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दिल से स्वीकार करना समझते हैं आप ?




दिल से स्वीकार करना समझते हैं ना आप। स्त्री को दिल से स्वीकार यानि प्रेम करना हर पुरूष के वश का नही। तमाम पुरुषों के घर में जो स्त्री है.. वह स्त्री नहीं है, स्त्री की चलती फिरती लाश हैं। जिंदा स्त्री को उसके सपनों के साथ स्वीकार करना, अधिकांश पुरूषों के लिए लगभग असंभव है। पति का तो अर्थ ही मालिक है।मालिक या तो गुलाम रखते है या वस्तुएं। पूरे समाज की चेतना में अधिकांशतः ही पितृसत्ता भरी पड़ी है। खोखले वादे के ढ़िढ़ोरे पीटे जा रहे बस.... जबतक घरों में मालिक और दासी वाली दिलों में घुलती राजनीति विदा नहीं होती तब तक आंकड़ों पर ही जीते रहो, जिताते रहो...और सच कहो तो गालियाँ ब्याज में.... शुक्रिया ऐ समाज तेरी गालियों का भी शुक्रिया...!!


             सबहित में जारी - 

               कड़वे घूँट 
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आज राजस्थान के कुछ इलाके बेहद सम्पन्न होते हुए भी महिलाओं के प्रति पूर्णतः असंवेदनशील हैं जहां कि महिलाएं दो-दो हाथ का घूँघट किये हुए ना सिर्फ़ घर का पूरा काम करें बल्कि बाहर दूर से सिर पर कई मटके रख कर पानी भी लेने जायें.. अगर वो महिला लड़खड़ा कर गिर जाये, पांव में फैक्चर आ जाये तो वहां के जड़ पुरूषों के लिये यह कोई बड़ी बात नहीं हाँ घूँघट जरा सा खिसका नहीं कि उस महिला का साक्षात् काल प्रकट हो जाता है।
      इससे भी ज्यादा दुखद और शर्मनाक वह परिवार हैं जिनका बड़ा लड़का शादी करके ड्यूटी पर बाहर चला जाता है और उसके पीठ पीछे से उसकी पत्नी को जबरन ससुस, देवर व ज्येष्ठ की हवस का शिकार बनना पड़ता है और बड़ी बात तो यह है इन सब हरकतों का पूरा समर्थन शादी के बाद होने वाली गोपनीय रिवाजों का नाम देकर या पति की उम्र बढ़ने के अंधविश्वास को उस नयी  दुल्हन, उसी महिला पर उसकी सास व ननद के द्वारा जबरन लाद यानि थोप दिया जाता है और हैवानियत का यह क्रम यहीं नहीं रूकता यहां तक कि उस महिला की बेबसी और लाचारी की जबर्दस्त कीमत लगाई जाती और धनउगाही या यूँ कहें यह अध्यव्यवसाय यानि चकला, यानि वेश्यावृत्ति यानि चुप्पी और घुटते आँसुओं का यह काला व्यवसाय को खूब फैलाया जाता है या यूँ कहें कि आज यह हर गांव, हर जिले, हर शहर में खूब फलफूल रहा है। अब ग़र महिला अपने छुट्टी पर आये पति से यह सब बताये तो वह पति को विश्वास दिलाने में पूरी तरह असमर्थ हो जाती है और पूरा दोष समस्त परिवारी मिलकर उसी महिला पर लगाकर उसके जान के दुश्मन बन जाते हैं और फिर पति, देवर, ससुर आदि से पिट-पिट कर अनेकों यातनाएं भोग कर वह महिला जिंदा लाश की जिंदगी जीने पर मजबूर हो जाती है.. दोस्तों! यह क्रम यहां भी नहीं रूकता आगें इन्हीं हवस से पैदा संतानों के साथ तो और भी बुरा होता है जब नवजात बच्चे को ऊचें दामों पर देश - विदेश बेचा जाता है... और कुछ बच्चों को थोड़ा बड़ा होने पर उनके मानव अंगों की तस्करी हेतु दूर-देशों में बेचा जाता है... जहां उन बच्चों की आँखें, गुर्दों आदि अंगों को बड़ी ही बेरहमी से निकाल कर उन्हें ऊचें दामों पर बेच दिया जाता है.. इनमें से बचीं कुछ बच्चियों को बचपन से ही देह व्यापार की काली दुनिया में झोंक दिया जाता हैं जहां उनकी बेबसी और लाचारी की फिल्में बनायी और बड़े स्तर पर बेचीं जातीं हैं और बेहद शर्मनाक बात तो यह है जिनके ऊपर इस बुराई को रोकने की जिम्मेदारी है  उन्हीं लोगों, संसद में बैठ कई मंत्री तक को उन वीडियो को मजे से देखते पाये गये हैं...बस फिर यही मासूम बच्चियाँ इन्हीं अंधेरों में बड़ी होती हैं.... मना करने पर मारीं जातीं हैं.. फिर प्रेग्नेंट होतीं हैं और  उनके बच्चों के साथ भी यही क्रम चलता रहता है...यह क्रम हजारों करोड़ों का एक बहुत बड़ा व्यवसाय बन चुका है.. जिसकी जड़े इतनी गहरी हैं कि कोई अनुमान नहीं लगाया जा सकता.. 
 यही करोड़ों अरबों के कुकर्मों का कुक्रम का कुचक्र ना ही प्रशासन से छिपा है और ना ही सरकार से... उनके लिए तो बस लड़कियां पैदा होती रहतीं हैं और मरतीं रहतीं हैं...चुनाव आते हैं..चुनाव जाते हैं.. सरकारें बनतीं हैं....सरकारे बदलतीं हैं पर नहीं बदलती तो इस जड़ हो चुके समाज की सभी लड़कियों की बारे में गंदी दकियानूसी सोच और घटिया मानसिकता....! 
..... इन काले अंधेरों में लाश जैसी पड़ी हजारों - हजारों लड़कियां की जिंदगानी..में दम तोड़ चुकीं उनकी अपनी कहानी भी अंत में.. बस यही सोचतीं होगीं कि.... वह कौन सा दिन होगा...कि इस कड़वे घूँट का कभी तो अंत होगा.... काश! कि जब भगवान श्री कृष्ण, राजा राम मोहन राय और ईश्वर चंद विद्यासागर जैसा कोई 'पुरूष' कोई 'मर्द' इस धरती पर जन्म लेगा और इस क्रूर समाज, देश और विश्व से इस अध्यव्यवसाय - देह व्यवसाय को पूरी तरह से खत्म करा देगा.....!!


कृपया इसे पढ़कर भद्र पुरूष कुपित ना हों....
वहीं कुपित हों जो इस तरह के हों....

-ब्लॉगर आकांक्षा सक्सेना

     'समाज और हम'

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