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झुलसती दिल्ली का सच - ब्लॉगर आकांक्षा सक्सेना



झुलसती दिल्ली का सच

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-ब्लॉगर आकांक्षा सक्सेना, 
न्यूज ऐडीटर सच की दस्तक


झुलसती दिल्ली का सच तो दोस्तों बस इतना है कि हम लोग कुछ दुष्ट पापियों के हाथ के रोबोट बनते जा रहे हैं जो वह कहते वहीं करते हैं। समय रहते हम ना जागे तो यह सच हमसे दूर नहीं कि हम इंसान से हैवान होने की यात्रा पर अग्रसर हैं। दुखद है कि इसकी बानगी कि नागरिकता तो किसी की न गयी पर हाँ जानें जरूर गयीं और छोड़ गयीं दिलों में कभी न मिटने वालीं नफरतें। दिल्ली हिंसा में शहीद हुए दिल्ली पुलिस के हेड कॉन्स्टेबल रतन लाल जी को शहीद के दर्जे के लिए मांग उठ रही है। हम इस मांग का पूरी तरह समर्थन करते हैं। उनकी शहादत को हम सब नमन करते हैं। वो बेगुनाह थे उनकी क्या गलती.. वो तो अपनी ड्यूटी कर रहे थे और कुछ दानवों के कुकृत्य ने आज उन्हें हम सब से बहुत दूर कर दिया, उनका हँसता खेलता पूरा परिवार बर्बाद कर दिया। मुझे बड़े ही दुख के साथ कहना पड़ रहा कि इस उपद्रव ने 42 बेगुनाह लोगों की जान ले लीं और करीब 300 लोग घायल अस्पतालों में बेसुध हैं। मतलब यह कि इस समय कितने ही परिवारों में आँसुओं का सैलाब होगा और कितने शर्म की बात है जब तक किसी की जान ना चली जाये तब तक हमारा शासन, प्रशासन सहित पूरा सरकारी महकमा सोया रहता है फिर अचाानक आंख खुलती तो कहते हैं तुरंत गोली मारने का ऑर्डर.. अरे! जब शाहीन बाग से इस भयावहता की शुरूआत हो रही थी, जब देेश विरोधी नारे लग रहे थे, जब कट्टे लहराते हुए लोग गलियों में घूम रहे थे, जब एक विस्फोटक लिये एक गुंडा सड़कों पर घूम रहा था फलतः वह विस्फोटक उसके हाथ में ही फूट गया और कई लोगों की जान बच गयी, जब मंच से ओवेेसी जैसे नेेता भड़काऊ बयान दे रहे थे, वहीं सोनिया, प्रियंका गांधी जैसे बड़े नेेता सीएए पर मुसलमानों को भड़काने निकले थे कि तुमको डिसेेक्शन सेंटर में डाल दिया जाये, जब कन्हैया कुमार जैसे छात्र नेता यूनीीवर्सिट में देेश विरोधी नारे लगा रहे थे, जब जेएनयू के छात्र पुलिस पर पेट्रोल बम बरसा रहे थे, जब वारिस पठान जैैसे लोग इतने मुसलमान इतने पर भारी पड़ेगें कह रहे थे,ये कुछ सौहार्द बिगाड़ने वाले नेताओं पर तुरंत कार्रवाई नहीं होती, आखिर! तब सुप्रीम कोर्ट, सरकारी तंत्र कोई सख्त कदम क्यों नहीं उठाता, सुप्रीम कोर्ट को मीडिएशन भेजने की क्या जरूरत जब वह जानते हैं कि लातों के भूत क्या कभी बातों से माने हैं जो आज मान जायेगें। आखिर! तब कोर्ट के आदेश से महिला पुलिस लगाकर क्यों नहीं बजायी गयीं लाठियां? जब शाहीन बाग में एक शख्स जिसने दंगे में पीचडी कर रखी है, उसकी तुरंत कड़ी जांच क्यों नहीं होती? सोचो! जब दिल्ली में बाबा रामदेव शांति आंदोलन कर रहे थे तब कांग्रेस सरकार के इशारे पर बाबा रामदेव के कपड़ेे तक खींच लिये गये थे, उन्हें किसी महिला का सफेद कुर्ता सलवार पहनकर अपनी जान और इज्जत बचानी पड़ी थी और आज इतना बड़ा शाहीन बाग बनता है और सरकार चुप्पी ओढ़ रहती है? सवाल तो उठता है। देखो! आज इस चुप्पी ने कितने घरों को चीखों में बदल दिया। तभी यह सख्त ऑर्डर होते तो आज देश के जांबाज़ हीरो व दिल्ली के 42 बेगुनाह लोग हमारे साथ होते। इस ढीलापोला रवैया या सरकारी तंत्र की इस घटिया राजनीति भरी उदासीनता ने कितने ही घर बर्बाद कर दिए। अब जागे भी तो क्या जागे?देश के कानून आखिर! कब सख्त होगें? सच तो यह है कि हमारी आदत पड़ चुकी है कि  जब कोई मरे तब हम जगें। धिक्कार है! हम पर.. क्या ये प्रदर्शन है जो आम लोगों को इतनी भारी छति पहुंचाये? मैं पूछना चाहती हूँ कि कहां हैं वो अवार्ड वापसी गैंग? कहां है मानवाधिकार शांतिधूर्त सेक्यूलर जयचंद गैंग, कहाँ है वो भितरघाती मोमबत्ती पोस्टर गैंग के पीछे छिपे उनके आका मास्टरमाइंड? आखिर! शहीदों के लिए तुम अवार्ड वापस क्यों नहीं करते? क्यूं नहीं जलती तुम्हारी मोमबत्तियाँ, कहां सूख जाती है तुम्हारी कलम की वह पोस्टर रंगने वाली स्याही? कहां है तुम्हारे मानवाधिकार वाले श्लोगन ट्वीट पोस्टर इत्यादि....काश! की देश के जवानों के लिए तुम लोग एक बार बाहर निकलते। दिल्ली दहल गयी पर तुम लोगों का जमीर है कि जागता ही नहीं... अगर बची हो तो थोड़ी... शर्म करो।सच तो यह है कि देश के यह उपद्रवी दानव बातों के भूत नहीं है साहिब! यह बात सुप्रीम कोर्ट को समझनी होगी और अगर देश में खुशहाली चाहिए तो कृपया करके देश के कानून अत्यंत सख्त कीजिए। वरना आज दिल्ली के लोग दहशत में हैं। कल कोई भी सैलानी भारत आने में चार बार सोचेगा? अगर यह नया भारत है तो साहिब! कानून भी नये कीजिए... हटा फेंकिए उनके ऊपर से पुरानी जिल्द।

