मेरा परिचय /मेरा संघर्ष : जीवन का एक पड़ाव my struggle blogger akanksha SAXENA
मेरा परिचय -
ब्लॉगर आकांक्षा सक्सेना
समय बीता और जब लोगों की बनावटी मुस्कुराहट देखती तो मन नही मानता कलम लिखने पर मजबूर हो जाती। तो फिर से लिखना शुरू किया और बहुत लिखा।ताज्जुब था कि मेरे ही एक परिवारी जन को मेरा लिखना अच्छा नहीं लगा। उनको मुझसे जबरजस्त ईर्ष्या और जलन थी। उनको हमेशा यह डर लगा रहता था कि कहीं इस गंवार लड़की सारी दुनिया में नाम न हो जाये। कहीं मैं उनसे ज्यादा धनवान न हो जाऊँ और उनकी इस चिढ़ ने कब नफरत का रूप धारण कर लिया ये तो उनको भी शायद पता नहीं चला। फिर तो उन पर मानो राहू सवार हो गया। और एक दिन उनकी ये जलन सारी सीमा लांघ गयी। फिर उन्होनें प्रसाद में नशा खिलाकर अपना मन पूरा भी कर लिया।मैं हल्के बेहोशी मैं थी और उन्होनें मेरे हाँथ की नश काट कर मुझे मारने का पूरा प्रयास कर डाला और कहने लगीं कि मर गयी तो कह देंगें होगा किसी के साथ चक्कर-मक्कर। बाद में बदनामी भी ब्याज में,बहुत बढ़िया।
मैं अपना रक्तरंजित हाँथ देख बुरी तरह घबरा गयी कि आखिर! मेरा दोष क्या है। बस मैं नारायण नाम की शक्ति को मन में ले भागी। हद तो तब हो गयी जब उन्होनें हमारी लिखी रचनाओं की पूरी सौ नोटबुक आग में स्वाहा कर डालीं। वो नोटबुक नहीं मेरी आत्मा का संगीत था जिसको अग्नि देवता को पूरी तरह भेंट किया जा चुका था। ये वो दु:ख था जिसकी भरपाई कभी नहीं हो सकेगी ।ये बात हम भलीभांति जानते थे पर इंसान की जान और सम्मान से बड़ा कुछ नहीं होता बस यही सोचकर हमने उस व्यक्ति को हृदय से माँफ कर दिया ।क्योंकि मैंने सोचा कि माँफ कर देने से मेरी पढ़ाई-लिखाई की यात्रा का मार्ग अवरूद्ध ना हो। माँफी में शांति है और शांति ही सही हल था,उस समय।
बस दोस्तों! किसी तरह उनके मनसूबे कामयाब न हो सके। फिर हमने वो स्थान छोड़ दिया और किराये के घरों में भटकते रहे पर कभी बदले की भावना को खुद पर हावी न होने दिया और खून में सने हाँथ पर रूमाल बाँधकर कैमिस्ट्री का प्रेक्टिकल दिया जाकर और सफल हुई ।पर दोस्तों! विपरीत परिस्थितियों में भी लिखना बन्द नहीं किया। और आज भी लिख रहीं हूँ ।मैं यही कहूँगी कि जब कटा हाँथ तो और भी सध गया हाँथ ।क्योंकि दर्द भी नहीं जख्म भी नहीं हाँ ये निशाँन हैं जो प्रेरणा बन गये कि लिखते रहो । अरे!हाँथों में रेखायें तो सबके होतीं हैं । हमारे तो कलाई में भी रेखायें बन गयीं। ये तो ढ़ेर सारी रेखायें हैं पर शांति की अपार सम्भावनाओं की। ये रेखायें हमारी ढ़ेर सारी वैचारिक क्षमतायें हैं जिसको कह सकते हैं सकारात्मक ऊर्जा की रेखायें।
हम यही कह सकते हैं कि आज जो मेरे चेहरे पर मुस्कुराहट है वो मेरे इन्ही प्रिय विरोधियों के कारण है । अगर कभी जीवन में सफल होतीं हूँ तो सफलता का पहला श्रेय मेरे प्रिय
विरोधियों कसम से आपको ही जाता है। बस उस दिन का इंतजार है जब हम भी शुरूवात करेगें एक शुभ दिन की यानि शुभ विरोधी दिवस (हैपी इनेमी डे)की जिसमें बतायेगें कि जीवन की बड़ी सफलताओं में विरोधियों का अहम योगदान होता है। मेरे प्रिय विरोधियों मैं आपको हर-पल याद रखती हूँ।
दोस्तों ! हमेशा याद रखो कि हमारे जीवन में दु:ख किसी गुरू से कम नही और दर्द ही हमारे सच्चे अध्यापक सिद्द होते हैं|यह मेरी आत्मकथा का सिर्फ़ एक अध्याय है और संघर्ष जारी है।
आपकी मित्र
आकांक्षा सक्सेना
ब्लॉगर 'समाज और हम'
ब्लॉगर आकांक्षा सक्सेना
शांति की रेखायें
............़़़़...................
