सावित्री चल बसीं सत्यवान को छोड़कर...
💐विनम्र श्रद्धांजलि💐
[जब सावित्री चल बसें सत्यवान को छोड़कर]
अक्सर आपने समाज के कुछ दकियानूसी लोगों के मुंह से यह कहते अवश्य ही सुना होगा कि फेसबुक, व्हाट्सएप बुरी चीज है,असल में यह फेसबुक नहीं, यह तो 'फेकबुक' है पर मेरा स्वंय का 2012 से जब से मैं फेसबुक पर हूं, मेरा अनुभव रहा है कि फेसबुक बेमिसाल है। यह लोगों के सुख - दुख में शामिल होकर बेहतरीन दोस्त बनने और पाने का बेहतरीन मंच है। लोगों का कटुअनुभव उन्हें बुरे शब्द बोलने पर मजबूर कर देता है जोकि सही भी है। हर जगह, हर तरह के मंचों पर अच्छी मानसिकता और बुरी मानसिकता वाले लोग पाये ही जाते हैं जिसे हम रोक नहीं सकते सिर्फ़ बचाव कर सकते हैं।यही कुछ चार साल पहले मुझे फेसबुक पर बेहतरीन, खूबसूरत और प्यारी, हँसमुख बड़ी बहन आदरणीय श्री मती अनुराधा जी के रूप में मिलीं । जोकि भगवान का बेहद सुन्दर उपहार रहा। हम दोनों फेसबुक पर यही कुछ चार साल पहले मिले थे। मेरे लिये वह दुनिया की सबसे प्यारी इंसान साबित हुईं... जिनका शुभ नाम शुभ नाम अनुराधा सिंह है।वह एक बेहतरीन दोस्त, एक बेहतरीन पत्नी, एक बेहतरीन माँ और एक बेहतरीन लेखक। जो अब इस दुनिया से बहुत दूर भगवान की दुनियां में अपनी सुन्दर मुस्कुराहट बिखेर रहीं होगीं। ना ही हम कभी मिले.. ना ही कभी वीडियो चैट से एक दूसरे को देखा पर फिर भी हम दो सहेली फोन पर घंटों बातें करते और हँसते खिलखिलाते थे। वह हमेशा कहती थीं आकांक्षा जी देख लो किचन में बात करते हुए सब्जी जल- फुक न जाये आपकी... कहो कि अनुराधा के कारण जल गयी। हमने कहा, जले देश के दुश्मन.. सब्जी काहे जले। फिर कहती आकांक्षा जी कभी मैं भी नेता होती या कुछ खास होती तो आप मेरा भी कुछ लिख कर पोस्टर वगैरह बनाती? हमने कहा, नहीं अनुराधा जी आप नेता नहीं होतीं... इतने प्यारी लड़की भला नेता कैसे हो सकती है ? तो बोलती काहे कि प्यारी आप मक्खन बहुत लगाती हो। मक्खन आपका नेताओं को भी लगता है जोकि नहीं लगाना चाहिए दोस्त। तो हम कहते दोस्त! पत्रिका की ओनर मैं नहीं हूँ। जो ऊपर से हुकुम मिलता है वैसा करना होता है। हम सब कहीं न कहीं किसी न किसी रूप में नौकर ही तो हैं। कई बार आत्मा तक को टेप से बांध कर बड़ा सा पत्थर रखकर लेख लिखने पड़ जाते हैं। तो कहतीं, ''हाँ...देश के लगभग सभी लेखक- पत्रकारों की व्यथा असल में यही है।'' हमने कहा, अब आप भी किचन में राऊंड मार लो कहीं कुछ जल न जाये तो कहती नहीं बहन जब पतिदेव आयेगें तभी गर्मागर्म बनाऊंगी बाकि तैयारी कर ली है। पतिदेव कभी बाहर का नहीं खाते वह चाहें रात दो बजे आयें मैं बनातीं हूं। हमने कहा... ओहो.. ट्रू लव... तो हंसते हुए बोलती... यार यह पति लोग जताते नहीं है । हमने कहा, यह हर महिला की 'आपबीती' कहानी