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हिंसात्मक होते आंदोलन? -ब्लॉगर आकांक्षा सक्सेना

कवर स्टोरी - 



हिंसात्मक होते आंदोलन
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- आकांक्षा सक्सेना, न्यूज ऐडीटर सच की दस्तक 


लोकतंत्र में अपनी बात कहना सरकार को चेताना बहुत जरूरी है। शांति प्रदर्शन संदेश देते हैं कि जनता मूर्ख नहीं है। बस गलत हो जाता है, लोगों का हिंसात्मक रवैया। यह बात सच है कि 'सरकार' को 'सरकार' देश की जनता ने मिलकर बनाया है और देश की सरकार का प्रथम कर्तव्य है प्रत्येक नागरिक की जिज्ञासा को जिम्मेदारी से शांत करना और जब ऐसा न हो तब शुरू होता है विरोध, हां विरोध तक तो ठीक है पर विद्रोह को सही नहीं ठहराया जा सकता। 

        आन्दोलन में हिंसा का अनैतिक दबाव ही लोकतन्त्र में मतभेद के अधिकार को हल्का कर देता है क्योंकि हिंसा केवल मतभेद या विचार विविधता को ही निगलने का काम करती है। भारत के लोगों को 
अ​हिंसात्मक आन्दोलन की ताकत का पता न हो यह नहीं माना जा सकता क्योंकि आज जब हम 71वां गणतंत्र दिवस मना रहे हैं पर एक समय था जब इसी देश ने डच, मुगलों( 150 वर्ष की गुलामी व गुरू अर्जुन देव की गर्म तवे पर नृशंस हत्याओं का कलंकित काल), अंग्रेजों(200 वर्ष गुलामी) की वर्षों की बेहद क्रूर गुलामी से इसी बुलंद प्रदर्शनों के रास्ते से मुक्ति पाई थी। जिसके महानायक सभी देशभक्त क्रांतिकारी थे पर वे सब देश की आजादी और भलाई के लिए लड़े पर आज कुछ ऐसी जहरीली देशद्रोही आवाज़ें उठती है कि भारत तेरे टुकड़े होगें इशां अल्लाह इंशा अल्लाह, अफजल हम शर्मिंदा हैं तेरे कातिल जिंदा हैं, देश के प्रधानमंत्री मोदी जी के लिए सुधर जाओ या गुजर जाओ। यही अशिष्टता, अभद्रता, गद्दारी का पर्याय बन जाती है कि जबकि पीएम सबकुछ स्पष्ट कर चुके हैं। जरा सोचिए! देश के क्रांतिकारियों के आंदोलन के नारे क्या ऐसे हुआ करते थे? आजादी के प्रदर्शनों की तुलना इस देशद्रोही मानसिकता वाले प्रदर्शन से कदापि नहीं की जा सकती। 
         दरअसल हल्लाबोल रैलियों का इतिहास कम्युनिस्ट देशों में प्रारम्भ हुआ। जहां शासकों के पक्ष में हवा बांधने के लिए लोग प्रयोजन करके लाये जाते थे। बाद में यह परिपाटी लोकतान्त्रिक देशों में भी शुरू हो गई। भारत में तो इसकी शुरूआत 1969 में बैंकों के राष्ट्रीयकरण से ही हुई थी। सच तो यह है कि आज आंदोलन के नाम पर बेखौफ हो, शांति की छाती पर हिंसा की मूंग दली जा रही है और यह प्रिप्लान करवाया जाता है। आप सोच सकते हैं कि इतनी सारी मशालें इकदम से कहां बनी मिल जाती हैं? इकदम से बैनर पोस्टर, पेट्रोल बम कहां और कैसे तैयार कर लिये जाते हैं और कहां से आते हैं इतने ढ़ेर सारे पत्थर और हिंसा फैलाने वाले नकाबपोश गद्दार और कैसे उबलता है रक्त और कैसे लेते हैं शांति प्रदर्शन हिंसात्मक प्रदर्शन का खौफनाक रूप? जिससे उपजता है पूरे देश में भय और अशांति का माहौल और लगते हैं पीएम को गंदी गाली देने की आवाज़े कि हमें चाहिए 'आजादी'। यह तो हद ही हो गयी कि भारत जैसी आजादी इन उपद्रवियों को और कहीं भी मिल सकती है क्या? कि कुछ भी करो, कुछ भी बोलो, टीवी डिबेट में एक दूसरे पर शाब्दिक रूप से टूट पड़ो, सिद्दू जैसे नेता पाकिस्तान में जाकर यह कहें कि मार दो अहसान से और फिर भी भारत में चैन से रहे। यह सब भारत में ही सम्भव है क्योंकि यहां लोकतंत्र है और यहां जैसी आजादी कहीं नहीं जो हर आवाज़ को सुन रही है जब सरकार ने देखा कि नागरिक संशोधन बिल पर लोगों में यह भ्रम है तो उन्होंने खुद मंच से इसे स्पष्ट किया बल्कि अपने कार्यकर्ताओं को घर - घर भेज कर इसे समझाने की मुहिम तक चलायी। भाजपा मानती है कि वह पाकिस्तान, बंगलादेश व अफगानिस्तान में वहां सताये गये हिन्दू नागरिकों को अपनी नागरिकता देकर न्याय और मानवीयता का काम कर रही है जबकि विपक्षी दलों की राय से सहमत लोग मानते हैं कि सरकार भारत के भीतर वही काम कर रही है जो धार्मिक आधार पर ये तीन देश अपने यहां करते हैं। अर्थात प्रताड़ित लोगों में मुसलमानों को शामिल न करके उसने मानवीय पक्ष को हल्का कर दिया है जिसकी इजाजत भारत का संविधान नहीं देता है। बात अल्पसंख्यक की है कि इन देशों में हिंदू बौद्ध पारसी ईसाई अल्पसंख्यक हैं जिनका जबरन धर्म परिवर्तन कराके मुस्लिम बनाया जा रहा है। बीजेपी ने साफ कहा है कि 57 मुस्लिम देश हैं जहां गैर-मुसलमानों के साथ बेहद क्रूर व्यवहार होता है।इसलिये यह बिल लाया गया है।बताइये! भारत के अतिरिक्त इन धार्मिक प्रताड़ित हिंदू पारसी सिख बौद्ध किस देश में शरण लें। हां कई नियम  हैं जिनके तहत मुस्लिम भी भारत में शरण ले सकते हैं जिसमें पाकिस्तानी गायक अदनान शामी को भारत सरकार ने भारत की नागरिकता तक दी है। इसलिए भारत सरकार की नीति और नियत पर शक करना उचित नहीं। 