सौ बुक जलने के बाद की अप्रकाशित
यह नॉवेल और कहानी संग्रह।
दोस्तों इस नये साल में आपसे पुरानी बात करने का कोई मन तो नहीं पर बहुत मेल मिलते हैं कि मुझे लिखने की शक्ति कहाँ से मिलती है? आप सभी के क्यों और कैसे का जवाब आज मैं जरूर दूँगी तो दोस्तों! जब से याद सम्भाली तब से लिख रही हूँ |बचपन में जब सामने किसी दुखी, बीमार,गरीब विकलांग भिखारी को देखती तो दिल रो पड़ता था। क्योंकि उन दिनों हम भी बहुत गरीबी से जूझ रहे थे और बड़ी मुश्किल से गुजर होती थी तो किसी जरूरतमंद की कैसे मदद करते ? मगर मन बहुत करता कि उनको सीने से लगा लूँ |फिर कुछ सोचकर , एक काम करती कि कॉपी पर एक कहानी लिखती, उनको कहानी का पात्र बनाती और खुद को सुपर हीरो बनाकर उनको ढ़ेर सारी खुशियाँ दे डालती और उनको अमीर और अच्छा इंसान बना देती, लिख डालती। एक दिन एक बहुत बीमार बाबा को खाना तो दे आयी पर उनकी खाँसी के लिये मेरे पास कुछ नहीं था । मैं तुरन्त घर आयी और कहानी में मैंने उन बाबा को बिलकुल ठीक कर दिया | बचपन ही था जो मुझे उस वक्त ठीक लगा सो कर दिया। लगभग दो-तीन दिन बाद वो बाबा दिखे और बोले बेटा तेरे टिफिन के खाने में जादू था मैं ठीक हो गया और हाँ रात को सपने में कोई आया जिसने मुझे सीने से लगा लिया भगवान थे शायद। मैं देखो बिल्कुल ठीक हो गया। यह बात सुनकर मैं चौंक गयी बिल्कुल मेरी कहानी वाला सुुपर हीरो जो सीने से लगाकर हर दर्द से मुक्त करने वाला था। ताज्जुब था कि जो लिखा वो सच हो गया। ऐसा कई बार हुआ तो एक अनजाने डर से कहानी लिखना बन्द कर दिया |
समय बीता और जब लोगों की बनावटी मुस्कुराहट देखती तो मन नही मानता कलम लिखने पर मजबूर हो जाती। तो फिर से लिखना शुरू किया और बहुत लिखा।ताज्जुब था कि मेरे ही एक परिवारी जन को मेरा लिखना अच्छा नहीं लगा। उनको मुझसे जबरजस्त ईर्ष्या और जलन थी। उनको हमेशा यह डर लगा रहता था कि कहीं इस गंवार लड़की सारी दुनिया में नाम न हो जाये। कहीं मैं उनसे ज्यादा धनवान न हो जाऊँ और उनकी इस चिढ़ ने कब नफरत का रूप धारण कर लिया ये तो उनको भी शायद पता नहीं चला। फिर तो उन पर मानो राहू सवार हो गया। और एक दिन उनकी ये जलन सारी सीमा लांघ गयी। फिर उन्होनें प्रसाद में नशा खिलाकर अपना मन पूरा भी कर लिया।मैं हल्के बेहोशी मैं थी और उन्होनें मेरे हाँथ की नश काट कर मुझे मारने का पूरा प्रयास कर डाला और कहने लगीं कि मर गयी तो कह देंगें होगा किसी के साथ चक्कर-मक्कर। बाद में बदनामी भी ब्याज में,बहुत बढ़िया।