शाहीन बाग में जारी धरने के खिलाफ शुरू हुए विरोध प्रदर्शन में हिंदू सेना समेत अन्य संगठनों के लोग भी शामिल हैं।बता दें कि 29 जनवरी को हिन्‍दू सेना ने ऐलान कर दिया था कि वो लोग 2 फरवरी को शाहीन बाग को खाली करवाएंगे जिससे आमलोगों को दिक्कत ना हो। इससे इस आंदोलन ने एक सांप्रदायिक रूप ले लिया था। एक गुट सीएए के खिलाफ था तो दूसरा पक्ष में। इस साम्प्रदायिक आंदोलनरूपी नफरत की आग ने कई हिंदू, कई मुस्लिम आम लोगों के घर उजाड़ डाले पर भड़काऊ नेताओं का क्या गया? इस दंगे की वीभत्सता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि आईबी अंकित शर्मा से की गई बरबरता, हैवानियत सुनकर होश फाख्ता कर देती है। अंकित शर्मा के दोस्त प्रदीप जब वो वाकया याद करते हैं तो उनकी रूह कांप जाती है। उन्होंने बताया कि उस दिन जो लोग आए थे, वह यहां के नहीं थे, बाहर के थे और सभी मुस्लिम थे। उन्होंने आते ही कहा कि 'हिंदू है मारो'। प्रदीप बताते हैं कि उनके हाथ में रॉड थी, लंबे-लंबे चाकू थे, जिनमें धार नहीं थी। पेट्रोल की बोतलें थीं, मेरे ऊपर भी पेट्रोल डाला है। उन दिन का वाकया याद करते हुए प्रदीप रो भी पड़े और बोले कि मैं ही जानता हूं उस दिन मेरी जान कैसे बची है, वरना शायद अंकित शर्मा से पहले मेरा फोटो टीवी पर होता।पोस्टमॉर्टम के मुताबिक उनके शरीर का एक भी हिस्सा ऐसा नहीं था जिसमें चाकू के गहरे घाव न हों। डॉक्टर ने लिखा है कि 400 से ज़्यादा बार उन्हें चाकुओं से गोदा गया।इस क्रूर अमानुषिक हत्याकांड और यातना को अंजाम देने में कम से कम 6 लोगों के शामिल होने की बात डॉक्टर बताते हैं। उन्होंने कहा है कि अंकित शर्मा को 6 लोगों ने लगातार 2 से 4 घंटे तक 400 बार चाकुओं से गोदा होगा। साथ ही, उनकी आँत को शरीर से बाहर निकाल दिया था। फोरेंसिक डॉक्टरों ने कहा कि इस तरह से यातना का शिकार और क्षत-विक्षत बॉडी उन्होंने अपने जीवन में कभी नहीं देखा। उनके पिता रवींद्र शर्मा ने बेटे की मौत के लिए आम आदमी पार्टी को जिम्मेदार बताया है। अब तो ताहिर हुसैन के खिलाफ एफआईआर भी दर्ज हो गई है। ताहिर अभी फरार है पर उसकी बिल्डिंग को सील कर दिया गया है और जांच चल रही है।

