीतर
बहुत कुछ यहां अकारण भी है
हमेशा कारण की जिद्द
आखिर! इंसा तुझे हुआ क्या है?
कुछ तो है साथ पर मौन
खुद से कोई सवाल नहीं
दुनिया से तेरे सवाल बहुत हैं
आखिर! इंसा तुझे हुआ क्या है?
खजाने का मालिक गया उधारी
अंतरिक्ष की खिड़की खोली
स्व: जागरण से दूरी
आखिर! इंसा तुझे हुआ क्या है?
-ब्लॉगर आकांक्षा सक्सेना
Published -
कविता - अकारण
Reviewed by Akanksha Saxena
on
January 25, 2019
Rating: 5
बहुत सुन्दर कविता!!
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