मैं अपना रक्तरंजित हाँथ देख बुरी तरह घबरा गयी कि आखिर! मेरा दोष क्या है। बस मैं नारायण नाम की शक्ति को मन में ले भागी। हद तो तब हो गयी जब उन्होनें हमारी लिखी रचनाओं की पूरी सौ नोटबुक आग में स्वाहा कर डालीं। वो नोटबुक नहीं मेरी आत्मा का संगीत था जिसको अग्नि देवता को पूरी तरह भेंट किया जा चुका था। ये वो दु:ख था जिसकी भरपाई कभी नहीं हो सकेगी ।ये बात हम भलीभांति जानते थे पर इंसान की जान और सम्मान से बड़ा कुछ नहीं होता बस यही सोचकर हमने उस व्यक्ति को हृदय से माँफ कर दिया ।क्योंकि मैंने सोचा कि माँफ कर देने से मेरी पढ़ाई-लिखाई की यात्रा का मार्ग अवरूद्ध ना हो। माँफी में शांति है और शांति ही सही हल था,उस समय।
बस दोस्तों! किसी तरह उनके मनसूबे कामयाब न हो सके। फिर हमने वो स्थान छोड़ दिया और किराये के घरों में भटकते रहे पर कभी बदले की भावना को खुद पर हावी न होने दिया और खून में सने हाँथ पर रूमाल बाँधकर कैमिस्ट्री का प्रेक्टिकल दिया जाकर और सफल हुई ।पर दोस्तों! विपरीत परिस्थितियों में भी लिखना बन्द नहीं किया। और आज भी लिख रहीं हूँ ।मैं यही कहूँगी कि जब कटा हाँथ तो और भी सध गया हाँथ ।क्योंकि दर्द भी नहीं जख्म भी नहीं हाँ ये निशाँन हैं जो प्रेरणा बन गये कि लिखते रहो । अरे!हाँथों में रेखायें तो सबके होतीं हैं । हमारे तो कलाई में भी रेखायें बन गयीं। ये तो ढ़ेर सारी रेखायें हैं पर शांति की अपार सम्भावनाओं की। ये रेखायें हमारी ढ़ेर सारी वैचारिक क्षमतायें हैं जिसको कह सकते हैं सकारात्मक ऊर्जा की रेखायें।
हम यही कह सकते हैं कि आज जो मेरे चेहरे पर मुस्कुराहट है वो मेरे इन्ही प्रिय विरोधियों के कारण है । अगर कभी जीवन में सफल होतीं हूँ तो सफलता का पहला श्रेय मेरे प्रिय
विरोधियों कसम से आपको ही जाता है। बस उस दिन का इंतजार है जब हम भी शुरूवात करेगें एक शुभ दिन की यानि शुभ विरोधी दिवस (हैपी इनेमी डे)की जिसमें बतायेगें कि जीवन की बड़ी सफलताओं में विरोधियों का अहम योगदान होता है। मेरे प्रिय विरोधियों मैं आपको हर-पल याद रखती हूँ।
दोस्तों ! हमेशा याद रखो कि हमारे जीवन में दु:ख किसी गुरू से कम नही और दर्द ही हमारे सच्चे अध्यापक सिद्द होते हैं|यह मेरी आत्मकथा का सिर्फ़ एक अध्याय है और संघर्ष जारी है।
आकांक्षा सक्सेना
ब्लॉगर 'समाज और हम'
Ati Sunder
ReplyDeleteThank you so much sir..