हम कैसे भुला पाएंगे कि साम्प्रदायिकता के नाम पर उगले जहर में कितना कुछ हमने खो दिया और पैदा करदीं हैं नफरतों की फसलें। सीएए का यह मुद्दा पूरी तरह कानूनी है और इसका फैसला देश का सर्वोच्च न्यायालय ही करेगा। सवाल हिन्दू या मुसलमान का नहीं बल्कि ‘इंसानियत का है नागरिक’ का है। अतः इसके विरोध या समर्थन में सम्प्रदायिक भावना का आना खौफनाक है लेकिन अपने स्वार्थों के लिये कतिपय राजनीतिक दलों ने अनुचित को भी उचित बनाकर निर्दोष लोगों को मौत के घाट  उतरवा दिया, अतः इसे लेकर धर्म के आधार पर गोलबन्दी पूरी तरह पाप है अधर्म है। आज दिल्ली ही नहीं पूरे देश में पिछले कुछ महीनों से जो हालात बने हैं, वे न केवल त्रासद एवं शर्मनाक हैं बल्कि भारत की संस्कृति एवं एकता को धुंधलाने वाले हैं।  इन विडम्बनापूर्ण हालातों ने अब एक ऐसा पक्का रंग ले लिया है कि इसका समाधान करना बहुत कठिन हो गया है।

लोगों को सोचना चाहिए कि यह वो गौरवशाली पवित्र भारतभूमि हैं जहां मान, सम्मान, मर्यादा और प्रेम की पूजा होती आयी है जो भारत अपने अतिथि को साक्षात् देव मानकर सत्कार करने की संस्कृति को दिल में श्रद्धा से सँजोये है। जहां के नैतिक मूल्यों पर सारी दुनिया नतमस्तक है। जहां कि संस्कृति गले लगाने, अपनाने की रही है, वहां आपने सोच भी कैसे लिया कि एक वर्ग विशेष को डि. सेंटर में रखकर यातनाएं दी जायेगीं। क्या इतना ही विश्वास है आपको अपने प्यारे देश महान भारतवर्ष पर... सोचिए! क्या हमारा देश ऐसा सोच भी सकता है? फिर आपने कैसे सोचा? क्यों नहीं दिया उन भितरघातियों गद्दारों को जवाब कि यह हमारा देश है, हमारा अपना घर है, यह प्रेम का मंदिर है.. जहां ऐसा भयावह अन्याय कभी नहीं होगा। फिर भी किसी बात पर संशय है तो उसके लिए सुप्रीम कोर्ट बना हुआ है वहां सभ्य तरीके से बात रखी जा सकती है। प्रदर्शन करके एक बड़े आमजन को दुखी करना कहां का न्याय है? आपके ही अविश्वास का फायदा बुरे लोग उठाते हैं और देखो! कितने ही लोग हमेशा हमेशा के लिए देश ही क्या दुनिया से उठा दिये गये। आखिर! कब जागोगे? क्या आप रोबोट हो? क्या आप कठपुतली हो? नहीं ना... तो भटको मत जागो!!