है अगर मेरी कभी भाईसाहब से बात हुई तो मैं खुल कर कह दूंगी कि जता भी दिया करो... वो पूरे दिन घर-परिवार,बच्चों, सास - ससुर में स्वंय को खपा देतीं हैं.. आप पुरूष खाने तक की खुल कर तारीफ़ तक नहीं करते, बहुत गलत बात है । तो बोली, अरे! मत कहना वरना कहेगें मैनें ही पट्टी पढ़ा कर कहलवाया है। दो दिन को कहीं घूम आऊं तब याद करें पति लोग । हमने कहा, बिल्कुल नारी एकता जिंदाबाद। हम दोनों ही बहुत देर तक हँसते रहते.. वैसे आकांक्षा जी, आप बात कर लो उनसे उनको कुछ बात करनी थी उनको कोई पत्रिका प्रकाशित करवाने के सम्बंध में.. हमने कहा आप मुझे दोस्त भी कहतीं हैं और 'जी' भी कहतीं हैं, यह बिल्कुल नहीं चलेगा। सिर्फ़ आकांक्षा कह लिया करें। तो कहतींं, अरे! नहीं मान सम्मान सबका बराबर प्लीज़ मना मत किया करो। यह बात उन्होंने इतनी विनम्रता से कही कि मैं कुछ न बोल सकी। फिर बोलींं अपने भाईसाहब को कॉल कर लो सचमुच जरूरी बात है । हमने कहा,''जब भाईसाहब आ जायें तब आपके सामने ही बात करूंगी तो बोलीं,अरे! जबर्दस्त विश्वास है बिंदास बात करो कोई प्रोब्लेम नहीं। हमने कहा, भाई साहब पर इतना विश्वास? तो बड़ी जोर से हंसते हुए बोलीं आप पर उनसे भी अधिक.. तो हम दोनों ठहाके लगाकर बहुत देर तक हंसते रहे..। हमने कहा, ये सब छोडो, ये बताओ कि आपका लेख नहीं आया अभी तक? अपने लोग भी लेट देगें तो कैसे चलेगा? तब बोली कि तबियत खराब चल रही थी, शुगर की मरीज हूं... ज्यादा कुछ नहीं। हमने कहा, मेरी प्यारी दोस्त अनुराधा जी कृपया अपना ख्याल रखियेगा।आप से बात करके बहुत पोजिटिव एनर्जी मिलती है। मजा आ जाता है तो वह कहतीं और मुझे आप से बात करके परलोक का सुख मिल जाता है। हमने तुरंत टोका ये क्या शब्द बोला आपने... परलोक नहीं बहन... इसी लोक में हैं हम दोनों। तो कहतीं, ओके ओकेे सॉरी, गुस्सा न करो। आज से ये शब्द दोबारा नहीं बोलूंगी।.......तब से दिन-रात टीवी पर कोरोना चलता रहा....हम सब अपनी - अपनी दुनिया में बिजी हो गये। और आज एकाएक एक मैसेज आता है कि... अनुराधा सिंह, बहराइच ..... नहीं रहीं। मुझे लगा यह कोई मजाक ही होगा। बाद में पता चला कि मेरी प्यारी दोस्त अनुराधा 9 मई को ही हम सबको छोड़कर अनंत की यात्रा पर जा चुकी है। इस दौरान अनुराधा बहन के पति श्री नरेन्द्र विक्रम सिंह भाईजी ने पूरे 15 दिन कोरोना वार्ड में कई रातें जागकर अपनी पत्नी की नाश्ता से लेकर शौचालय तक सत्यवान की तरह तन, मन, धन से भीगती आखों से प्रेमपूर्वक सेवा की। बता दें कि मेरी आदरणीय बड़ी बहन और दोस्त ऑटोनोमस-स्टेट मेडिकल - कॉलेज - बहराइच में एडमिट थीं और बेहद दु:खद बात है कि उनके साथ ही अनेकों लोग भी इस अस्पताल से जीवित न लौट सके....!! और अंततः सारे उपायों के बावज़ूद भी अनुराधा जी को नहीं बचाया जा सका। बैड पर चुप लैटीं अपनी पत्नी को देखकर मानों नरेन्द्र जी पत्थर की तरह स्थिर हो एक टक देखते ही रह गये।