DeleteAti Sunder
ReplyDeleteThank you so much.....
ReplyDeleteThank you so much
ReplyDeleteThank you so much sir...
ReplyDeleteThank you so much sir..
ReplyDeleteHumesa Ki Tarah Bahut Khubsurat Rachna Hai Ye Apki
ReplyDeleteVery Good piece of writing..Keep it up
ReplyDeleteaap kafi accha likhti hai apki lekhni me pareshan logo ka kafi dard chuapa hota hai jo ye batata hai ki aap ek achche dil ki insan hai mujhe apka blog mauli ne bheja tha isliye unka bhi shukriya
ReplyDeleteशुक्रिया सर 🙏🙏🙏🌼
Deleteappka blog wakhi lajawab hai meri hardik subhakamnaye
ReplyDeleteशुक्रिया सर 🙏🌼
Deleteआपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" शनिवार 16 जनवरी 2016 को लिंक की जाएगी ....
ReplyDeletehttp://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ....धन्यवाद!
शुक्रिया विभा जी🙏🌼
DeleteAapki ye story padte hi bas esa lag raha h ye sab mere sath hi huwa ho ruh me ek ajib sa dard uthne laga h aap bahut acha likhti ho god bles you
ReplyDeleteशुक्रिया सर🙏💐
DeleteAapki ye story padte hi bas esa lag raha h ye sab mere sath hi huwa ho ruh me ek ajib sa dard uthne laga h aap bahut acha likhti ho god bles you
ReplyDeleteशुक्रिया सर🙏💐
Deleteसुन्दर व सार्थक रचना प्रस्तुतिकरण के लिए आभार! मकर संक्रान्ति पर्व की शुभकामनाएँ!
ReplyDeleteमेरे ब्लॉग की नई पोस्ट पर आपका स्वागत है...
contents are very good....all the best
ReplyDeleteशुक्रिया सर🙏💐
Deleteबहुत अच्छी सोच है
ReplyDeleteGreat contents
ReplyDeleteशुक्रिया 🙏💐
Deleteईर्ष्या को त्याग कर, सकारात्मक दृष्टि अपनाना ही सार्थक जीवन का माध्यम है और यही आपने किया और उसे लिखा भी । आप कामयाबी के शिखर में पहुंचे हमारी शुभकामनाये आपके साथ हैं ।
ReplyDeleteशुक्रिया सत्यमजी🙏💐
Deleteईर्ष्या को त्याग कर, सकारात्मक दृष्टि अपनाना ही सार्थक जीवन का माध्यम है और यही आपने किया और उसे लिखा भी । आप कामयाबी के शिखर में पहुंचे हमारी शुभकामनाये आपके साथ हैं ।
ReplyDeleteशुक्रिया सत्यम जी🙏💐
Deletepalak ko agar jid hai yahi bijliya girane ki to
ReplyDeletehame bhi jid hai yahi asiya bnane ki
लाजवाब पोस्ट।
ReplyDeleteशुक्रिया सर🙏🌼
Deleteशुक्रिया आदरणीय 🙏🙏🙏🌼
ReplyDeleteसुच आप एक ऐसी हक़ीक़त पसंद क़लमकार है जिनकी जितना भी तारीफ की जाए कम है।हम ने आप के कई लेख,कविताएं व कहानियां पढ़ी है,अच्छा लगता है के आप वो हक़ीक़त पसंद क़लमकार है जो देखती समझती है उसे रू बरु पेश करने की साहस रखती है।salute you अकांक्षा जी।
ReplyDeleteआप आदरणीय हैं... हम आपका सम्मान तरते हैं सर🙏🙏🙏
DeleteThank you so much for your kind thoughts and support to society, you are not a Personality but unique personality. You are goddess to needy children and Women and helping hands to people.
ReplyDeleteThank you so much for your best work, All the way best wishes.
God bless you