सीएए अर्थात् नागरिकता संशोधन कानून के नाम पर देश भर में साम्प्रदायिक हिंसा का जो नंगा नाच  हुआ है उससे भारत का सर समूची दुनिया में शर्म से झुक गया है क्योंकि एक तरफ भारत यात्रा पर आये अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प भारत की धार्मिक विविधता के बीच बनी इस राष्ट्र की मजबूती का बखान करते हैं और दूसरी तरफ हमारे देश के कुछ गद्दार देश का सिर झुकाने के अपने आतंकी मंसूबे पूरे करने के खूनी षड्यंत्र को अंजाम देने की तहरीरे लिखने जा रहे थे।

ऐसा नहीं कि इन जटिल से जटिलतर होती विषम स्थितियों का हल संभव नहीं, बिल्कुल मुमकिन है, लेकिन इसके लिए जरूरत है कि हमें सोच को संकीर्णता एवं साम्प्रदायिकता से बाहर लाना होगा। अहिंसक तरीकों को अपनाना होगा। सच तो यह है कि शाहीनबाग़ एक सोचा समझा प्रयोग है। इसकी गहराई से जांच होनी चाहिए। नागरिकता कानून बनने के बाद 15 दिसंबर से दिल्ली समेत पूरे देश में होने वाला इसका विरोध इस कदर हिंसक रूप भी ले सकता है इसे भांपने में निश्चित ही सरकार और प्रशासन दोनों ही नाकाम रहे। इससे भी चिंताजनक बात यह है कि सांप्रदायिक हिंसा की इन संवेदनशील परिस्थितियों में भी भारत ही नहीं विश्व भर के मीडिया में इसके पक्षपातपूर्ण विश्लेषणात्मक विवरण की  भरमार है जबकि इस समय सख्त जरूरत निष्पक्षता और संयम की होती है। देश में अराजकता की ऐसी किसी घटना के बाद सरकार की नाकामी, पुलिस की निष्क्रियता, सत्ता पक्ष का विपक्ष को या विपक्ष का सरकार को दोष देने की राजनीति इस देश के लिए कोई नई नहीं है। परिस्थिति तब और भी विकट हो जाती है जब शाहीनबाग़ में महिलाओं को कैसे सवाल पूछने हैं और किन सवालों के कैसे जवाब देने हैं, कुछ लोगों द्वारा यह समझाने का वीडियो वायरल होता है। लेकिन फिर भी ऐसे गंभीर मुद्दे पर न्यायपालिका भी कोई निर्णय लेने के बजाए सरकार और पुलिस पर कानून व्यवस्था बनाए रखने की जिम्मेदारी का ठीकरा फोड़ देती है।

देखा! जाए तो देश को मौजूदा हालात में धकेलने के लिए  सभी जिम्मेदार हैं सरकार, विपक्ष, विभिन्न मुस्लिम नेता, मजहबी कट्टरता, प्रशासन, न्यायपालिका, मीडिया। आज इनमें से कोई भी खुद को दूध का धुला नहीं बता सकता। आज जब देश की राजधानी में पत्थरबाजी, लोगों की दुकानें जलाने,किसी निहत्थे के सिर में ड्रिलिंग मशीन चलाने, पुलिस कर्मी पर आतंकी मोहम्मद शाहरूख बंदूक तानने या फिर सुरक्षा बलों पर तेजाब डालने की खबरें आती हैं तो यह सतही प्रश्न नहीं होने चाहिए कि घरों में तेज़ाब कहाँ से आया बल्कि यह सोचना चाहिए कि लोगों के दिलों में इतना तेज़ाब कहाँ सेआया? यह नहीं खोजना चाहिए कि इतने पत्थर कैसे इकट्ठे हुए बल्कि यह उत्तर ढूंढना चाहिए कि लोगों के दिलों में नफ़रत के यह पत्थर किन भितरघातियों ने भिजवाये?

