दहेज़ कैंसर
ब्याह + स्वार्थ = (बाजार )
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आज कल अख़बार मैं विज्ञापन आता है |
लड़की गोरी- सुन्दर,लम्बी,उच्च शिक्षित,ग्रह कार्य दक्ष,सरकारी नौकरी वाली को वरीयता,सर्वगुण संपन्न कन्या चाहिए |
मांगते हैं घर जाओ तो कुछ इस प्रकार से कहते हैं की हमने अपनी बेटी की शादी तो ८ लाख मैं की थी |हाँ, एक बात और कहते हैं कुछ लोग कल ही आये थे, ७ लाख रुपैया और एक स्विफ्ट कार देने को कह रहे थे |
देखा आपने फिर जब घर मैं लड़ाइयाँ हुईं कोर्ट के चक्कर काटे तब बोले क्या बताऊँ बहु बहुत गलत मिली |हम फंस गए |
अरी अब क्यूँ रोते हो आपने जो मंगा वही तो मिला आपको गोरी-सुन्दर कारवाली , नौकरीवाली,ढेर सारा दहेज़ लाये ऐसी बहु मिले तो मिल गई न....आपने ये तो नही कहा था की हमें एक अच्छी संस्कारी कन्या चाहिए 'एक बहु चाहिय' |एक अच्छा इंसान चाहिए |
ये तो नहीं लिखा था न उस सदी के विज्ञापन मैं तो अब जो है उसको स्वीकार करो |
...................वास्तव मैं समाज की दशा आज दुर्दशा की कगार पर है सब कुछ स्वार्थ की भेंट चढ़ चुका है |..
..आने वाली जो पीड़ी होगी उनके सवालों का सामना क्या हम कर सकेंगे ???
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आकांक्षा सक्सेना
बाबरपुर,औरैया
उत्तर प्रदेश
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