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... और हिंदी लौट गयी - ब्लॉगर आकांक्षा सक्सेना



हां आज हिंदी दिवस नहीं है... पर हिंदी के प्रति जागरूकता के लिए क्या हमें हिंदी दिवस की जरूरत है? आज जहां विश्व अपनी धरोहरों को संजोने में ऐड़ी चोटी का जोर लगाये हुए है। वहीं हम विदेशी संस्कृति की ओर खिंचे चले जा रहे हैं। अभी ताजा खबर है जब पूरा विश्व सफेद जिराफ़ की विलुप्ति पर छाती पीट रहा है पर अब होत क्या जब चिड़िया चुग गयी खेत वाली कहावत सार्थक है क्योंकि हम लोग तब तक सजग नहीं होते जब तक आफत हमारे सिर पर ना नाचे वरना दूसरे पर आयी आफत को हम ज्यादा गम्भीरता से ले लें, इतना हमारे पास समय ही कहाँ बचा है। आप कहेगें बात हिंदी की हो रही तो सफेद जिराफ़ बीच में कहां से आया? बता दूं कि आज के दौर में रॉकेट की रफ्तार से जो हिंदी के प्रति बेरूखी बढ़ रही है वो किसी से छुपी नहीं है। आज शिक्षार्थी अंग्रेजी में 80% ला रहे वहीं हिंदी की परीक्षा बड़े स्तर पर छोड़ रहे हैं। दुखद है कि हिंदी की परीक्षा में बहुत बड़े पैमाने पर असफल हो रहे हैं।सोचिए! एक समय था जब सब लोग संस्कृत में बात किया करते थे जिसे देवभाषा भी कहते हैं पर आज कितने लोग संस्कृत में बात करते हैं? हम अभी भी न जागे तो आने वाली पीढ़ियों के लिए वो दिन ज्यादा दूर नहीं जब अंग्रेजी महफिलें सजा रही होगी और हमारी हिंदी सफेद जिराफ़ की तरह विलुप्ति की कगार पर खड़ी आसूँ बहा रही होगी....!!
आइये! अपनी मातृभाषा हिंदी पर ना सिर्फ़ गर्व करें बल्कि उसके संरक्षण, प्रचार- प्रसार हेतु आगें आयें वो भी गर्व से शर्म से नहीं।हमारी यह कहानी
... और हिंदी लौट गयी, यह कहानी आज के आधुनिक दौर में हाशिये पर खड़ी हमारी मातृभाषा हिन्दी की स्थिति रेखांकित करती है।
यह कहानी आपको हिंदी के प्रति सम्मान से भर देगी। मुझे विश्वास है कि कहानी पढ़ने के बाद आप किसी भी हिंदी बोलने वाले को पिछड़ा, गंवार, देहाती जैसे अपमानजनक शब्दों से कभी नहीं पुकारेगें। यही होगी अपनी भाषा के प्रति सच्ची आस्था और समर्पण।
जय हिंदी, जय हिंदीप्रेमी
धन्यवाद 🙏🙏🙏💐
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