सवाल यह कि है जब देश के प्रधानमंत्री स्वंय, गृहमंत्री, कानून मंत्री, अल्पसंख्यक मामलों के मंत्री जैसे सरकार में शामिल जिम्मेदार लोग विभिन्न मंचों से
बार - बार कह चुके हैं कि देश के मुसलमानों से इस कानून का कोई लेना देना नहीं है यह नागरिकता देने का कानून है छीनने का नहीं। फिर भी विपक्ष उन पर भरोसा ना करके कुछ सोशल एक्टिविस्ट, वॉलीवुड के लोग जैसे जब जावेद अख्तर को एक अपराधी में मुसलमान दिखाई देता है (ताहिर हुसैन पर एफआईआर पर उनकी प्रतिक्रिया) तो वे केवल इस देश के सौहार्द से ही नहीं खेलते बल्कि वे अपने ही समुदाय की भावनाओं और उनके भविष्य के साथ भी  खेलते हैं। जिस तरह 23 फरवरी 2020 रविवार के दिन भारतीय इतिहास में चंद नेताओं के द्वारा नफरत के जहरीले बयानों पर बोयी गयी जहरीली फसल को काटने के दिन के रूप में इतिहास में हमेशा याद रखा जायेगा। लेकिन जब 25 फरवरी मंगलवार को दंगाग्रस्त क्षेत्र में दंगा नियंत्रण के लिए राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल स्वयं आधी रात को सड़कों पर उतरे, तो उनके द्वारा बरती सख्ती के बाद से अब जगह-जगह पुलिस व पैरामिलिट्री फोर्स मौजूद है और दिल्ली के दंगाग्रस्त क्षेत्र में अब चारों तरफ ताडंव के सबूतों के साथ खौफनाक शांति पसरी हुई है। मंगलवार की रात को जब इस क्षेत्र में हर तरफ मारकाट अपने चरम पर थी, तब एनएसए अजीत डोभाल दंगाग्रस्त इस क्षेत्र के निवासियों के लिए एक देवदूत की तरह  आये और दंगा को नियंत्रण करके ना जाने कितने लोगों को अपनी कार्यशैली व कुशल प्रशासनिक नेतृत्व के बलबूते शांति और सुरक्षा का भरोसा देकर गये। लेकिन अफसोस! वही कि बहुत देर कर दी.... आते आते। यह दंगा बहुत सारे लोगों को बहुत गहरे जख्म हमेशा के लिए दे गया, हालांकि समय सभी जख्मों पर मरहम लगाकर उनको भर देता है लेकिन जिस परिवार पर बीतती है वह परिवार कभी भी आसानी से ऐसे हैवानियत भरे हादसों को नहीं भूल पाता है और पनपती है गहरी नफरतें।

अब हम भारतीयों को सांझी संस्कृति की जीवंतता के लिये सही समय पर सही निर्णय लेने वाले दूरदर्शी, समझदार एवं सच्चे एवं सख्त कानून की जरूरत है व हिंदू मुसलमान नहीं 'इंसान' की जरूरत है जो न शस्त्र की भाषा में सोचता हो, न सत्ता की भाषा में बोलता हो और न स्वार्थ की तुला में सबको तोलता हो। साम्प्रदायिक एकता एवं सौहार्द की पूजा नहीं, उसके लिये सच्चाई और पारदर्शी की कसौटी चाहिए। एकता एवं अखण्डता का आदर्श शब्दों में ही नहीं उतरे, जीवन का अनिवार्य हिस्सा बने। उन्हें सिर्फ कपड़ों की तरह ना ओढ़ा जाए अन्यथा फट जाने पर यह आदर्श भी चिथड़े ही कहलायेंगे, ऐसा देखने एवं करने के लिये अनेक लोगों के मनसूबों को भी निष्फल करना होगा। क्योंकि कोई भी देश केवल बड़ी-बड़ी सेनाएं व आधुनिक सामरिक साजो-सामान रखने से ही मजबूत नहीं होता बल्कि नागरिकों के आपसी प्रेम, भाईचारे व एकता,उन्नति, तरक्की के दिशा में किये गये सर्वजन कल्याण की भावना से, हर हाथ के पास रोजगार, से मजबूत होता है। अतः हर नागरिक का पहला कर्तव्य है कि वह देश में फैले इस नफरतों की आग से फैले पागलपन को यथाशक्ति खत्म करने का प्रण ले, अगर घटा ना सके तो बढ़ाने, फैलाने का बरगलाने में भी ना आये। खुद भी शांति से जिये और दुनिया को भी शांति से जीने दे। कृपया अपनी देश की गौरवशाली प्रेम रूपीसंस्कृति को कलंकित न होने दें।

आइये! प्रार्थना करें कि दिल्ली समेत देश में नागरिकता कानून को लेकर हिंसा में जितने भी बेगुनाह हम सबको छोड़कर अनंत यात्रा को गये हैं। परमात्मा उनकी आत्मा को शांति प्रदान करें और जो उनके हत्यारे हैं उन्हें उनके कुकर्मों का भयानक दंड मिले।

वंदेमातरम् भारत माता की जय

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