     ये जो कुछ राजनैतिक पार्टियां मुस्लिम को बरगला कर अपना वोटबैंक साध रही हैं जबकि पीएम मोदी मुस्लिम बच्चियों की शादी के लिए शादी शगुन योजना ला चुके हैं। सभी मुस्लिमों को गैस, आवास जैसी योजनाएं समानरूप से मिल रहीं तो सरकार को गाली क्यों? यह सब चुनावी पार्टियों को अब देश का हिंदू और मुसलमान दोनों समझ चुके हैं और कुछ लोगों को इन लोगों का बरगलाना बदस्तूर जारी है। जिसपर सरकार की पैनी नजर भी है। 

    ये तथाकथित राजनीतिक शक्तियां अपने आप को लिबरल थॉट की मानती हैं यानी उदारवादी सोच देश को तोड़ने और कमजोर करने के लिए बनाया गया है। देश में कई ऐसी गद्दार राजनीतिक पार्टियां हैं और कैंपस में उनके बुद्धिजीवी मसीहा हैं, जिनकी सोच कश्मीर को पाकिस्तान सौंपने की है और अखंडभारतवर्ष के सपने को खंडित करने की है। दुखद है कि यह लोग देश में हर जगह सेंध लगाने को ऊंचे पदों पर बैठे हैं जहां से यह अपने वायरस सोच से देश के भविष्य युवाओं को भ्रमित और संक्रमित कर देश को कमजोर करने की साजिशें रचते रहते हैं जिसमें उन्हें सबसे सरल काम लगता है धार्मिक उन्माद हिंदू मुस्लिम टकराव की आग में खुद के हाथ सेंकना। यह सोच वही वायरस है जिससे जेएनयू के अनेक अध्यापक भारतीय रकम पर विदेशों में जाकर अपने ही देश की आलोचना को अपनी बौद्धिक संपदा मान बैठे हैं जिसमें प्रोफेसर कमल मित्र चिनॉय ने गुजरात दंगों के बाद वाशिंगटन में वर्ष 2002 में वहां की सरकारी समिति ‘यूनाइटेड स्टेट्स कमीशन ऑन इंटरनेशनल रिलीजियस फ्रीडम’ के सामने भारत सरकार के खिलाफ गवाही दी। इस कमीशन की सुनवाई का उद्देश्य अमेरिका द्वारा भारत पर प्रतिबंध लगाने से जुड़ा था। इसी प्रकार के कई गद्दार  बुद्धिजीवियों का अड्डा विदेशों के विश्वविद्यालयों में सक्रिय है जो भारत विरोधी मुहिम में शामिल हैं। उसमें से एक हार्वर्ड विश्वविद्यालय का एक खेमा है जो स्टीम फॉर्मर के द्वारा चलाया जाता है। इसका नाम ‘इंडो-यूएस रिसर्च’ है। इनका एकमात्र उद्देश्य हिंदू धर्म और संस्कृति को बदनाम करना है। यह कहना गलत न होगा कि जब से मोदी जी ने देश की कमान संभाली है तब से विश्व स्तर पर भारत की पहचान और सशक्त हुई है। हर देश में रहने वाले भारतीय को सम्मानित दृष्टि से देखा जाने लगा है। इसका प्रमाण है अमेरिका - ईरान के तनाव पर भारत से शांति अपील करने को कहा गया। विश्व भर में भारत की शान का बढ़ता कद देश के गद्दारों, अर्बन नक्सलियों, शहरी नक्सलियों, तथाकथित वामपंथियों, लिबरल थॉट को तनिक भी नहीं भा रहा है। क्योंकि उनका मकसद है सिर्फ अशांति और हिंसा। 

       नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ़ पूर्वोत्तर से शुरू हुए विरोध प्रदर्शन का पश्चिम बंगाल से होते हुए उत्तर प्रदेश और दिल्ली तक फैल जाना, इस बात की ओर इशारा करता है कि राष्ट्र विरोधी शक्तियां देश को अशांत करने पर तुली हुई हैं। राजनीतिक दल अपने निहित स्वार्थ के लिए किसी हद तक जा सकते हैं। जब प्रधानमंत्री स्पष्ट कह चुके हैं कि किसी भी मुस्लिम परिवार को डरने की जरूरत नहीं है। किसी भी तरीके से यह कानून उनके विरोध में नहीं है। ऐसे में विरोध-प्रदर्शन अत्यंत ही दुखद और चिंताजनक है। आज हास्यास्पद है कि यूनीवर्सिटी के तथाकथित छात्रों ने सरकार के खिलाफ़ विपक्ष का रूप धारण कर रखा है और सुप्रीम कोर्ट चुप है तो जनजन जज बना बैठा है। चाहे नुक्कड की चाय की दुकान हो या हो यूनीवर्सिटी, या हो न्यायालय हर जगह अध्यक्ष महामंत्री, हर जगह राजनीति । हर कोई नेता। कोई विचार ही नहीं करता कि कुछ लोगों के भड़काने में आने पर हिंसा करके अपनी सम्पत्ति कुर्क कराके क्या मिला? यही उन बरगलाने वालों से एक बार रोटी रोजगार की बात करके देखो सारी असलियत बाहर। यह तथाकथित गद्दार नेता हमारे युवाओं को जिंदाबाद करने वाले रोबोट बनाने पर तुले हैं, जब सब पढ़ जायेगें, सब रोजगारयुक्त हो जायेगें तो अकेले नेता अपना रौब किस पर और कैसे झाड़ेगें। आज परिस्थिति यह है कि युवा अपने विवेक से काम ले और किसी के भी भड़काये में आकर खुद का क्रिमिनल रिकार्ड न बनाये। यही तो कुछ नेता चाहते हैं कि एक बार लड़का जेल गया, जीवन बर्बाद हुआ फिर मेेरे तलुए चाटने के अलावा कहां जायेगा? हर गद्दार नेेता, हर अपराधी को गुुुुलाम चाहिये जो इसी हिंसा में उन्हें प्राप्त होते हैं। इस बात पर युवाओं को मंथन करने की जरूरत है। कानूनी दायरे में प्रदर्शन के अपनी बात कहने के हजारों तरीके हैं पर हिंसा का रास्ता हमेशा मुुसीबतों की मंजिल पर ले जाता है और देश में ऐसा भी बडा कुछ नहीं हुआ है कि मरो मारो की स्थिति हो।देश में लोकतंत्र है और जनहित में संविधान तक में संशोधन होते रहते हैं।क्योंकि लोकतन्त्र जिद से कभी नहीं चला करता बल्कि वह सहमत व सहयोग से ही चलता है जिसमें पुलिस का कार्य लोकतन्त्र में कानून व्यवस्था कायम करना होता है और शान्तिपूर्ण आन्दोलन का हक भी व्यवस्था का ही एक अंग होता है। इस व्यवस्था में विघ्न डाल कर जो लोग अराजकता पैदा करने की कोशिश करते हैं उनसे निपटने में पुलिस के हाथ फिर कानून ने नहीं बांध रखे। यह बात समझनी होगी कि हर व्यक्ति का एक दायरा है और हर चीज की एक सीमा और जब जब दायरे चटकते हैं और सीमायें टूटतीं हैं तब तब महाभारत घटित होते हैं जिनके परिणाम किसी से छुपे नहीं। 

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