पीछ से डॉक्टर कुछ बोल रहे थे पर वह आदरणीय नरेंद्र भाई को कुछ सुनाई नहीं दिया मानोों सारी इंद्रियां सुन्न पड़ गयीं हों। वह विश्वास ही नहीं कर सके कि अचानक यह क्या हो गया। यह वह क्षंण था जब कहा जा सकता था कि अनुराधा जैसी महान पत्नी मानो सावित्री ही चल बसीं हों अपने महान मर्यादित पति सत्यवान को छोड़कर...... और मेरा प्यारा भतीजा बुजुर्ग परिवारीजन.. व हम सब अश्रुपूरित पुष्पांजलि लियेे हतप्रभ रह गये। बहन! अभी हम मिलें भी नहीं थे और मिलने से पहले ही आप गयी हो... यह वादा आपने ही तोड़ा है... कहा था कि एक बार कोरोना चला जाये तो हम सब मिलकर दस्तक टीम के साथ पार्टी करेगें... काशी की यात्रा करेगें...
साथियों! इस कोरोना काल में अस्पतालों की लचर व्यवस्था ने ना जाने कितनों की जिंदगियां छीन लीं। न जाने कितने ही घर- परिवारों को उजाड कर बिखेर दिया। बता दें कि सन् 2017-2018 में आदरणीय अनुराधा जी सच की दस्तक नामक राष्ट्रीय मासिक पत्रिका, वाराणसी से जुड़ीं और वह सच की दस्तक की ब्रांड एम्बेसडर भी रहीं। उनके लेख व व्यंग्य समाज और देश की समस्याओं की इतनी कड़वी हकीकत समेटे हुआ करते थे कि पाठक दांतो तले उंगली दबा लिया करते थे। यह देखकर दस्तक की टीम को गर्व था कि चलो कोई तो सच लिखता है। यह जो सच का पथ होता है यह बिल्कुल आसान नहीं होता और मुझे गर्व है कि मेरी बड़ी बहन आदरणीय अनुराधा जी सत्य की धाकड़ पथिक रहीं। सच की दस्तक में उनके लिखे लेख जैसे-2018 में सच की दस्तक में प्रकाशित हुआ आपका लेख 'सड़कों पर उमड़ता राष्ट्रवाद और सदनों में बैठे एन्लो इंडियन' काफी चर्चित रहा तथा यह लेखन सफर एक दूसरे बेमिसाल लेख ' मुर्दों के शहर में' फिर, नेट के नशे में खोता बचपन जैसे लेखों ने बहुत बड़े पाठक वर्ग को अपना मुरीद बना लिया । बता दें कि बहन अनुराधा जी अनेकों देशी-विदेशी समाचार पत्रों की शान रहीं। उन्होंने लेखन की दुनियां में बहुत ही कम समय में अच्छा नाम कमाया। दस्तक में प्रकाशित 'बाहूबली बन गया भल्लालदेव' नामक उनके लिखे व्यंग्य सदा हमारे हृदय आसन पर विराजित, प्रासंगिक, अविस्मरणीय व सदा अमर रहेगें। मेरी प्यारी बड़ी बहन आदरणीय अनुराधा जी, आप कभी 'थीं' नहीं होगीं, आप सदा 'हैं' ही रहेंगी। आपके नाम के आगें मेरी कलम कभी 'स्व.' नहीं लगायेगी क्योंकि लेखक हमेशा अपने लेखों में छिपे शब्द अहसासों में सदा सर्वदा अमर रहते हैं और आप भी अमर हो, मेरे दिल में आज भी आपकी उपस्थिति अविच्छिन्न है।हो सके तो लौट आओ.......!
___आपको ढ़ेर सारा प्यार करने वाली आपकी बहन आकांक्षा____🌼🙏🌼
🙏ॐशांति 💐
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